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भारत में बेरोजगारी की हालत बताने वाली संस्था के खिलाफ सरकार करेगी शिकायत?

संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था International Labour Organisation और Institute for Human Development (IHD) की इसी रिपोर्ट में पता चला था कि देश के कुल बेरोज़गारों में 83% युवा हैं, और शिक्षित बेरोज़गारों की स्थिति बदतर हुई है.

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भारत की बेरोज़गारी की स्थिति पर रिपोर्ट के ख़िलाफ़ शिकायत. (फ़ोटो - PTI)

इस साल के मार्च में संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था इंटरनैशनल लेबर ऑर्गनाइज़ेशन (ILO) और इंस्टीट्यूट फ़ॉर ह्यूमन डेवलपमेंट (IHD) ने एक रिपोर्ट जारी की थी. नाम, इंडियन एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024. इसमें भारत में ‘रोज़गार की स्थिति का ब्यौरा और चिंताएं’ थीं. अब ख़बर है कि भारत सरकार ILO के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करा सकती है. केंद्रीय श्रम मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि ILO ने भारत में रोज़गार परिदृश्य का जो आकलन किया है, सरकार उस मॉडल से संतुष्ट नहीं है.

रिपोर्ट में क्या कहा गया था?

साल 1919 में लीग ऑफ़ नेशंस के तहत स्थापित ILO संयुक्त राष्ट्र की पहली और सबसे पुरानी एजेंसियों में से एक है. काम है, अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों को निर्धारित करना, सामाजिक और आर्थिक न्याय को आगे बढ़ाना. संयुक्त राष्ट्र के कुल 193 सदस्य देशों में से 187 देश ILO का हिस्सा हैं. भारत तो इसका संस्थापक सदस्य भी है.

ये संस्था अलग-अलग देशों और उनकी बेरोज़गारी की स्थिति पर रिपोर्ट छापती रहती है. वैसे ही उन्होंने इंडियन एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट छापी. दो दशकों में हुए बदलावों के संदर्भ में युवा रोज़गार के सामने क्या नई चुनौतियां आई हैं? शिक्षा-कौशल में क्या चिंताएं हैं? रिपोर्ट इस बारे में थी…

  • युवा बेरोज़गारी हमारी अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा संकट है. कुल बेरोज़गारों में 83% युवा हैं. लेबर मार्केट संकेतकों में सुधार के बावजूद रोज़गार की स्थिति ख़राब है.
  • बेरोज़गारों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है. साल 2000 में माध्यमिक या उच्च शिक्षा वाले बेरोज़गार 35.2% थे, जो तब से दोगुना होकर 2022 में 65.7% हो गए हैं.
  • वेतन और मज़दूरी में अनुपातिक और उचित सुधार नहीं हुआ है.
  • लेबर मार्केट के रुझान कहते हैं कि वर्कफ़ोर्स भागीदारी दर में सुधार हुआ है. ख़ासकर महिलाओं के लिए. ख़ासकर 2019 के बाद. बेरोज़गारी दर में भी गिरावट आई है.
  • महिलाओं में स्वरोजगार बढ़ा है, लेकिन युवाओं में अन-पेड काम का अनुपात ज़्यादा है.

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आम चुनाव से कुछ हफ़्ते पहले ये रिपोर्ट छपी थी. द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, सरकार का मानना ​​है कि ILO जो डेटा इस्तेमाल कर रहा है, वो उनके डेटा से अलग है. उनके तरीक़े से भी अलग है.

अखबार की रिपोर्ट में अधिकारी के हवाले से कहा गया है,

“हम इस मामले को ILO के सामने उठाएंगे... देश में रोज़गार की अवधारणा बदल रही है. एक तरफ़, बहुत सारे लोग अपने स्टार्ट-अप खोल रहे हैं, आंत्रप्रेन्योर बन रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ़, औपचारिक रोज़गार में भी तेज़ी आ रही है.”

केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने पहले भी सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) जैसी प्राइवेट एजेंसियों के डेटा और रिपोर्ट पर संदेह व्यक्त किया है. केंद्र का ज़ोर रहता है कि पीरियॉडिक लेबर सर्वे में सही स्थिति रहती है.

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सरकार पहले बोराज़गारी की विस्तृत रिपोर्ट जारी करती थी. अब नहीं करती. हालांकि चर्चा है कि रोज़गार-बेरोज़गारी पर एक व्यापक डेटा मॉडल स्थापित करेगी.

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