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हाथ का बना प्राइवेट पार्ट लगवा महिला बन गई पुरुष, फिर लड़की से की शादी, ऐसे हुई सर्जरी

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टर्स ने महिला का जेंडर री-असाइन कर उसे पुरुष बनाया

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ऐसे बनाया गया प्राइवेट पार्ट | फोटो: आजतक

हमारे आसपास की सारी तकनीक विज्ञान की बदौलत ही है. ये लैपटॉप, जिस पर ये ख़बर लिखी जा रही है और ये स्क्रीन जिस पर आप ये ख़बर पढ़ रहे हैं. बावजूद इसके साइंस की ख़बरें मुख्यधारा में कम ही होती हैं. हमारे चेतना क्रम को विकसित करने के लिए और बढ़ाने के लिए विज्ञान में खोजें होती हैं. होती ही रहती हैं. कुछ एक खोजों को क़ाग़ज़ से हक़ीक़त करने में ही लोगों की उम्र निकल जाती है. साइंस में चमत्कार होते हैं, ये कहना साइंस की ऑब्जेक्टिविटी को शोभा नहीं देता. दिल्ली से एक ऐसी ही ख़बर आई है.

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ख़बर है फैलोप्लास्टी से जुड़ी. फैलोप्लास्टी या पेनाइल री-कंस्ट्रक्शन सर्जरी. एक ऐसी सर्जरी है, जिसके ज़रिए पुरुषों का प्राइवेट पार्ट (पेनिस) बना सकते हैं, रिपेयर कर सकते हैं या बढ़ा सकते हैं. दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में एक 34 साल की महिला की फैलोप्लास्टी की गई. उसके हाथ से मांस काट कर, उससे एक प्राइवेट पार्ट बनाया गया. फिर महिला का जेंडर री-असाइन कर उसे पुरुष बनाया गया.

कैसे बनाया गया प्राइवेट पार्ट?

आजतक में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, महिला (जो अब पुरुष हैं) लगभग दो महीने पहले इलाज के लिए अस्पताल गई थी. जांच में ये पाया गया कि महिला मानसिक तौर पर पुरुष थी. इस स्थिति को जेंडर डिस्फोरिया कहते हैं. रिपोर्ट में ये बात भी है कि पिछले छह सालों से महिला का पुरुष बनने के लिए ट्रांज़िशन चल रहा था. ऐसे में जब वो अस्पताल आई थी, तो एक महिला का शरीर होने के बाद भी उसके शरीर में पुरुषों के जैसे लक्षण थे. दाढ़ी, छाती पर बाल, पुरुषों की आवाज़. 2016 से ही हार्मोन रिप्लेसमेंट शुरू करवाया. 2017 में ब्रेस्ट हटवाए. 2019 में यूट्रस, ओवरी और वजाइना का ऑपरेशन करवा कर निकलवा दिया. अस्पताल के अधिकारियों ने ये भी बताया कि पुरुष बनने के बाद उसकी शादी अब एक महिला से हो गई है.

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प्लास्टिक और कॉस्मेटिक सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉक्टर भीम सिंह नंदा ने कहा,

"हमने पुरुष ट्रांस्फ़ॉर्मेशन के लिए पिनाइल री-कंस्ट्रक्शन करने का फ़ैसला किया. हमारा मक़सद था कि प्राइवेट पार्ट को अच्छा आकार मिले. पेशाब करने में कोई तक़लीफ़ न हो और उसमें कामुकता का भी सेंस रहे. ये चुनौतीपूर्ण था क्योंकि हमें आर्टरीज़ और वेन्स को सही-सलामत रखना था. फिर हमने मरीज़ के हाथ से मांस निकाल कर उनके लिए आर्टिफ़िशयली प्राइवेट पार्ट बनाया. अब उनकी स्थिति बेहतर है. चल-फिर पा रहे हैं."

इंसान जब अपनी हरक़त की क्षमता टटोल रहा था, तब से देखो तो लगता है कि ये कहां आ गए हम (यूं ही साथ-साथ चलते..).

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