
गाज़ीपुर लैंडफिल के ढहने से कई गाड़ियां नहर में जा गिरी.
इस घटना को महज़ हादसा मानना गलत होगा. असल में शहर पर आई ये आपदा लोगों और सरकार दोनों की ही उदासीनता का नतीजा है. सभी जैसे इसके आने का इंतजार कर रहे थे. हम में से लगभग सभी ने इसके पास से गुजरते वक्त ये जरूर सोचा होगा कि लोग इस जगह कैसे रहते हैं. साथ ही खुद को खुशकिस्मत भी माना होगा कि हमें कूड़े से घिरे पूर्वी दिल्ली के इस इलाके में नहीं रहना पड़ रहा है.
मगर जनाब ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है. जिस तरह से कूड़े की ये दिक्कत बढ़ रही है, वो आज नहीं तो कल हम सबको परेशान करने वाली है, फिर चाहे हम कहीं भी रहें. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण अपने यहां कूड़ा निस्तारण के लिए कोई ठोस नीति न होना है. नगर निगम का ये तर्क की वो भूसे की तरह भरे इस शहर में कूड़ा डालने की जगह ढूंढ रहा है, इसको साबित करने के लिए काफी है.
दिल्ली में रहने वालों की जनसंख्या जहां हर साल 3.5% की रफ्तार से बढ़ रही है तो 1.3% कूड़ा भी हर साल यहां बढ़ रहा है. शहर के चारों लैंडफिल- गाजीपुर, भाल्सवा, ओखला, नरेला-बवाना भी औकात से ज़्यादा भरे हुए हैं. इनमें कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है. कूड़े के इस पहाड़ के गिरने से जो दिक्कत हुई वो तो कुछ भी नहीं है. इससे भी बड़ी समस्या इनसे लगातार निकलने वाली मीथेन जैसी खतरनाक गैसें हैं. जोकि धीरे-धीरे आबोहवा को जानलेवा बना रही हैं. इन्हें स्लो पॉइजन ही समझें.

बड़ी मशक्कत से निकलीं गाड़ियां.
गाजीपुर लैंडफिल में आग लगना तो वैसे भी आम बात है. यही कारण है कि फायर ब्रिगेड की एक गाड़ी यहां तैनात ही रहती थी. जोकि ये बताने के लिए काफी है कि अपने यहां लोग किसी भी समस्या को खत्म करने में कितने लाचार हैं.
अब आप ही बताओ, इस बात को बताने के लिए आइंस्टीन की जरूरत तो नहीं पड़ेगी न कि शहर को ज्यादा लैंडफिल्स की जरूरत नहीं, बल्कि एक ठोस कूड़ा प्रबंधन नीति की है. वो भी तुरंत. मगर होता कुछ नहीं.
इनसे सीख सकता है दिल्ली
जापान के योकोहामा स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में तो सरकार, प्राइवेट कंपनियों के साथ ही आम लोगों ने भी सहयोग किया था. इसमें 435 स्क्वॉयर किलोमीटर कूड़े से भरे इलाके को एकदम चकाचक कर दिया गया था. यहां कूड़े से बिजली बनाने के लिए मशीनें लगाई गईं थीं. इसके लिए सबसे पहले कूड़े को अलग-अलग करने की नीति अपनाई गई. यानी पन्नी अलग, कागज अलग, गीला कूड़ा अलग, सूखा कूड़ा अलग वगैरह, वगैरह. इसमें लोगों का भी पूरा साथ मिला. शहर को साफ-सुथरा बनाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए सेमिनार का भी आयोजन किया गया. इससे लोगों में कम से कम कूड़ा इकट्ठा करने की भी जागरुकता बढ़ी. योकोहामा का प्रोजेक्ट जब शुरू हुआ तो यहां 7 वेस्ट से बिजली बनाने वाले प्लांट थे. मगर 5 साल में ही चमत्कारी रूप से ये घटकर 4 रह गए, क्योंकि इन प्लांटों में डालने के लिए कूड़ा ही नहीं था.
सड़क किनारे कूड़े के ढेर कोई नई बात नहीं हैं.
हम दिल्ली वाले तो इस मामले में बहुत पीछे चल रहे हैं. फिर भी शुरुआत तो करनी ही होगी. सबसे पहले तो हमें भी कूड़े को अलग-अलग करना सीखना होगा. लोगों के अंदर सिविक सेंस की जरूरत है. सबको अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी. अपने यहां लोग घर के बाहर पार्क किनारे कूड़ा डालकर खुद को चिंतामुक्त मान लेते हैं. ऐसे लोगों पर तो जुर्माना लगना चाहिए. शायद इसी के डर से ये अपनी जिम्मेदारी समझें. 2016 में केंद्र ने जो सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए हैं. उनमें ऐसे लोगों पर फाइन लगाने का प्रावधान भी है जो कूड़ा सही से अलग-अलग करके नहीं रखते हैं. नगर निगम या जिम्मेदार कंपनियों को इसका सहारा लेना चाहिए. यही नहीं घर से बाहर कुछ खरीदने जाते वक्त भी हम लोग कपड़े का बैग लेकर नहीं जाते. जानते हैं दुकानदार से पॉलीथीन तो मिल ही जाएगी. हमारी ये लापरवाही ही सबसे बड़ा जुर्म है.
सौ बातों की एक बात ये कि हमें ये समझना होगा कि ये धरती हमारे साथ खत्म नहीं होने वाली है. इसी पर हमारी आने वाली पीढ़ियां भी रहेंगी. ऐसे में हमारी ये जिम्मेदारी है कि हम इसका पूरा खयाल रखें.
अब नहीं डाला जाएगा यहां कूड़ा
दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने निर्देश हैं दिए हैं कि अब गाज़ीपुर लैंडफिल साइट पर कूड़ा नहीं डाला जाएगा. उन्हाेंने कहा कि पूर्वी दिल्ली नगर निगम इकट्ठा हुए कूड़े को तुरंत किसी अन्य वैकल्पिक जगह भेजें. विशेषायुक्त यातायात को निर्देश दिए कि वह लोगों की सुरक्षा के लिए यातायात के लिए तुरंत वैकल्पिक मार्ग सुनिश्चित करें. इसके साथ ही नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया इस कचरे का इस्तेमाल रोड बनाने में भी करने की बात कर रहा है.वीडियो भी देखें-
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