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14 दिसंबर को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों की तैयारी क्या है?

कृषि कानूनों के खिलाफ आज आंदोलन का 18वां दिन है.

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गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसान. फोटो- PTI
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का आज यानी रविवार को 18वां दिन है. सरकार और किसान नेताओं के बीच छह दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है. अब किसानों ने आंदोलन को तेज करने का फैसला किया है. आज रविवार 13 दिसंबर को किसानों की योजना दिल्ली-जयपुर हाईवे को जाम करने की है. इसके अलावा किसानों ने टोल प्लाजा फ्री करने और भूख हड़ताल करने का भी ऐलान कर दिया है.
किसानों का टोल पर कब्जा
सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत 12 दिसंबर को किसानों ने कई टोल प्लाजा पर कब्जा कर लिया और कर्मचारियों को टैक्स नहीं वसूलने दिया. दिल्ली के आसपास जितने भी टोल प्लाजा हैं, सभी पर किसानों ने शक्ति प्रदर्शन किया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में टोल पर किसानों के प्रदर्शन का असर दिखाई दिया.
भूख हड़ताल का ऐलान
Kisan Neta
मीडिया के सामने अपनी बात रखते किसान नेता कमलप्रीत सिंह बाएं और गुरनाम सिंह दाएं. फोटो साभार ANI

किसान नेताओं ने भूख हड़ताल का भी ऐलान किया है. किसान नेता कमलप्रीत पन्नू ने कहा कि सोमवार 14 दिसंबर को किसान पूरे देश के डीसी ऑफिसों (डिप्टी कमिश्नर ऑफिस) में विरोध प्रदर्शन करेंगे और हमारे प्रतिनिधि सुबह आठ से शाम पांच तक अनशन पर बैठेंगे. कमल प्रीत सिंह पन्नू ने कहा,
"14 दिसंबर को, सभी किसान नेता सिंघू बॉर्डर पर एक ही साझा मंच पर बैठेंगे. हम चाहते हैं कि सरकार तीनों फार्म बिल वापस ले, हम संशोधन के पक्ष में नहीं हैं."
इससे पहले शनिवार को किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा,
"अगर सरकार 19 दिसंबर से पहले हमारी मांगों को नहीं मानती है, तो हम उसी दिन गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस से उपवास शुरू करेंगे."
किसान संगठनों में दरार?
कुछ किसान संगठनों का रुख बाकी संगठनों से अलग दिख रहा है. राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक सरदार वीएम सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उनका संगठन सरकार से बातचीत के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि उनकी मांग MSP गारंटी कानून है. वहीं ऑल इंडिया किसान संघर्ष कमेटी ने उनके इस बयान से खुद को अलग कर लिया है.
इस बीच भारतीय किसान यूनियन (मान) हरियाणा के प्रदेश नेता गुणी प्रकाश के नेतृत्व में कुछ किसान नेताओं ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से बात की. इस दौरान किसान नेताओं ने कहा कि नए कानूनों को वापस ना लिया जाए और अगर ऐसा होता है वो वे प्रदर्शन करेंगे. ये लोग कानूनों के समर्थन में दिखे और बाकी किसानों द्वारा किए जा रहे आंदोलन को राजनीतिक करार दिया.
'बच्चा-बच्चा झोंक देंगे, जमीन पर कब्जा रोक देंगे'
किसानों के इस आंदोलन की कवरेज कर रहे हमारे साथी रजत शर्मा ने बताया कि 41 प्रमुख किसान संगठन इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं और सरकार के साथ बातचीत में शामिल हैं. पंजाब के सबसे बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन एकता उगराहां के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां और भारतीय किसान यूनियन एकता सिद्धूपुर के अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा है कि तीनों कानूनों की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है. साथ ही पराली और बिजली के मुद्दे भी अहम हैं.
रजत बताते हैं कि पंजाब से आए किसान 'बच्चा-बच्चा झोंक देयांगे, ज़मीन ते कब्ज़े रोक देयांगे' और 'तीनों कानून चकनाचूर, इससे कम नहीं मंज़ूर' जैसे नारे लगाते दिखाई देते हैं. किसानों के लिए ये काफी इमोशनल मुद्दा है और यही कारण है कि किसान नेता सरकार के साथ इससे कम पर समझौता करने को राजी नहीं हैं.

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