सैयद अली शाह गिलानी कभी कश्मीर में अलगाववाद की सबसे बुलंद आवाज़ माने जाते थे. 92 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. (फाइल फोटो)
कश्मीर (Kashmir) के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी (Syed Ali Shah Geelani) का निधन हो गया है. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (जी) के पूर्व अध्यक्ष गिलानी 92 साल के थे. बुधवार 1 सितंबर को श्रीनगर में अपने आवास पर रात 10:30 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली. उन्हें सीने में जकड़न और सांस लेने में तकलीफ थी. गिलानी के मौत के बाद कश्मीर में सुरक्षा और सख्त कर दी गई है.
महबूबा मुफ्ती ने जताया शोक
जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट करते हुए गिलानी के निधन पर शोक जताया और संवेदना जताई. महबूबा मुफ्ती ने कहा,
“गिलानी साहब के निधन की खबर से दुखी हूं. हम ज्यादातर बातों पर सहमत नहीं रह सके लेकिन मैं दृढ़ता और विश्वास के साथ खड़े होने के लिए उनका सम्मान करती हूं. अल्लाह उन्हें जन्नत दें. उनके परिवार और शुभचिंतकों के प्रति संवेदना.”
एक वक्त तक हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का हिस्सा रहे सज्जाद लोन ने भी दुख जताया. उन्होंने लिखा
"सैयद अली शाह गिलानी के परिवार को मेरी दिल से संवेदनाएं. वो मेरे पिता के बहुत करीबी सहकर्मी रहे. अल्लाह उन्हें जन्नत बख्शे."
पाकिस्तान ने एक दिन के शोक की घोषणा की
सैयद अली शाह गिलानी की मौत पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी ट्वीट करके दुख जताया. उन्होंने पाकिस्तान में एक दिन के राष्ट्रीय शोक की भी घोषणा की है. उन्होंने ट्वीट किया.
"कश्मीर में आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सैयद अली गिलानी की मौत की खबर सुनकर काफी दुख हुआ. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी लोगों के संघर्ष के नाम कर दी. पाकिस्तान उनके हौसले को सलाम करता है. पाकिस्तान उनकी मौत पर एक दिन का आधिकारिक शोक मनाएगा और झंडे को झुका दिया जाएगा."
हुर्रियत के अध्यक्ष भी रहे गिलानी
सैयद अली शाह गिलानी दशकों तक जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद की सबसे मुखर आवाज रहे. 28 अगस्त, 1962 को अशांति फैलाने के आरोप में गिलानी को पहली बार हवालात का मुंह देखना पड़ा था. वो 13 महीने जेल में रहे. इस जेल यात्रा के दौरान उन्होंने अपने पिता को खो दिया. वह मातमपुर्सी के लिए घर भी नहीं जा पाए. यह गिलानी के जेल यात्रा की शुरुआत थी. तब से लेकर जीवित रहने तक गिलानी तकरीबन 16 साल से ज्यादा जेल में रहे. वह 1972 में सोपोर से विधायक बने. दो बार और उन्होंने विधानसभा में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया. 1989 में कश्मीर में इमरजेंसी के शुरुआती दौर में उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया. गिलानी के इस कदम ने उन्हें अलगाववादियों के नेता के तौर पर स्थापित कर दिया. 1993 में 26 अलगाववादी संगठनों ने मिलकर ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस नाम का अम्ब्रेला संगठन बनाया. सैयद अली शाह गिलानी इसके अध्यक्ष बनाए गए. 2002 में आते-आते इस संगठन की तस्में ढीली पड़ने लगीं. 2002 के विधानसभा चुनाव में लोन बंधुओं (बिलाल लोन और सज्जाद लोन) पर प्रॉक्सी कैंडिडेट खड़े करने के आरोप लगे. ऐसे में हुर्रियत दो टुकड़ों में बंट गई. पहले धड़े को मॉडरेट या नरमपंथी कहा गया. इसका नेतृत्व मिला मीर वाइज़ को. दूसरा कट्टरपंथी धड़ा बना गिलानी के नेतृत्व में. 2010 में उन पर देशद्रोह का मुकदमा लग चुका है. वह पाकिस्तान से अवैध फंडिंग के सिलसिले में नेशनल इंटेलिजेंस एजेंसी (NIA) की जांच के दायरे में भी रहे हैं. साल 2020 में पाकिस्तान ने उन्हें अपने सबसे बड़े नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया था.