ये साल 1991 की बात है, आर्थिक मोर्चे पर भारत की हालत खस्ता थी. रुपये की कीमत 11 प्रतिशत तक गिर चुकी थी. ऐसे में कड़े क़दम उठाने की जरुरत थी. तबके प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने ये जिम्मेदारी सौंपी मशहूर अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) को, जो 1982 से 1985 तक RBI के गवर्नर रह चुके थे. और अब राव की सरकार में वित्त मंत्री बनाए जा रहे थे. इसके बाद मनमोहन सिंह की काबिलियत सबको दिखी. इस दौरान के उनके कुछ किस्से भी हैं. जिन पर समय-समय पर काफी चर्चा होती रही है. आज ये ही किस्से हम आपको बता रहे हैं.
सब चिढ़ाते थे 'एक परसेंट सिंह' कहकर, मनमोहन सिंह ने भेज दिया तीन बार इस्तीफा
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री Dr Manmohan Singh ने गुरुवार, 26 दिसंबर की रात दुनिया को अलविदा कह दिया. वो 92 साल के थे. उनके जीवन से जुड़े तमाम किस्से-कहानियों की इस वक्त खूब चर्चा हो रही है. ऐसे ही कुछ किस्से आप भी पढ़िए.

किस्सा -1. जब गुस्से में मनमोहन सिंह ने नरसिम्हा राव को तीन बार इस्तीफा भेज दिया
एक मजेदार किस्सा है कि वित्त मंत्री रहते मनमोहन सिंह को शुरूआती दिनों में 1 परसेंट सिंह बुलाया जाता था. अपनी आलोचना से तंग आकर उन्होंने तीन बार पीएम नरसिम्हा राव को अपना इस्तीफा भेजा. क्या थी इसके पीछे की पूरी कहानी, आइए जानते हैं-
- ये किस्सा लिया है, “1991: How PV Narasimha Rao Made History” किताब से. इसे लिखा है, मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू ने. जिन्होंने उन पर एक किताब भी लिखी है. चर्चित पुस्तक, “The Accidental Prime Minister.”
इतिहास में दर्ज है कि राव को संसद में बहुमत की सरकार पाने में दो बरस लगे. इससे पहले नेहरू-गांधी परिवार से बाहर ये काम कोई नहीं कर पाया था. न ही गुजरात के मोरारजी देसाई. न ही यूपी के चरण सिंह या वीपी सिंह. पर अब सरकार तो बन गयी थी, लेकिन चलानी भी थी. जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि आर्थिक मोर्चे पर भारत की हालत खस्ता थी. रुपये की कीमत 11 प्रतिशत तक गिर चुकी थी. ऐसे में कड़े क़दम उठाने की जरुरत थी. राव ने ये जिम्मेदारी सौंपी, मशहूर अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को, जो आरबीआई के गवर्नर रह चुके थे. राष्ट्रपति वेंकटरमन ने भी नरसिम्हा राव को मनमोहन का नाम सुझाया था. हालांकि उनसे पहले आरबीआई के पूर्व गवर्नर आई. जी. पटेल को ये जिम्मेदारी दी जा रही थी. लेकिन, उन्होंने मना कर दिया. इसके बाद बात मनमोहन सिंह पर फाइनल हो गई.

इन्हीं दिनों का मजेदार किस्सा है कि मनमोहन सिंह को शुरूआती दिनों में ‘1 परसेंट सिंह’ बुलाया जाता था, क्योंकि उन्होंने ये घोषणा की थी कि वे महंगाई दर को 1 परसेंट पर ले आएंगे. वित्त मंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने पार्टी के कद्दावर नेताओं मसलन, अर्जुन सिंह, एके एंटनी और वाम कांग्रेस की आलोचना से तंग आकर, तीन बार अपना इस्तीफा नरसिम्हा राव को भिजवा दिया था. और नरसिम्हा राव ने हर बार लौटा दिया, उनका यही रटा-रटाया जवाब होता कि
“इस आलोचना का केंद्र मैं हूं, तुम अपने पर मत लो.”
तीसरी बार वाला इस्तीफा पाने पर तो राव ने चिढ़कर कहा था-
“मनमोहन दावा करते हैं कि वे राजनेता नहीं हैं, जब वे एक वित्त मंत्री के पद पर हों तो ऐसा कैसे कह सकते हैं कि वे राजनेता नहीं हैं.”
24 जुलाई, 1991 की 31 पन्नों के अठारह हजार शब्दों की उस मशहूर बजट स्पीच को याद कीजिये, जिसमें सिंह कहते हैं-
“सारी दुनिया स्पष्ट और ऊंची आवाज में सुन ले कि भारत जाग चुका है. हम इस दौर से और मजबूत होकर निकलेंगे.”
किस्सा-2. जब मनमोहन सिंह ने इंदिरा गांधी को अपना फैसला पलटने पर मजबूर कर दिया था.
ये किस्सा लिया है, “RBI Governors: The Czars of Monetary Policy (1935-2021)” किताब से. इसे छापा है रूपा प्रकाशन ने. इसमें आरबीआई के पहले गवर्नर ओस्बोर्न स्मिथ से लेकर अभी के गवर्नर शक्तिकांत दास तक के काम और उनके किस्से बयां किये गए हैं. इसके लेखक हैं, गोकुल राठी जिन्हें तीन दशक से अधिक का भारत के बैंकिंग सिस्टम का अनुभव है. और पेशे से वो एक चार्टेड अकाउंटेंट हैं. इस किताब की प्रस्तावना लिखी है, नितिन गडकरी ने.
पहले आरबीआई की संरचना को मोटा-माटी समझते हैं. 1935 में स्थापित आरबीआई साल 1949 तक एक प्राइवेट शेयरहोल्डर बैंक था. बाद में सन 1949 में हुआ इसका राष्ट्रीयकरण. आरबीआई के गवर्नर के पास भारत की वित्त व्यवस्था में काफी प्रिविलिज की पोजीशन होती है. उनके पास मुल्क के किसी भी बैंक को उसके बिजनेस या काम को लेकर निर्देश देने की पूरी अथॉरिटी होती है.

