बड़ी वाली अस्पताल होती हैं न. फोर्टिस, लीलावती, हिंदुजा, अपोलो वगैरह. जिनका नाम सुन भरोसा हो जाता है कि मरता हुआ भी जी जाएगा. भदोही वाली फुआ टाइप कैरेक्टर बताती हैं कि अपनी सास को ब्रेन ट्यूमर के अंतिम दिनों में वहां ले गईं, सात दिन में डॉक्टर ठीक कर लौटा दिए. इनमें से एक का किस्सा सुनिए. गनगना जाएंगे.
दिल्ली के शालीमार बाग में फोर्टिस अस्पताल है. 24 साल का एक लड़का रवि राय वहां पहुंचा. उसके दाहिने पैर के एड़ी की हड्डी टूट गई थी. ऑपरेशन होना था, फोर्टिस वालों ने दाएं की जगह बाएं पैर की एड़ी का ऑपरेशन कर डाला. चार स्क्रू डाल दिए. गलत पैर में.
हुआ ये कि संडे की शाम रवि अपने घर पर सीढ़ी से गिर गया. दायां पैर चोटा गया. सबसे अच्छे इलाज के लिए ले गए फोर्टिस, डॉक्टर मार एक्स-रे मार सीटी स्कैन किए. बताए कि एड़ी में सपोर्ट के लिए स्क्रू डाले जाएंगे. ऑपरेशन हुआ, डाले भी. लेकिन दूसरे पैर में डाल दिए.

घरवालों ने आनन-फानन पुलिस को कॉल किया, अस्पताल ने गला फंसता देखा तो गलती भी मान ली. डॉक्टरों ने पूरे मामले को कैसे समेटा, पता है? कहा कोई बड़ी बात नहीं है. बाएं पैर से निकालकर दाएं में डाल देंगे. फिलहाल रवि को फोर्टिस से डिस्चार्ज करा के उनके घर वाले दूसरे अस्पताल ले गए हैं.