राजेंद्र सिंह, 2008 में मध्य प्रदेश की रिज़र्व्ड सीट गुना से MLA चुने गए थे. जब चुनाव जीत गए तो चर्चा शुरू हुई कि आरक्षित सीट से चुनाव लड़ सकें इसलिए फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवा लिया. जबकि जनरल कैटिगरी से आते थे. फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाकर दावा किया कि वो सांसी कम्युनिटी से आते हैं, जिन्हें शेड्यूल कास्ट में गिना जाता है. साल 2014 में बात ऐसी खुली कि कोमल प्रसाद शाक्य नाम की महिला ने कंप्लेंट फ़ाइल की कि राजवेंद्र सिंह ने चुनाव लड़ने के लिए चीटिंग, फ़्रॉड और क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी की है. राजवेंद्र के साथ-साथ तीन और लोगों पर आरोप लगे, पिता- अमरीक सिंह, लोकल काउंसलर- किरण जैन और गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के हेड- हरवीर सिंह. इन सभी पर आरोप यह था कि उन्होंने राजवेंद्र सिंह की मदद की है. साज़िश को अंजाम दिया है. इसलिए कॉन्सपिरेसी का हिस्सा ये तीन भी माने गए.
फर्जी जाति प्रमाण पत्र से MLA बने, अब क्या हुआ?
पूर्व MLA राजेंद्र सिंह पर आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के लिए फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाने का आरोप है. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए उन पर दोबारा धोखाधड़ी और साजिश के आपराधिक केस बहाल किए हैं.


केस पहले गया लोअर कोर्ट. लोअर कोर्ट ने राय रखी कि ऐसा भी तो हो सकता है कि राजेंद्र सिंह और उनके पिता को सच-मुच अपनी जाति के बारे में जानकारी न रही हो- यही राजेंद्र की दलील भी थी. लोअर कोर्ट की बात से असंतुष्ट होकर अपील पहुंची मध्य प्रदेश हाईकोर्ट. हाईकोर्ट ने भी साल 2016 में लोअर कोर्ट के फैसले को जारी रखा.
भले सालों साल लग गए हों लेकिन 2025 में अपील अंततः पहुंची सुप्रीम कोर्ट. और सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के ऑर्डर को किनारे रख दिया. कहा- हाईकोर्ट ने अच्छे से जांच-पड़ताल की ही नहीं बस आसानी से राजेंद्र सिंह के दलील को स्वीकार लिया. कोर्ट ने 14 अक्टूबर 2025 को साफ़-साफ़ कहा कि इस केस को देखते ही समझ आता है कि कुछ मेजर घपला किया गया है. ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व MLA राजेंद्र सिंह के ऊपर दोबारा क्रिमिनल चार्जेज़ लगाए. यानी उनके खिलाफ शुरुआत में लगे चार्जेज़ को रिवाइव कर दिया. जैसे- IPC की धरा 420- चीटिंग, 467- डॉक्युमेंट्स को फॉर्ज करना, धारा 471- फॉर्ज डॉक्युमेंट्स को ओरिजिनल की तरह इस्तेमाल करना.
अब देखना इंट्रेस्टिंग होगा कि सुप्रीम कोर्ट केस के अंतिम फैसले में क्या कहती है.
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