बात करते हैं मनमोहन सिंह की जो सितंबर 1982 से जनवरी 1985 तक आरबीआई के गवर्नर थे. और उनके वित्त मंत्री हुआ करते थे, प्रणब मुखर्जी. बाद में इक्कीसवीं सदी के शुरूआती दशक में जब मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बनते हैं तो, प्रणव दा उनके मंत्रिमंडल में फाइनेंस मिनिस्ट्री संभाल रहे थे.
खैर मनमोहन के किस्से पर लौटते हैं. जब आरबीआई गवर्नर रहते हुए मनमोहन सिंह ने इंदिरा गांधी को अपना फैसला पलटने पर मजबूर कर दिया. मामला ये था कि इंदिरा सरकार ने तय किया कि विदेश की बैंकों की जो अलग-अलग शाखाएं होती हैं. उन्हें अब से आरबीआई लाइसेंस नहीं देगा. मनमोहन सिंह को लगा कि ये आरबीआई की स्वायत्तता पर, उसकी ऑटोनोमी पर एक खतरा है. तो उन्होंने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इस्तीफा भेज दिया. बाद में वो इंदिरा गांधी को ये मनाने में कामयाब रहे कि कैबिनेट का फैसला सही नहीं था. इसलिए ये पॉलिसी कभी लागू ही नहीं हुई और अंतत: भुला दी गई. मनमोहन सिंह ने एक बार टिप्पणी की थी कि आरबीआई और सरकार के बीच में रिश्ते पति-पत्नी की तरह होते हैं. और उन्हें आपसी मतभेदों को इस तरह सुलझाना चाहिए कि दोनों संस्थाएं सामंजस्य के साथ काम कर सकें.
किस्सा-3. मनमोहन सिंह की पत्नी के जवाब से चौंक गया अधिकारी
फेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स एन्ड इंडस्ट्री (फिक्की) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में वित्तमंत्री मनमोहन सिंह को बतौर वक्ता भाग लेना था. इस कार्यक्रम में उनकी पत्नी गुरशरण कौर को भी आमंत्रित किया गया था. मनमोहन सिंह सीधे अपने कार्यालय से कार्यक्रम स्थल के लिए रवाना हो गए. गुरशरण कौर को लेने एक उप सचिव नई दिल्ली स्थित उनके घर पहुंचा. स्वाभाविक रूप से इस अधिकारी को लगा था कि भारत के वित्तमंत्री के घर कई सरकारी वाहन होंगे. जिससे वो वित्तमंत्री की पत्नी को आयोजन स्थल तक ले जाएगा.

लेकिन घर पहुंचकर वो चौंक गया. जब वित्तमंत्री की पत्नी ने बताया कि मंत्री के पास एक ही सरकारी वाहन है. जिसका इस्तेमाल वे खुद करते हैं. ये सुनकर अधिकारी तो सुन्न रह गया लेकिन गुरशरण कौर सामान्य थीं. उन्होंने मंद-मंद मुस्कुराते हुए अधिकारी के सामने प्रस्ताव रखा कि वे चाहें तो उनकी मारुति 800 कार ड्राइव कर आयोजन स्थल तक पहुंच सकते हैं. अंत में हुआ भी ऐसा ही.
वीडियो: योगी सरकार के मंत्री ने सुनाया मनमोहन सिंह का किस्सा, ‘BMW नहीं, मेरी गाड़ी मारुति 800 है…’