दुनिया के तमाम देश प्रदर्शन और प्रतिरोध की आवाजों को दबाने के लिए गोपनीय तरीके से तरह-तरह की महंगी हैकिंग तकनीकियों का सहारा ले रहे हैं. ये टूल्स न सिर्फ व्यक्ति के मोबाइल फोन, लैपटॉप और अन्य इलेक्ट्रॉनिक इिवाइस को हैक कर सकते हैं, बल्कि ये उनके सिस्टम में 'आपत्तिजनक' सामग्री भी डाल सकते हैं.
एल्गार परिषद केस: क्या पुणे पुलिस ने ही आरोपियों के सिस्टम को हैक कर उनमें सबूत प्लांट किए?
एक अंतरराष्ट्रीय साइबर सिक्योरिटी फर्म 'सेंटिनेलवन' ने अपनी जांच के बाद जो दावा किया है वो हिलाकर रख देगा

इसका मतलब ये है कि यदि आप पुलिस या प्रशासन के निशाने पर हैं, तो भले ही आपने कोई गैरकानूनी गतिविधि नहीं की होगी, लेकिन आपके सिस्टम को हैक करके ऐसी चीजें उसमें डाली जा सकती हैं, जो कि देश विरोधी या फिर किसी आतंकी, उग्रवादी या माओवादी गतिविधियों से जुड़ी होंगी. और फिर इसी आधार पर पुलिस आपको गिरफ्तार भी कर लेगी. ये पूरी कार्यवाही बेहद सुनियोजित तरीके से आपके साथ की जाती है.
ये कहानी हम आपको इसलिए बता रहे हैं क्योंकि चर्चित भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले को लेकर पुणे पुलिस पर भी इसी तरह के गंभीर आरोप लगाए गए हैं.
अमेरिका के कुछ सिक्योरिटी विशेषज्ञों ने दावा किया है कि उनके हाथ कुछ ऐसे प्रमाण लगे हैं, जिसके आधार पर ये पुष्टि की जा सकती है कि कार्यकर्ता रोना विल्सन, कवि वरवरा राव और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू के ई-मेल अकाउंट को हैक करने में पुणे पुलिस की भूमिका थी.
ये तीनों लोग एल्गार-परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए 16 लोगों में शामिल हैं. इनमें से एक 84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी थे, जो कि कई सालों से झारखंड में आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ रहे थे. लेकिन पिछले साल जुलाई महीने में उनकी मौत हो गई थी.
ये मामला इसलिए काफी हाई-प्रोफाइल है, क्योंकि इसमें देश के कई नामचीन कार्यकर्ताओं, विशेषज्ञों, वकीलों, कलाकारों को आरोपी बनाया गया है.
31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में एल्गार परिषद नामक एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इसमें देश के कई नामी बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया. ये कार्यक्रम भीमा कोरेगांव लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर आयोजित की गई थी.
भीमा कोरेगांव वही जगह है जहां एक जनवरी 1818 को पेशवा और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच ऐतिहासिक जंग हुई थी. इसमें महार रेजिमेंट की बदौलत अंग्रेजी सेना ने पेशवाओं को हरा दिया था. पेशवा के शासन में कई घोर जातिवादी नीतियां लागू की गईं थी और महारों पर अत्याचार किए गए थे. इसलिए इस दिन को महारों के ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. हर साल एक जनवरी को बड़ी संख्या में दलित समुदाय के लोग यहां इकट्ठा होते हैं और महार योद्धाओं को श्रद्धांजलि देते हैं.
हालांकि, एल्गार परिषद कार्यक्रम की समाप्ति के बाद 2 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़क गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई लोग घायल हुए. इसे लेकर पुणे पुलिस ने आरोप लगाया कि एल्गार परिषद कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण दिए गए थे, जिसके कारण कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई.
इसके साथ ही पुलिस ने यह भी दावा किया कि इस सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था. ये चीज काफी चौंकाने वाली थी. उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में जाति के नाम पर उकसाकर पुणे समेत अलग-अलग जगहों पर हिंसा कराई गई है. इसके बाद पुलिस ने एक-एक कर दर्जन भर से अधिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और वकीलों को इसमें आरोपी बनाया.
इस केस में गिरफ्तार होने वालों में नागपुर यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य विभाग की प्रमुख रह चुकीं शोमा सेन, वकील अरुण फरेरा और सुधा भारद्वाज, लेखक वरवरा राव, कार्यकर्ता वर्नोन गॉन्जाल्विस, कैदियों के अधिकार के लिए काम करने वाले रोना विल्सन, यूएपीए विशेषज्ञ और नागपुर से वकील सुरेंद्र गाडलिंग, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू, लेखक और मुंबई के दलित अधिकार कार्यकर्ता सुधीर धावले, विस्थापितों के लिए काम करने वाले गढ़-चिरौली के युवा कार्यकर्ता महेश राउत और कबीर कला मंच के कलाकार सागर गोरखे, रमेश गायचोर और ज्योति जगताप शामिल हैं.
