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जौन एलिया जो कहते थे, मुझे खुद को तबाह करने का मलाल नहीं है

'मैं जो हूं जौन एलिया हूं जनाब, इसका बेहद लिहाज़ कीजिएगा'

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उर्दू के गुलशन में कई जादुई खुशबू वाले फूल महके. ऐसे ही एक मकबूल फूल को दुनिया ने शायर जौन एलिया के नाम से जाना. जनाब के कहे शेर आज भी ट्विटर पर 'ट्रेंडियाने' लगते हैं. 14 दिसंबर 1931 को जन्मे जॉन एलिया साहेब का  8 नवंबर, 2002 में इंतकाल हो गया था. आइए करीब से जानिए इस शायर और उसके अकेलेपन से भरे अशआरों को:

'अपनी शायरी का जितना मुंकिर* मैं हूं, उतना मुंकिर मेरा कोई बदतरीन दुश्मन भी न होगा. कभी कभी तो मुझे अपनी शायरी. बुरी, बेतुकी, लगती है इसलिए अब तक मेरा कोई मज्मूआ शाये नहीं हुआ और जब तक खुदा ही शाये नहीं कराएगा. उस वक्त तक शाये होगा भी नहीं.'  *मुंकिर: खारिज करने वाला

https://twitter.com/jafariyah313/status/676267398282915841 जौन साहेब यूपी के अमरोहा में पैदा हुए थे. पिता अल्लामा शफीक हसन एलिया जाने-माने विद्वान और शायर थे. पांच भाइयों में सबसे छोटे जौन एलिया ने 8 साल की उम्र में पहला शेर कहा. https://twitter.com/UrduShairi/status/676087543192936448 इंडिया से मुहब्बत थी. लेकिन बंटवारा हमारे नसीब में लिखा जा चुका था. बंटवारे के 10 साल बाद न चाहते हुए जौन पाकिस्तान के कराची जा बसे. https://twitter.com/uroojjaffar/status/675434704577953792 एक उर्दू पत्रिका थी, इंशा. इसी को निकालने के दौरान जाहिदा हिना से मुलाकात हुई. इश्क हुआ. शादी हुई. तीन बच्चे हुए लेकिन रिश्ता ज्यादा दिन चल नहीं पाया. फिर हुआ 1984 में तलाक. खफा मिजाज के जौन गम में डूब गए. शायरी से लेकर जिंदगी तक में खुद को बर्बाद करने की बात करने लगे. https://twitter.com/_JonElia_/status/676109789374496768 'यानी, गुमान, लेकिन, गोया' किताबें छपीं. हाथों हाथ बिकीं. जिंदगी में खुद को नाकामयाब मानने वाले जौन 8 नवंबर 2002 को चल बसे. लेकिन उनके शेर आज भी फेसबुक, ट्विटर, किताबों और आशिकों के बीच जिंदा हैं.  पढ़िए जौन एलिया के 15 मशूहर शेर.
मैं भी बहुत अजीब हूं, इतना अजीब हूं कि बस ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं जो गुज़ारी न जा सकी हम से हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है कौन इस घर की देख-भाल करे रोज़ इक चीज़ टूट जाती है यूं जो तकता है आसमान को तू कोई रहता है आसमान में क्या कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे मैं भी बहुत अजीब हूं इतना अजीब हूं कि बस ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया क्या बताऊं के मर नहीं पाता जीते जी जब से मर गया हूं मैं रोया हूं तो अपने दोस्तों में पर तुझ से तो हंस के ही मिला हूं हो रहा हूं मैं किस तरह बर्बाद देखने वाले हाथ मलते हैं ख़ूब है शौक़ का ये पहलू भी मैं भी बर्बाद हो गया तू भी उस गली ने ये सुन के सब्र किया जाने वाले यहां के थे ही नहीं अपना ख़ाका लगता हूं एक तमाशा लगता हूं सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई क्यूं चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई ख़ूब है इश्क़ का ये पहलू भी मैं भी बर्बाद हो गया तू भी
देखिए: जौन एलिया क्यों थे उदास? https://www.youtube.com/watch?v=3urjzyCQDjw

ये स्टोरी 'दी लल्लनटॉप' के लिए विकास ने की थी.


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