The Lallantop

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग, सुप्रीम कोर्ट का कौन सा फैसला बन रहा रोड़ा?

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली गई है, जिसमें जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में मिले भारी मात्रा में कैश को लेकर FIR दर्ज करने की मांग की गई है. इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को भी चुनौती दी गई है, जो इस मामले में FIR लिखने से पुलिस को रोक रहा है.

Advertisement
post-main-image
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग उठी (तस्वीर:पीटीआई/इंडिया टुडे)

दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Varma) के सरकारी आवास से मिले भारी मात्रा में कैश की इन हाउस जांच चल रही है. इसके लिए भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने तीन जजों की एक कमिटी बनाई है. जस्टिस वर्मा को कुछ समय तक न्यायिक जिम्मेदारी से हटा दिया गया है. लेकिन उनके खिलाफ फिलवक्त अभी पुलिस ने कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया है. हालांकि FIR दर्ज किए जाने की मांग शुरू हो गई है. सवाल भी उठ रहे हैं कि इस मामले में अब तक FIR क्यों नहीं दर्ज हुई है? इसकी वजह क्या है? आइये इस बारे में जानते हैं.

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement
ये फैसला बन रहा रोड़ा

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली गई है, जिसमें जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में मिले भारी मात्रा में कैश को लेकर FIR दर्ज करने की मांग की गई है. पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, यह याचिका एडवोकेट मैथ्यू जे नेदुंपारा, हेमाली कुर्ने, राजेश आद्रेकर और मनीषा मेहता ने 23 मार्च को दायर की है. इस याचिका के तहत सुप्रीम कोर्ट के साल 1991 में दिए गए एक फैसले को भी चुनौती दी गई है. इस फैसले में कहा गया था कि पुलिस किसी जज के खिलाफ बिना भारत के मुख्य न्यायाधीश की अनुमति के खुद से FIR दर्ज नहीं कर सकती है.

याचिका के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के उस वक्त दिए गए फैसले में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को दी गई छूट कानून के समक्ष समानता के संवैधानिक सिद्धांत का उल्लंघन करती है. साथ ही ये न्यायिक जवाबदेही और ‘रूल ऑफ लॉ’ के बारे में चिंताएं पैदा करती है.

Advertisement

याचिका में कहा गया है कि तब इसे ‘पर इनक्यूरियम’ (कानून की अनदेखी करके) और ‘सब साइलेंटियो’ (बिना सोच-विचार के) लिया गया था. याचिका में बताया गया कि जब पुलिस को किसी अपराध की जानकारी मिलती है, तो FIR दर्ज करना उसकी ड्यूटी है. लेकिन 1991 का फैसला पुलिस को इससे रोकता है. याचिका में इस बात का भी ध्यान दिलाया गया है कि आपराधिक कानून सबके लिए एक जैसे होने चाहिए. संविधान में केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को कुछ खास छूट दी गई है, लेकिन जजों को ऐसी कोई छूट नहीं मिली है.

यह भी पढ़ें:जस्टिस यशवंत वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजने की सिफारिश, बार एसोसिएशन ने फिर किया विरोध

जल्द से जल्द केस दर्ज हो

जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में याचिका डालने वाले लोग ‘नेशनल लॉयर्स कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल ट्रांसपेरेंसी एंड रिफॉर्म्स’ नाम की संस्था से जुड़े हैं. उन्होंने कहा कि 14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में जले हुए नोट मिलने के तुरंत बाद ही FIR दर्ज होनी चाहिए थी. साथ ही उनकी गिरफ्तारी भी होनी चाहिए थी.

Advertisement

लेकिन अब यह मामला जजों की कमेटी को सौंपा गया है जोकि उनके जयू्रिस्डिक्शन के बाहर का मामला है. मांग की गई है कि जज के खिलाफ भी आम नागरिक की तरह केस दर्ज किया जाना चाहिए.

इस बात की ओर भी इंगित किया गया है कि जजों को विशेष प्रावधान देने के चलते वे कई बार पॉक्सो जैसे गंभीर मामलों में भी FIR से बच गए. याचिकाकर्ताओं ने याद दिलाया कि साल 2010 में संसद में ज्यूडिशियल स्टैंडर्ड्स एंड अकाउंटेबिलिटी बिल लाया गया था. लेकिन इसे कानूनी अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. इसे जजों की जवाबदेही तय करने के मकसद से लोकसभा में 1 दिसंबर, 2010 को पेश किया गया था. लेकिन यह पास नहीं हो सका और बाद में लैप्स हो गया. 

वीडियो: कुणाल के वीडियो पर हैबिटेट स्टूडियो ने क्या बात कही?

Advertisement