मुलायम की बहू के साथ इफ्तार पार्टी में राजनाथ.
राजनीति में दूसरे मजहब के प्रतीक अस्थायी तौर पर अपनाए जाएं या नहीं? क्या वे दो समुदायों के बीच भरोसा कायम करने में कारगर होते हैं?
ये सवाल सोशल मीडिया पर फिर कुलांचे भर रहा है. क्यों? क्योंकि मोदी सरकार में होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने मुस्लिम टोपी पहन ली है. सोमवार को वह लखनऊ में रोज़ा इफ्तार में शरीक हुए. जगह थी दिलकुशा इलाके की दरगाह हजरत कासिम. यहां सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव भी वहां थी. अपर्णा 2017 यूपी चुनाव में लखनऊ कैंट से सपा प्रत्याशी भी हैं. वह राजनाथ से मिलीं तो तुरंत उनके पांव छू लिए. फिर दोनों राजनीतिक विरोधियों ने साथ बैठकर इफ्तारी की. राजनाथ के सिर पर मुस्लिम टोपी चमक रही थी.
लेकिन इस चमक की जरूरत बीजेपी को कभी नहीं रही. यह हिंदुस्तानी राजनीति का बड़ा ही सुंदर दृश्य लग सकता है. लेकिन सोशल मीडिया तमाम सवाल खड़े कर रहा है. राजनाथ के टोपी पहनने से कुछ बीजेपी समर्थक खफा हैं, बल्कि कुछ तो मुलायम की बहू से शिष्टाचार निभाने की वजह से भी नाराज हो गए हैं.

'टोपी' पहनना सही है या नहीं, इस पर बड़े मतभेद अपने यहां रहे हैं. कुछ मानते हैं कि यह सिर्फ प्रतीक है और इससे दोनों समुदायों में भरोसा कायम होता है. कुछ इसे सिर्फ राजनीतिक फायदे और मुस्लिम तुष्टिकरण का हथकंडा मानते हैं. वे कहते हैं कि मुसलमानों का भला करने के लिए उनकी टोपी पहनना जरूरी नहीं. नीयत को तो आप कैसे आंकेंगे, लेकिन ये बात भी पर्याप्त लॉजिकल मालूम होती है. बीजेपी आम तौर पर इसमें दूसरे मत वाली पार्टी मानी जाती है. उसके ज्यादातर बड़े नेता मुस्लिम टोपी पहने हुए नहीं मिलते. बल्कि ठुकराते हुए जरूर मिल जाते हैं. राजनाथ की इन तस्वीरों से साल 2011 याद आ जाता है. जब एक 'सद्भावना सम्मेलन' में एक मौलवी साहब ने नरेंद्र मोदी को मंच पर मुस्लिम टोपी पहनानी चाही, लेकिन मोदी ने हाथ पकड़कर मना कर दिया. इस पर काफी विवाद हुआ और विपक्षी पार्टियों ने इसे मोदी के 'मुस्लिम विरोध' का सबूत बताया.

इसके तीन साल बाद 2014 में जब बीजेपी ने मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया और मोदी जब व्यापक स्वीकार्यता की खोज में निकले, तब उन्होंने एक इंटरव्यू में इस पर सफाई भी दी.
मोदी ने कहा था, 'अगर टोपी एकता का प्रतीक है तो किसी ने महात्मा गांधी, सरदार पटेल और पंडित नेहरू को कभी टोपी पहने नहीं देखा. दरअसल एक किस्म की कुरुपता भारतीय राजनीति में आ गई है कि जहां तुष्टिकरण के लिए कुछ भी किया जा सकता है. मेरा काम सारे समुदायों का सम्मान करना है, उनके मूल्यों का सम्मान करना है, लेकिन मेरे अपने भी मूल्य हैं. मैं अपने मूल्यों के हिसाब से जीता हूं. इसलिए मैं टोपी पहनकर, फोटो खिंचवाकर लोगों के साथ धोखा नहीं करता.'
लेकिन मोदी के इन विचारों से अवगत होने के बावजूद राजनाथ ने भी टोपी पहन ली है. सोशल मीडिया पर वे लोग जो बीजेपी से ज्यादा, मोदी को पसंद करते हैं, वे तो नाराज होंगे ही. हालांकि जानने वाले जानते हैं कि राजनाथ को पर्सनली कभी मुस्लिम टोपी पहनने से गुरेज नहीं रहा. बल्कि बीजेपी में वह अपेक्षाकृत रूप से धार्मिक तौर पर लिबरल नेता ही माने जाते हैं. लखनऊ के शिया मौलवियों से उनकी ठीक-ठाक बनती है. सब जानते हैं कि प्रदेश में उनकी राजनीति का आधार धर्म नहीं रहा, जाति ही ज्यादा रहा है. 2014 के उसी इंटरव्यू में मुसलमानों के बारे में अपना विजन बताते हुए मोदी ने कहा था, 'वह भले ही टोपी पहने, एक हाथ में कुरान भी रखे, लेकिन उसके दूसरे हाथ में कंप्यूटर होना चाहिए.' तो क्या हिंदू नेताओं को सेक्युलरिज्म साबित करने के लिए टोपी पहननी चाहिए? या मुस्लिम नेताओं को तिलक लगाना चाहिए? आपको क्या लगता है? [total-poll id=23978]