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मणिपुर: आर्मी बैरिकेड हटाने पहुंची मैतेई भीड़, तगड़ी झड़प हुई, 40 से ज्यादा घायल हो गए

लगभग 10 हजार लोग बिष्णुपुर जिले में बैरिकेड हटाने पहुंचे थे. हथियारबंद बदमाशों ने सुरक्षाकर्मियों पर पथराव और फायरिंग की.

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मणिपुर में फिर सुरक्षाकर्मियों पर हमला (फोटो- AFP)

मणिपुर (Manipur) के बिष्णुपुर जिले में हुए बवाल में 40 से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर है. 6 सितंबर को लगभग 10 हजार मैतेई लोगों की भीड़ फौगाकचाओ इखाई और क्वाक्टा में इकाट्ठा हो गई. वो लोग बिष्णुपुर-चुराचांदपुर बॉर्डर पर बफर जोन में लगाए गए बैरिकेड को हटाने की मांग कर रहे थे. तभी भीड़ सुरक्षाकर्मियों से भिड़ गई. आरोप है कि हथियारबंद उपद्रवियों ने सुरक्षा कर्मियों पर फायरिंग और पथराव किया, जिसमें तीन कर्मी घायल हुए.

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द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, भीड़ को तितर बितर करने के लिए करीब 200 आंसू गैस के गोले छोड़े गए जिसके बाद मौके पर भगदड़ मच गई और कई लोग घायल हुए. खबर है कि भीड़ और सुरक्षाकर्मियों के बीच ये गतिरोध सुबह साढ़े दस बजे के आसपास शुरू हुआ और दिन भर चला.

बैरिकेड हटाने की मांग क्यों? 

रिपोर्ट के मुताबिक, इस घटना के पीछे प्रभावशाली मैतेई ग्रुप COCOMI (Coordinating Committee on Manipur Integrity) का हाथ है. COCOMI ने ही युवाओं और स्थानीय लोगों से 6 सितंबर को इकट्ठा होने को कहा था. वो चाहता है कि इम्फाल और चुराचांदपुर को जोड़ने वाले मेन हाईवे पर फोगाकचाओ इखाई में लगे बैरिकेड को हटाकर पीछे तोरबंग वांगमा में बनाया जाए.

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एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने अखबार को बताया कि शाम करीब साव चार बजे हथियारबंद बदमाशों ने बफर जोन में तैनात सुरक्षा बलों पर ऑटोमेटिक बंदूकों से फायरिंग की. आरोप है कि उनमें से कुछ आरोपी पुलिस कर्मियों के भेष में थे. जब केंद्रीय सुरक्षा बलों और सेना की टुकड़ियों ने क्वाक्टा में भीड़ को रोका तो उन पर पथराव किया गया.

बता दें, COCOMI ने सरकार और अधिकारियों से 30 अगस्त तक फौगाकचाओ इखाई में बैरिकेड हटाने का आग्रह किया था. राज्य के सूचना और जनसंपर्क मंत्री सपम रंजन ने COCOMI से अपना आंदोलन वापस लेने की अपील भी की थी. तब COCOMI ने लोगों से बाहर निकलकर बैरिकेड हटाने का आवाहन किया. कोई गड़बड़ी ना हो इसके लिए 5 सितंबर से घाटी के पांच जिलों - इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व, थौबल, बिष्णुपुर और काकचिंग में कर्फ्यू भी लगाया गया. 

वीडियो: मणिपुर ग्राउंड रिपोर्ट : हिंसा की वो कहानियां, जो कहीं सुनी नहीं गईं

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