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दो दिन में कैसे तय हुआ कि EWS आरक्षण मिलने वाला है?

आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों यानी EWS को मिलने वाले आरक्षण की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है.

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EWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने सुनवाई की. (फाइल फोटो)

आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों यानी EWS को मिलने वाले आरक्षण की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट का एक अहम फैसला आ गया है. सोमवार, 7 नवबंर को सुप्रीम कोर्ट ने 3:2 के बहुमत से EWS कोटे को सही बताया है. CJI यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ में शामिल तीन जजों ने कहा कि EWS आरक्षण संवैधानिक है और ये संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.

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हालांकि, फैसला EWS कोटे के समर्थन में जाने के बावजूद दिलचस्प है. इसकी एक वजह तो यही है कि पांच में से दो जजों ने बहुमत वाले जजों से अलग राय रखी है. उन्होंने EWS रिजर्वेशन को उल्लंघन करने वाला तो नहीं बताया, लेकिन ये भी कह दिया कि EWS आरक्षण के लिए लाया गया 103वां संविधान संशोधन उन्हीं भेदभावों की प्रैक्टिस करता है, जिनकी संविधान में मनाही है. दूसरी बड़ी वजह ये कि ये राय देने वाले जजों में जस्टिस रवींद्र भट्ट के साथ CJI यूयू ललित भी शामिल हैं.

दोनों जजों की ये राय हमें जनवरी 2019 में ले जाती है. जब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 103वें संविधान संशोधन के जरिए EWS के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण सुनिश्चित किया था. तब से लेकर आज तक ना सिर्फ EWS कोटे पर तकनीकी बहस छिड़ी हुई है, बल्कि इसे लागू करने के केंद्र के तरीके पर भी सवाल उठते रहे हैं.

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कैसे लागू हुआ था EWS आरक्षण?

सात जनवरी, 2019. केंद्र सरकार की मंत्री परिषद सामान्य वर्ग के आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण लागू करने के प्रस्ताव को हरी झंडी देती है. ये तय किया गया कि ये आरक्षण अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को मिल रहे कुल 49.5 फीसदी आरक्षण में हस्तक्षेप नहीं करेगा, बल्कि अलग से दिया जाएगा.

इसके लिए जरूरी था संविधान में बदलाव. सो सरकार अगले ही दिन यानी आठ जनवरी, 2019 को संविधान संशोधन बिल ले आई. उसी दिन इसे पारित भी करा लिया. बिल पारित कराने की ये जल्दबाजी नौ जनवरी, 2019 को भी दिखी. बिल को ऊपरी सदन में लाने और पारित कराने का काम आनन-फानन में कर दिया गया. देश के इतने बड़े और संवेदनशील मुद्दे से जुड़े विधेयक को सरकार ने 48 घंटों के अंदर पारित करा लिया था. इसके तीन दिन बाद ही 12 जनवरी, 2019 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी के साथ विधेयक को कानून का रूप दे दिया गया.

विपक्षी दलों ने सरकार के इस तरीके पर सवाल उठाए. कहा गया कि मई 2019 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ये बिल लाकर केंद्र ने वोट की राजनीति की है. ये भी ध्यान देने की बात है कि संसद में बिल लाने से पहले सांसदों को इसकी कॉपी तक नहीं दी गई थी. इतने महत्वपूर्ण बिल पर बहस के लिए विभागीय समितियों को शामिल किया जाता है. आरोप लगा कि EWS आरक्षण से जुड़े बिल के मामले में ऐसा नहीं किया गया. सरकार के आलोचकों का कहना है कि उसका रवैया संवैधानिक रूप से नैतिक और शिष्ट नहीं था, क्योंकि बिल पर संसद में ना तो ठीक से बहस हुई, ना ही उसकी समीक्षा हो सकी.

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आय सीमा का मुद्दा

ये विवाद की शुरुआत थी. बात अभी आगे जानी थी. 14 जनवरी, 2019 को केंद्र ने EWS कोटा लागू कर दिया. इसके साथ ही सामान्य वर्ग के आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित हो गया. तीन दिन बाद सरकार आधिकारिक मेमोरेंडम जारी कर बताती है कि सालाना आठ लाख रुपये की आय वाले परिवार EWS की श्रेणी में आएंगे और उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाएगा. इस प्रावधान पर सवाल उठे. कहा गया कि सरकार ने किस आधार पर आठ लाख रुपये की आय सीमा तय की. 

