महाराष्ट्र में लगातार गहराते राजनीतिक संकट के बीच राज्य की विधानसभा के डिप्टी स्पीकर की भूमिका अब बहुत महत्वपूर्ण हो चली है. शिवसेना के एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद पार्टी के विधायक दल के नेता अजय चौधरी ने विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल को एक पत्र लिखा है. इस पत्र में शिंदे कैंप के कुछ विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की गई है. अजय चौधरी ने अपने पत्र में कहा है कि इन विधायकों ने शिवसेना चीफ व्हिप सुनील प्रभु की तरफ से जारी किए गए व्हिप का पालन नहीं किया. जिसमें इन विधायकों से 22 जून को उद्धव ठाकरे द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल होने के लिए कहा गया था.
महाराष्ट्र विधानसभा में स्पीकर बिगाड़ सकते हैं शिंदे कैंप का खेल, क्या कहते हैं नियम?
जब बात महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने पर आएगी, तो स्पीकर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी. फिलहाल महाराष्ट्र विधानसभा में स्पीकर नहीं हैं, इसलिए उनकी भूमिका डेप्युटी स्पीकर नरहरि जिरवाल निभाएंगे.

अजय चौधरी के इस लेटर के बाद अब फैसला नरहरि जिरवाल को लेना है. हालांकि, इस बीच सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इस संबंध में नरहरि जिरवाल किस तरह के फैसले ले सकते हैं और उनके पास ये फैसले लेने के लिए कितनी पावर है.
इंडिया टुडे से जुड़ीं कनु सारदा की रिपोर्ट के मुताबिक, जब बात विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने की आएगी, तो उस समय स्पीकर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी. लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा में इस समय कोई स्पीकर नहीं है. शुरुआत में कांग्रेस के नाना पटोले को विधानसभा अध्यक्ष चुना गया था. बाद में जब पटोले महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष बने, तो उन्होंने स्पीकर पद से इस्तीफा दे दिया. तब से अभी तक महाराष्ट्र विधानसभा में कोई दूसरा अध्यक्ष नियुक्त नहीं हुआ है.
नरहरि जिरवाल महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष हैं. ऐसे में वो अनुच्छेद 95 और 180 के तहत महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका निभाएंगे. जाहिर है जिरवाल के पास एक बड़ी जिम्मेदारी है.
क्या कहता है कानून?भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूचि केंद्र और राज्य, दोनों स्तर पर दल-बदल को लेकर बात करती है. ये कहती है कि विधानसभा या संसद का कोई सदस्य तब अयोग्य ठहराया जाएगा, जब चुने जाने के बाद या तो अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ दे या फिर किसी दूसरी पार्टी में शामिल हो जाए. सदस्य को उस स्थिति में भी अयोग्य माना जाएगा, जब वो पार्टी के निर्देश के खिलाफ वोट करे या फिर मतदान से दूरी बना ले. हालांकि, अगर विधायक या संसदीय दल के दो-तिहाई सदस्य ऐसा करें, तो उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है.
दसवीं अनुसूचि में ये भी कहा गया है कि दल बदलने पर किसी सदस्य को अयोग्य ठहराने या ना ठहराने का फैसला स्पीकर या फिर चेयरमैन करेंगे और उनका फैसला ही अंतिम माना जाएगा. इस अनुसूचि के मुताबिक, इस मामले में कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. हालांकि, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर के फैसले को लेकर एक निश्चित सीमा तक न्यायिक समीक्षा की मंजूरी की बात कही थी.
कनु सारदा की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने इस बारे में इंडिया टुडे से बात की. उन्होंने बताया,
"दल-बदल के मामलों में स्पीकर की भूमिका किसी जज की तरह होती है. अगर कोई विधायक या सांसद दसवीं अनुसूचि का उल्लंघन करता है, तो स्पीकर उसे अयोग्य ठहरा सकता है. स्पीकर की गैरमौजूदगी में डिप्टी स्पीकर ये काम कर सकता है."
वहीं सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्वनी दुबे ने भी बताया कि अनुच्छेद 95(1) के मुताबिक, अगर स्पीकर का ऑफिस खाली है यानी विधानसभा या संसद में कोई स्पीकर नहीं है, तो उसकी भूमिका डिप्टी स्पीकर निभाएगा.
हालांकि, इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि बागी एकनाथ शिंदे के कैंप में शिवसेना के दो-तिहाई से अधिक विधायकों के मौजूद होने का दावा किया जा रहा है. अगर ऐसा सच में है तो दसवीं अनुसूचि के तहत ही उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है. इधर शिवसेना के नेता संजय राउत का कहना है कि एकनाथ शिंदे के पास केवल कागजों पर विधायक हैं और ये आंकड़ा हमेशा स्थिर नहीं रह सकता है. उनका कहना है कि बहुमत विधानसभा में सिद्ध किया जाएगा.