पुणे पुलिस पर लगे आरोपकरीब दो सालों तक पुणे पुलिस ने इस मामले की जांच की थी. फिलहाल यह केस एनआईए के अंडर में है. लेकिन कई डिजिटल फॉरेंसिक विशेषज्ञों ने इस केस में इकट्ठा किए गए सबूतों पर सवाल उठाया है. इस केस में तमाम सबूत आरोपियों के फोन, लैपटॉप, कम्प्यूटर, पेन ड्राइव जैसे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से जुटाए गए हैं.
इसे लेकर अभी तक मैसाचुसेट्स स्थित डिजिटल फॉरेंसिक फर्म ‘आर्सेनल कंसल्टिंग’ ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कार्यकर्ता रोना विल्सन के कंप्यूटर में सेंधमारी की गई थी और हैकिंग के जरिये उनके कंप्यूटर में आपत्तिजनक पत्र प्लांट किए थे.
अब ‘सेंटिनेलवन’ का खुलासाइस मामले पर अब एक अन्य साइबर सिक्योरिटी फर्म सेंटिनेलवन (SentinelOne) के अमेरिकी विशेषज्ञों ने खुलासा किया है. इन्होंने दावा किया है कि एल्गार परिषद मामले के एक नहीं, बल्कि तीन आरोपियों के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के साथ छेड़छाड़ की गई थी और इसमें पुणे पुलिस विभाग की भूमिका थी.
Wired मैगजीन को एक सिक्योरिटी रिसर्चर ने बताया,
'इस बात को साबित करने के प्रमाण हैं कि जिसने इन लोगों के सिस्टम में 'साक्ष्य' प्लांट किए और जिसने इन्हें गिरफ्तार किया, उन दोनों के बीच कनेक्शन है.'
उन्होंने आगे कहा,
पुलिस अधिकारियों के नंबर मिले!'यह नैतिक रूप से समझौते से परे की बात है. यह कठोरता से भी परे है. इसलिए हम इन पीड़ितों की मदद करने की उम्मीद में जितना हो सके उतना डेटा आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.'
साइबर सिक्योरिटी फर्म सेंटिनेलवन ने मामले के एक आरोपी रोना विल्सन के 100 से अधिक हैक किए गए इ-मेल का अध्ययन किया. इसके बाद फर्म ने बताया कि साल 2012 से ही रोना विल्सन के ऊपर साइबर अटैक हो रहा था. साल 2014 में जाकर यह और बढ़ गया और साल 2016 तक लगातार उन पर का अटैक होता ही रहा.
अपनी इस जांच के दौरान इस सिक्योरिटी फर्म ने ये भी पाया कि हैकर्स ने एक बैकअप मैकेनिज्म तैयार कर रखा था, ताकि वे कभी भी इनके (विल्सन, बाबू और राव के) ई-मेल को अपने कंट्रोल में ले सकें. उन्होंने (फर्म ने) जब ये जानना चाहा कि इस बैकअप में किसके ई-मेल और फोन नंबर दर्ज हैं, तो उन्हें पता चला कि इसमें पुणे पुलिस के उन अधिकारियों के नाम हैं, जो भीमा कोरेगांव केस की जांच कर रहे हैं.
सेंटिनेलवन ने अन्य रिसर्चर्स जैसे कि इंटरनेट संबंधी काम करने वाली सिटिजन लैब के साथ इस पर और जांच की, जिसमें इस बात कि पुष्टि हुई कि रिकवर किए गए ई-मेल और फोन नंबर पुणे पुलिस अधिकारियों के ही हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है,
'सिक्योरिटी रिसर्चर ज़ेशान अज़ीज़ ने TruCaller के लीक हुए डेटाबेस से पता लगाया कि ये ईमेल एड्रेस और फोन नंबर पुणे पुलिस अधिकारियों के हैं. उन्होंने iimjobs.com (भारत की एक नौकरी भर्ती वाली वेबसाइट) के लीक हुए डेटाबेस से फोन नंबरों की पुष्टि की है.'
एक सिक्योरिटी विशेषज्ञ ने Wired को इन चीजों को सार्वजनिक करने के पीछे की वजह बताते हुए कहा,
'हम आमतौर पर लोगों को ये नहीं बताते हैं कि उन्हें किसने निशाना बनाया, लेकिन ये सब देखते-देखते मैं एक तरह से थक गया हूं.'
उन्होंने आगे कहा कि प्रशासन ये सब करके किसी आतंकवादी को नहीं पकड़ रहाहै, बल्कि वह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के पीछे पड़े हुए हैं.