स्वामी का कहना है कि श्रीदेवी शराब को हाथ तक नहीं लगाती थीं.
पहले बागी होते थे जंगल में. आज कल हो रहे हैं बीजेपी में. अरुण शौरी, शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आजाद के बाद मोदी सरकार का चौथा बागी तैयार हो रहा है- सुब्रमण्यम स्वामी. नाम तो सुना ही होगा. उन्होंने पार्टी से सस्पेंड किए गए बागी कीर्ति आजाद की मदद करने का ऐलान कर दिया है. कीर्ति ने वित्त मंत्री अरुण जेटली पर DDCA स्कैम का आरोप लगाते हुए मोर्चा खोला था. बीजेपी ने कीर्ति आजाद को एक नोटिस भेजा है, जिसका जवाब तैयार करने में सुब्रमण्यम स्वामी उनकी मदद करेंगे. स्वामी आजाद की साइड नजर आ रहे हैं. न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक, उनका कहना है कि उन्हें आजाद की मदद करने का पूरा हक है. उन्होंने मामले को इमोशनल कलर भी दिया. कहा कि मैं उनके पिता को भी जानता था. मुझे नहीं लगता कि पार्टी को आजाद जैसे ईमानदार आदमी को खोना चाहिए.
लेकिन खुसफुस तो चालू हो गई है
लोग कहते हैं कि सुब्रमण्यम स्वामी मोदी सरकार में मंत्री बनने की उम्मीद पाले थे, जो पूरी नहीं हुई. सुरक्षा और बंगले के सिवा सरकार से उन्हें ज्यादा कुछ नहीं मिला. कुछ ही दिन पहले काले धन पर बनी एसआईटी को उन्होंने 'फेल' करार दिया और दबी जुबान में माना कि ब्लैक मनी तो अब तक आ जानी चाहिए थी भाई. अभी कुछ ही दिन पहले उन्होंने कहा कि राम मंदिर हिंदुत्व का मुद्दा है और इसके लिए सरकार को एक टाइम टेबल देना होगा. राम मंदिर का टाइम टेबल न देने को मोदी सरकार की बड़ी भूल तक कह डाला.
कैलकुलेटेड हैं स्वामी के तेवर?
वैसे अगले साल कैबिनेट का विस्तार होना है. इसलिए स्वामी की उम्मीद की खिड़की अभी बंद नहीं हुई है. इसलिए वह संयत होकर खेल रहे हैं और खुलकर बीजेपी नेतृत्व को निशाने पर नहीं ले रहे. लेकिन ऐसे बयान जरूर दे रहे हैं जो शाह-ए-सिकंदरों को अप्रिय ही होंगे. यानी उनका अपनी पार्टी को आंखें दिखाने का अंदाज बड़ा ही 'कैलकुलेटेड' लग रहा है. वह जानते हैं कि बिस्कुट को कितना चाय में डुबोना है कि वह नरम भी हो जाए और पिघल कर गिरे भी नहीं.
इक ज़रा वफ़ा कम है...
याद रहे कि पॉलिटिकल वफादारी के मामले में सुब्रमण्यम स्वामी का इतिहास बहुत अच्छा नहीं है. बीजेपी से उनका रिश्ता नरम-गरम रहा है. आज जयललिता से उनकी पक्की दुश्मनी है, लेकिन एक समय बहुत अच्छे रिश्ते थे. उसी दोस्ती के इस्तेमाल से उन्होंने 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिराने में बड़ा रोल निभाया. दरअसल इस गठबंधन सरकार की अहम सहयोगी जयललिता ने स्वामी को वित्त मंत्री बनाने की जिद पकड़ ली थी. स्वामी तब जनता पार्टी चलाते थे और उन्होंने भी सरकार गिराने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया था. उन्होंने जयललिता और सोनिया गांधी को करीब लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसके लिए स्वामी ने मार्च, 1999 में चाय-पार्टी आयोजित की, जिसमें उन्होंने सोनिया और जयललिता को बुलाया था और बताते हैं कि इससे दोनों करीब आ गई थीं.

लालकृष्ण आडवाणी हमेशा से स्वामी को पार्टी में वापस चाहते थे, हालांकि वाजपेयी के रहते वह बीजेपी में पैर नहीं जमा पाए. लेकिन अटल के रिटायरमेंट के बाद 11 अगस्त, 2013 को उन्होंने अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में कर दिया. बाद में 2014 के चुनावों से ठीक पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वामी को वापस बीजेपी में शामिल करा लिया. अब खुद बॉस ने पार्टी में बुलाया तो आस का दामन छूटेगा भी तो कैसे?