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इंडिया में रोज 3300 लोग करते हैं सुसाइड की कोशिश

दुखद, पर 300 लोग सुसाइड की कोशिश में सफल हो जाते हैं.

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फोटो - thelallantop
साल 2012 22 साल का बालमुकुंद. उत्तर प्रदेश के कुंडेश्वर से. दसवीं बारहवीं का टॉपर. आईआईटी और एम्स दोनों एग्जाम निकाले. पर एम्स गया. 50 साल के इतिहास में गांव से पहला लड़का जो डॉक्टर बनने गया. दो साल बाद उसने आत्महत्या कर ली. वो झेल नहीं पाया. क्योंकि लोग उसे स्वीकार कर नहीं पाए. क्योंकि वो 'दलित' था. साल 2016 27 साल का रोहित वेमुला. हैदराबाद यूनिवर्सिटी का टॉपर. आत्महत्या. कॉलेज प्रशासन के जातिगत दबाव को झेल नहीं पाया. सुसाइड नोट में लिखा- "माय बर्थ इज़ ए फैटल एक्सीडेंट". बाद में लोगों ने साबित करने की कोशिश कर कहा कि रोहित दलित नहीं था. इतना ही नहीं है. 2016 में ही राजस्थान में डेल्टा मेघवाल, तमिलनाडु में तीन मेडिकल स्टूडेंट्स, केरल में चार खिलाड़ी, गाजियाबाद में एक तैराक. इससे पहले:
श्रीकांत, आईआईटी मुंबई, 2007. अजय चन्द्र, आईआईएससी, बैंगलोर , 2007. जसप्रीत सिंह, एमबीबीएस , चंडीगढ़, 2008. सेंथिल कुमार, पीएचडी फिजिक्स, हैदराबाद, 2008. प्रशांत कुरील, बी टेक आईआईटी कानपुर, 2008. सुमन, बी टेक आईआईटी कानपुर, 2009. अंकित वेघदा, नर्सिंग, अहमदाबाद, 2009. डी श्याम कुमार, बी टेक, विजयवाड़ा, 2009. एस अमरावती, नेशनल लेवल की बॉक्सर, हैदराबाद, 2009.
अब भी खत्म नहीं हुआ है... सुशील, एम बीबी एस, लखनऊ, 2010. माधुरी, बी टेक, आईआईटी कानपुर, 2010. मनीष कुमार, बी टेक, आईआईटी रूड़की, 2011. लिनेश गवले, पीएचडी इम्यूनोलॉजी, दिल्ली, 2011.... जान देनी पड़ी जाति के चलते. पर ये तो तेज लोग थे.  कितने ऐसे थे जो सामाजिक आर्थिक कारणों से थोड़ा अंग्रेजी में, थोड़ा नई  जगह के कल्चर में थोड़े थोड़े कमजोर थे. उनकी तो किसी ने सुनी भी नहीं. हमने अखबार पढ़ा और पेज पलट दिया.
हर धर्म और हर जाति में लोग आत्महत्या करते हैं. पर 'दलित' जातियों की आत्महत्या की मुख्य वजह जातिगत भेदभाव ही है.
जब रोज पानी भरने, मंदिर में जाने, स्कूल जाने, प्यार करने , शादी करने, घोड़ी पर चढ़ने, थूकने, ताकने में भी लोग मार पीट करते हैं तो मानसिक स्थिति कहां जाएगी? बड़ा मुश्किल होगा किसी के लिए भी. कृष्णन, पूर्व सेक्रेटरी, मिनिस्ट्री ऑफ़ वेलफेयर,  'दलित आत्महत्या' के बारे में कहते हैं कि बिना पढ़े हुए दलित व्यक्ति को अपमान बर्दाश्त करने की आदत पड़ जाती है. वो इसे अपना भाग्य मान लेता है. जब दलित लोग पढ़ते हैं तो ये अपमान और इसके कारण समझ में आते हैं. वो बर्दाश्त नहीं कर पाते. इसीलिए भीमराव आंबेडकर ने कभी कहा था:
'तुमको मेरी आखिरी सलाह यही है कि पढ़ो-पढ़ाओ, संगठित करो और विद्रोह करो. हमारी लड़ाई धन-सम्पति और ताकत के लिए नहीं है. ये लड़ाई स्वतंत्रता के लिए है. ये लड़ाई इंसान के अस्तित्व के लिए है.'
ऐसा नहीं है कि गैर-दलित समुदाय में आत्महत्या की स्थिति बहुत अच्छी है. पर वहां पर कारण जाति से हटके डिप्रेशन, मानसिक बीमारी, प्रेम में धोखा, भावनात्मक चोट, धन-संपत्ति की हानि से जुड़े हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने 2014 में आत्महत्या के आंकड़ों को जाति और धर्म के हिसाब से बांटा. पर इस रिपोर्ट को कभी पब्लिक में नहीं लाया गया. इंडियन एक्सप्रेस ने आरटीआई लगाकर रिपोर्ट को खंगाला. इसमें ये आंकड़े सामने आए हैं:
आत्महत्या    की दर* आत्महत्या में    शेयर का             प्रतिशत   पापुलेशन में      शेयर का             प्रतिशत आत्महत्या करनेवालों  की  संख्या 
धर्म
 क्रिश्चियन 17.4 3.7 2.3 4845
  हिन्दू 11.3 83 79.8 109271
इस्लाम 7 9.2 14.2 12109
सिख 4.1 0.6 1.72 848
        जाति 
 शेड्यूल्ड ट्राइब  10.4 8.2 8.6 10850
शेड्यूल्ड कास्ट  9.4 14.4 16.6 19019
ओबीसी 9.2 34 40.2 56970
जनरल 13.6  43.3  34.6  56970
देश का औसत    आंकड़ा 10.6 131666
*हर एक लाख पर 
-संख्या के हिसाब से आत्महत्या का सबसे ज्यादा अनुपात क्रिश्चियन धर्म में है. - संख्या ज्यादा होने के चलते सबसे ज्यादा आत्महत्याएं हिन्दू धर्म में हैं. -इस्लाम और सिख  धर्मों  में अनुपात के आधार पर सबसे कम आत्महत्याएं हैं. सीबी मैथ्यूज ने आत्महत्या पर किताब लिखी है. कहते हैं आर्थिक असुरक्षा आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण है.
भारत में हर रोज 300 लोग आत्महत्या करते हैं. 3000 आत्महत्या की कोशिश करते हैं. क्योंकि लोग अपना दुःख किसी से शेयर नहीं कर पाते. तनाव झेलते रहते हैं. डॉक्टर के पास नहीं जाते. लोक लाज से.
आत्महत्याओं के आंकड़ों में एक और पहलू है. सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संस्थाओं का लोगों के लिए खड़ा न रह पाना. इसका परिणाम निकलता है किसानों की आत्महत्याओं के रूप में. छात्रों की आत्महत्याओं के रूप में. क्योंकि किसी तरह की सहायता उपलब्ध नहीं है. थका हुआ इंसान अपने आप पर है. कोई  सुननेवाला नहीं. अब जरूरत है वैसे अस्पताल, सामाजिक क्लब, को-ऑपरेटिव सोसाइटीज की जो समय पर लोगों की काउसलिंग कर सके. नहीं तो भारत धीरे-धीरे आत्महत्याओं का देश बन जाएगा. WHO के रिपोर्ट के मुताबिक, भारत मनोरोगियों का देश बन ही चुका है.
(ये स्टोरी दी लल्लनटॉप के साथ जुड़े ऋषभ श्रीवास्तव ने लिखी है.)  

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