चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू (Arunachal Pradesh Pema Khandu) ने चीन को चुभने वाला बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि अरुणाचल प्रदेश की सीमा तिब्बत से लगती है, चीन से नहीं. ये भी कहा कि आधिकारिक तौर पर तिब्बत अब चीन के अधीन है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन मूल रूप से हम तिब्बत के साथ सीमा साझा करते हैं. उन्होंने न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में ये बात कही है.
भारत के खिलाफ 'वॉटर बम' बना रहा चीन? अरुणाचल के CM बोले- 'नहीं पता वो कब क्या कर दे'
चीन ने अंतरराष्ट्रीय जल संधि पर साइन नहीं किया है. इसलिए वर्तमान में चीन पर पानी के बहाव का डेटा साझा करने के लिए किसी तरह की वैधानिक बाध्यता नहीं है. इसलिए किसी विवाद की स्थिति में चीन जब चाहे तब इस बांध को भारत के खिलाफ वॉटर बम की तरह इस्तेमाल कर सकता है.

इसी इंटरव्यू में उन्होंने चीन पर एक बड़ा आरोप भी लगाया है. उन्होंने तिब्बत की यारलुंग त्सांगपो(Yarlung Tsangpo dam) नदी पर बनाए जा रहे बांध को लेकर चेतावनी दी है. कहा कि चीन इस बांध को वॉटर बम की तरह इस्तेमाल कर सकता है. उनके मुताबिक इससे सिर्फ सैन्य खतरा नहीं खड़ा होगा. हमारे लोगों की आजीविका के लिए भी बड़े स्तर पर समस्या खड़ी करेगा. आइए जानते हैं कि पेमा खांडू ने यारलुंग त्सांगपो बांध को वॉटर बम क्यों कहा है? ये बांध कहां बनाया जा रहा है, और भारत को इससे कैसे खतरा है.
2020 में हुई थी घोषणाचीन ब्रह्मपुत्र नदी (तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी) पर एक बड़ा बांध बना रहा है. इस परियोजना को यारलुंग त्सांगपो मेगा डैम नाम दिया गया है. इसकी घोषणा 2020 में हुई थी, काम इस पर 2024 में शुरू हुआ है. इसे करीब 1.14 लाख करोड़ रुपये (137 अरब डॉलर) की लागत से बनाया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट से 60 हजार मेगावॉट बिजली उत्पादन का अनुमान है. इस हिसबा से ये दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बन जाएगा.
दरअसल चीन जिस नदी पर बांध बना रहा है वो भारत में भी बहती है. तिब्बत से निकलने वाली यारलुंग त्सांगपो एक बहुत बड़ा यू टर्न लेते हुए अरुणाचल में सिआंग नदी बनकर घुसती है. नीचे असम में पहुंचकर दिबांग और लोहित जैसी उपनदियों में मिलकर ब्रह्मपुत्र बन जाती है. इसकी कुल लबाई 2,880 किलोमीटर है. इसका दो तिहाई हिस्सा करीबन 1625 किमी तिब्बत पठार में बहता है. फिर ये बंगाल की खाड़ी से होते बांग्लादेश पहुंच जाती है.
हिमालयन इलाकों में इस तरह का प्रोजेक्ट कई तरह के खतरे खड़े करता है. इससे पर्यावरण को तो खतरा है ही. साथ ही ये भारत के सुरक्षा घेरे को भी कमजोर करता है. जानकारों और अधिकारियों का दावा है कि बांध से चीन पानी का बहाव कंट्रोल करने लग जाएगा. भविष्य में कोई लड़ाई होने पर सीमा वाले इलाकों में ज्यादा पानी छोड़कर इसे वॉटर बम की तरह इस्तेमाल कर सकता है.
पेमा खांडू ने कहा कि अगर बांध पूरा हो जाता है तो सिआंग और ब्रह्मपुत्र नदी का पानी सूख सकता है. असम और अरुणाचल प्रदेश के लोगों की आजीविका के लिए इस नदी का पानी बहुत जरूरी है. दरअसल बांध बनने से बहाव रुक जाता है, जो खेती के लिए जरूरी होता है. बांध बनने से राज्यों की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा. 2020 में ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक लोई इंस्टीट्यू की तरफ से इस बांध को लेकर रिपोर्ट छापी गई थी. उसके मुताबिक तिब्बती पठार की नदियों पर कंट्रोल मिलने से चीन, भारतीय अर्थव्यवस्था को जब चाहे तब चोट पहुंचा सकेगा.
बांध से संभावित रिस्क कम किया जा सकता था, लेकिन चीन की नियत पर भरोसा नहीं किया जा सकता. चीन के साथ ट्रांस बॉर्डर वाली नदियों का डेटा साझा करने के लिए समझौते किए गए हैं. जैसे- अंब्रेला MoU, ब्रह्मपुत्र MoU और सतलुज MoU. लेकिन 2017 में डोकलाम विवाद और 2020 में लद्दाख सीमा पर तनाव के बाद चीन डेटा साझा करने में आनाकानी करता रहता है. खांडू ने कहा कि अगर चीन ने अंतरराष्ट्रीय जल संधि पर हस्ताक्षर किए होते, तो कोई समस्या नहीं होती. लेकिन वर्तमान में चीन पर किसी तरह की वैधानिक बाध्यता नहीं है, और इसी वजह से भारत के लिए खतरा बढ़ गया है.
भारत भी कर रहा है तैयारीभारत सरकार भी अपनी तरफ से डिफेंस तैयार कर रही है. भारत सरकार राज्य सरकार के साथ मिलकर 'सियांग अपर मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट' पर काम कर रही है. इस हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट से 10 गीगावाट बिजली उत्पादन होने का अनुमान है. चीन के जल आक्रामकता से निपटने में ये रक्षा कवच की तरह काम करेगा. पेमा खांडू ने कहा है कि चीन किसी भी जानकारी को साझा नहीं करता. इसलिए भारत को अपने स्तर पर तैयारी करनी होगी. उन्होंने बताया कि इस मसले पर वो स्थानीय जनजातियों के साथ बैठक करने जा रहे हैं, ताकि लोगों को इस मुद्दे पर जागरूक किया जा सके.
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