29 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद जरूरी टिप्पणी की है. मामला जुड़ा हुआ है पूरे देश में आपराधिक मामलों को लेकर. केस है अमन कुमार बनाम बिहार राज्य का.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा आरोप तय करने में देरी न्याय प्रक्रिया की नाकामी है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट फाइल होने के बाद 60 दिन के अंदर आरोप तय किए जाएं ताकि मुकदमे सालों तक न लटकें.


इस केस में हुआ ये कि बिहार के रहने वाले अमन के ऊपर भारतीय न्याय संहिता के कुछ बेहद गंभीर आरोप लगे- जैसे डकैती और हत्या का प्रयास. बिहार पुलिस ने अमन को गिरफ्तार किया. इसके बाद साल 2024 के अगस्त में ही पुलिस ने चार्जशीट भी फाइल कर दी. लेकिन अब एक साल से ज़्यादा हो चला है और ट्रायल कोर्ट ने अब तक अमन के खिलाफ सारे आरोप तय नहीं किए हैं.
ट्रायल कोर्ट किसी भी क्रिमिनल या सिविल केस के शुरू होने की सबसे छोटी इकाई होती है. सबसे पहले जिरह वहीं होती है. और चूंकि ट्रायल कोर्ट ही आरोप तय नहीं कर रहा, तो केस की शुरुआत भी नहीं हो पा रही है. इसी के खिलाफ आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील फाइल की.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच में बैठे थे जस्टिस अरविंद कुमार और एन.वी. अंजारिया. उन्हें बिहार राज्य के वकील ने बताया कि ये बहुत समय से चलता आ रहा है कि चार्जशीट फाइल करने और ट्रायल कोर्ट के आरोप तय करने के बीच अच्छा-खासा समय गुज़र जाता है. इसके बाद महाराष्ट्र के काउंसिल ने बताया कि अभी भी महाराष्ट्र में करीब 649 केस ऐसे हैं जिनमें आरोप तय ही नहीं हुए हैं. जबकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 251(b) में ये साफ लिखा है कि चार्जशीट फाइल करने के 60 दिन के अंदर आरोप तय कर दिए जाएं.
बेंच ने कहा कि यही वजह है कि इतने सारे लोग आरोपी के तौर पर जेल में सालों-साल सज़ा काट लेते हैं जबकि उन पर सही आरोप भी तय नहीं किए जाते. यही वजह है कि इस देश में इतने सारे पेंडिंग केसों का भरमार लगा हुआ है. ज़रूरी है कि पूरे भारतवर्ष में इसके लिए नोटिस दिया जाए कि आरोप हमेशा 60 दिन के भीतर ही तय किया जाए. गाइडलाइंस भी निकाली जाएं जिन पर सारे कोर्ट्स को अमल करना पड़ेगा.
कोर्ट ने अंत में अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया आर. वेंकटरमणी से भी इस पर सोचने को कहा है, और केस की फाइल भेज दी है.
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