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सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर अब जो कहा है, केंद्र सरकार को दिक्कत हो जाएगी?

इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से नाराजगी जताई है. अदालत ने चुनाव आयोग को कुछ महत्वपूर्ण जानकारियों को उपलब्ध कराने का निर्देश भी दिया है.

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सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले चंदे की जानकारी सबको क्यों नहीं दे सकते? (फाइल फोटो: पीटीआई)

इलेक्टोरल बॉन्ड पर तीन दिनों की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट (Electoral Bond Supreme Court) ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. इस बहस में सबसे बड़ा मुद्दा ये है कि किसी राजनीतिक पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कौन और कितना चंदा देता है, ये जानकारी आम लोगों को मिलनी चाहिए या नहीं. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि सरकार के इस तर्क को स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल है कि वोटर्स को चंदा देने वाले की पहचान जानने का अधिकार नहीं है.

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दरअसल, सुनवाई शुरू होने के एक दिन पहले ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था. इसमें बताया गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी हासिल करने का अधिकार ‘तर्कसंगत प्रतिबंधों’ के तहत आता है. मतलब, जरूरत पड़ने पर सूचना देने से मना किया जा सकता है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2 नवंबर को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2018 में कुछ 'गंभीर कमियां' है. इसको ध्यान में रखते हुए एक बेहतर योजना तैयार की जा सकती है.

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भारत के मुख्य न्यायधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (D Y Chandrachud) के नेतृत्व वाली पांच न्यायधीशों की बेंच इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही है. बेंच में CJI के आलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं.

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सुनवाई के तीसरे दिन बेंच ने चुनाव आयोग (Election Commission) से कहा कि 30 सितंबर, 2023 तक राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड से कितना पैसा मिला है, उसकी जानकारी दें. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोर्ट ने पार्टियों को मिली फंडिंग का डेटा नहीं रखने पर चुनाव आयोग से नाराजगी जताई है.

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इस दैरान जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि हम इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले चंदे की जानकारी सबको क्यों नहीं दे सकते? उन्होंने कहा कि इन पैसों के बारे में सभी जानते हैं, एकमात्र व्यक्ति जिसे इसकी जानकारी नहीं दी जाती, वो है वोटर. जस्टिस खन्ना ने सरकार के उस तर्क पर असहमति जताई जिसमें कहा गया है कि वोटर्स को फंडिंग करने वाले की पहचान जानने का अधिकार नहीं है.

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उन्होंने ये बातें तब कहीं, जब सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पार्टी को यह पता होता है कि उसे चंदा कौन दे रहा है. उन्होंने कहा ऐसी कोई व्यवस्था नही हो सकती जिसमें चंदा देने और लेने वाले को एक-दूसरे का पता न हो.

इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले चंदे की जानकारी सबको क्यों नहीं दे सकते? इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ऐसा करने से चंदा देने वाले की गोपनीयता खत्म हो जाएगी. चंदा देने वाले को उत्पीड़न से बचाने के लिए इस गोपनीयता को बनाए रखा जाता है.

अब तक क्या हुआ?

31 अक्टूबर को इस मामले में सुनवाई शुरू हुई थी. इससे पहले, सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कुछ गंभीर सवाल पूछे थे. बीते 1 नवंबर को CJI चंद्रचूड़ ने पूछा था कि ऐसा क्यों है कि जो पार्टी सत्ता में होती है, उसे सबसे ज्यादा चंदा मिलता है? अदालत ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड लोगों तक सूचना पहुंचाने में रुकावट पैदा कर सकता है.

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