सरकार का दावा रहा है कि उसने स्टडी के आधार पर ही आठ लाख रुपये की सीमा निर्धारित की है. हालांकि, SC/ST/OBC आरक्षण के समर्थकों और कई कानूनी जानकार इस पर सवाल उठाते हैं. वो बार-बार पूछते रहे हैं कि आखिर सरकार ने कौन सी स्टडी की है.

अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 2022 में NEET परीक्षा से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज और अब CJI बनने जा रहे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सवाल किया था,

"14 जनवरी को संशोधन हुआ. 17 जनवरी को आधिकारिक मेमोरेंडम आया. यानी सामाजिक न्याय मंत्रालय से राय-मशविरा, विचार-विमर्श वगैरा की पूरी प्रक्रिया महज तीन दिन में पूरी होकर 17 जनवरी तक सारा काम खत्म कर दिया गया?"

इस पर तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि सरकार ने आय सीमा ऐसे ही तय नहीं की, बाकायदा स्टडी के आधार पर ही इसे निर्धारित किया है. तब बेंच में शामिल दूसरे जज एएस बोपन्ना ने सरकार के वकील को अक्टूबर 2020 का एक हलफनामा याद दिलाया. उसमें कहा गया था कि आय सीमा वाला क्राइटेरिया तो OBC कोटे के क्रीमी लेयर की ‘पहचान’ के लिए लाया गया था. लेकिन आय सीमा के निर्धारण से जुड़े विवाद को सुलझाने के लिए बनाई गई समिति ने 31 दिसंबर, 2020 को कोर्ट में बयान दिया कि EWS के लिए दी गई आय सीमा OBC के क्रीमी लेयर पर आधारित नहीं है.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने समिति के बयान का हवाला देकर कहा था कि ये सब बातें करके सरकार की कमेटी केवल आय सीमा को जस्टिफाई करने की कोशिश कर रही है.

आठ लाख रुपये की आय सीमा को लेकर आपत्तियां और भी हैं. मसलन, इसकी वजह से वे लोग भी EWS के लिए अप्लाई कर सकते हैं जिनकी आय ज्यादातर आवेदकों से तुलनात्मक रूप में काफी ज्यादा है. ऐसे लोगों में कई आवेदक बाकायदा इनकम टैक्स फाइल करते हैं, जबकि कोटा आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए है. हालांकि, इस पर सरकार का कहना है कि EWS के लिए आय सीमा की शर्तें काफी स्ट्रिक्ट हैं और इसका मतलब पूरे परिवार की आय से है, ना कि किसी एक व्यक्ति की.

50 पर्सेंट से ज्यादा हो गया आरक्षण

EWS कोटे के आलोचक केशवानंद भारती और इंदिरा साहनी वाले मामलों का हवाला देते हैं. वो कहतें है कि पांच दशक पहले केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की पीठ ने कहा था कि संसद को कानून बनाने का पूरा अधिकार है, लेकिन उससे संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं होना चाहिए, जो 103वें संशोधन से हुआ है.

इसके अलावा इंदिरा साहनी वाले मामले को भी पहले से चली आ रही आरक्षण व्यवस्था से 'छेड़छाड़' के विरोध में इस्तेमाल किया जाता रहा है. उस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट की ही 9 जजों की बेंच ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी. लेकिन EWS के आने के बाद आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा हो गया है. वो ऐसे कि SC-ST कैटेगरी के लिए 22.5 फीसदी आरक्षण दिया जाता है और OBC को मिलता है 27 पर्सेंट रिजर्वेशन. कुल हो गया 49.5 फीसदी. 10 पर्सेंट EWS कोटा आने के बाद आरक्षण हो गया 59.5 फीसदी. अब ये आरोप लग रहे हैं कि इस फैसले में 50 फीसदी की सीमा का ध्यान नहीं रखा गया. 

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