न्यू इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, साईं सिन्थिलनाथन के सारे स्टूडेंट्स आर्थिक रूप से पिछड़े आदिवासी इलाकों से आते हैं. नीराड़ी, बिल्लुर और थोंड़ाई. इन बच्चों के परिवारवालों के पास इतने पैसे नहीं है कि वो अपने बच्चों के लिए त्योहार पर नए कपड़े खरीद पाएं. इसलिए सिन्थिलनाथन ने फ़ैसला लिया कि वो अपने स्टूडेंट्स को ये तोहफ़ा देंगे.
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब सिन्थिलनाथन ने ऐसा नेक काम किया हो. 2018 की दिवाली में भी सिन्थिलनाथन ने ऐसा ही कुछ किया था.

साईं सिन्थिलनाथन बराली गवर्नमेंट हाई स्कूल में पढ़ाते हैं. 2017 में इस स्कूल में 17 बच्चे पढ़ते थे. 2019 आते-आते इस स्कूल में 33 बच्चे पढ़ने लगे. इसके पीछे भी सिन्थिलनाथन का हाथ है. वो वहां रहने वाले आदिवासियों के घर गए. घर घर पर उन्होंने लोगों को पढ़ाई की अहमियत समझाई. उन्हें मनाया कि वो अपने बच्चों को स्कूल भेजें. दिक्कत ये थी कि स्कूल तक आने-जाने के लिए कईयों के पास कोई साधन नहीं था. बस एक सरकारी बस थी.
इसके बाद सिन्थिलनाथन समग्र शिक्षा पहुंचे. ये एक सरकारी संस्था है. वहां उन्होंने अधिकारियों को मनाया कि स्कूल की आर्थिक रूप से मदद करें. बच्चों को लाने ले जाने के लिए साधन उपलब्ध करवाएं. यही नहीं. वो राशन और सब्ज़ियां भी खरीदते हैं कि बच्चों को खाना मिल सके. स्कूल के बाकी अधिकारी और टीचर्स भी उनकी काफ़ी मदद करते हैं.
साईं सिन्थिलनाथन जैसे लोग हम सबके लिए मिसाल हैं.
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