साल 2016 में भारत के कई हिस्सों में लोग नमक खरीदने के लिए लाइन लगाकर खड़े हो गए. 15 से 20 रुपये प्रति किलो बिकने वाला नमक, लोगों ने 100-100 रुपये में खरीदा. वजह थी नमक के दाम को लेकर फैली अफवाह. अब 7 साल आगे आते हैं. साल 2023 में. दक्षिण कोरिया के लोग नमक (South Korea Salt) को लेकर लाइन में लगे हुए हैं. नमक की कीमत 27 फीसदी तक बढ़ गई हैं. नौबत ये है कि लोग बोरे भरकर नमक खरीदकर उसे अपने घर में स्टोर कर रहे हैं.
जापान छोड़ने जा रहा न्यूक्लियर रिएक्टर वाला पानी, हाहाकार मचा, लोग नमक क्यों इकट्ठा करने लगे?
दक्षिण कोरिया में नमक के दाम में 27 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो चुकी है. चीन भी जापान के इस फैसले का विरोध कर रहा है.

इसके पीछे की वजह है एक आशंका. और इस आशंका के पीछे है जापान का एक फैसला. जापान का ये फैसला क्या है और इसकी वजह से क्या कुछ हो रहा है, सब विस्तार से जानते हैं.
समुद्र में छोड़ा जाएगा पानीजापान अपने फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट (Fukushima nuclear plant) में स्टोर लगभग एक मिलियन टन (करीब 2 हजार करोड़ लीटर) पानी समुद्र में छोड़ने की तैयारी कर रहा है. जापान के इस फैसले के चलते कई देश चिंता में पड़ गए हैं. खासकर, दो पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया और चीन. दरअसल, जापान में साल 2011 में भीषण सुनामी आई थी. जिसमें फुकुशिमा न्यूक्लियर को रिएक्टर खासा नुकसान पहुंचा था.
इसके चलते यह न्यूक्लियर प्लांट बंद करना पड़ा था. सुनामी ने रिएक्टर्स के कूलिंग सिस्टम को तहस-नहस कर दिया था. इसके बाद से ही न्यूक्लियर पावर प्लांट में रिएक्टर्स को ठंडा रखने के लिए जापान दस लाख टन से ज्यादा पानी का इस्तेमाल कर चुका है. ये पानी फिलहाल न्यूक्लियर पावर प्लांट की साइट पर बने टैंक्स में स्टोर है. लेकिन पानी को स्टोर करने की जगह की कमी के कारण जापान ने इसे समुद्र में छोड़ने का फैसला किया गया. 26 अगस्त 2021 को इसके लिए जापान में कैबिनेट ने एक बिल पास किया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 28 जून को जापानी परमाणु विनियमन प्राधिकरण (JNRA) ने दूषित पानी को डंप करने से पहले अंतिम निरीक्षण शुरू कर दिया है. हालांकि, पानी को डंप करने की प्रक्रिया कब से शुरू होगी, इसकी तारीख का कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है.
अब जापान के इस फैसले का विरोध क्यों हो रहा? दरअसल, न्यूक्लियर रिएक्टर के पानी में ट्रिटियम के कण हैं. जो खासा नुकसानदेह होता है. ट्रिटियम एक रेडियोएक्टिव मैटेरियल होता है. इसे पानी से अलग करना काफी मुश्किल होता है. इससे कैंसर जैसी कई गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं. यह समुद्र से निकाले जाने वाले नमक, सीफूड, मछली आदि के जरिए आम लोगों तक पहुंच सकता है.
साथ ही यह प्रदूषित जल मछलियों के लिए भी जहरीला साबित हो सकता है. ऐसे में इस इलाके में रहने वाले मछुआरों की आजीविका पर संकट पैदा हो सकता है. इसलिए चीन और दक्षिण कोरिया में इस फैसले का विरोध हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने जापान के इस फैसले की आलोचना की है और उस पर पारदर्शिता ना रखने का आरोप लगाया है. चीन की तरफ से कहा गया है कि इससे समुद्री पर्यावरण और दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो गया है.
जापान क्या कह रहा?इधर, जापान की सरकार की तरफ से ये आश्वासन दिया जा रहा है कि समुद्र में छोड़ा जा रहा पानी सुरक्षित है. ऐसा इसलिए क्योंकि रेडियोएक्टिव तत्वों को हटाने के लिए इस पानी को खास तरीकों से साफ किया गया है. BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, जापान के इस कदम को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) का भी समर्थन मिला था.
अब बात जापान में आई त्रासदी की करें तो 2011 में वहां सुनामी आई थी. सुनामी के कारण फुकुशिमा के तीन रिएक्टर्स को मिल रही पावर सप्लाई बंद पड़ गई थी. इससे कूलिंग सिस्टम ठप हो गया. इसका नतीजा ये हुआ कि तीन दिनों के भीतर रिएक्टर्स के कोर पिघल गए. दिसंबर 2011 में प्लांट को बंद करना पड़ा. हादसे के कारण एक लाख से अधिक लोगों को सुरक्षित बाहर निकालना पड़ा. जापान सरकार कहती है कि इस हादसे में रेडियोएक्टिव रेडिएशन के कारण एक भी मौत नहीं हुई. जो लोग मारे गए, वो सुनामी के कारण हताहत हुए. इसके बाद प्रदूषित पानी को साफ़ करके ठिकाने लगाने का काम शुरू हुआ. ये आज तक चल रहा है.
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