कुछ ट्रेंड्स हैं जिनके हिसाब से ट्रोलिंग की जाती है. मसलन,
# मोदी को ट्रोल करना हो तो उनकी पत्नी की बातें की जानी लगती हैं, उन्हें चायवाला बताया जाने लगता है. # राहुल गांधी का मज़ाक उड़ाना हो तो उन्हें पप्पू कह दिया जाएगा, उन्हें बुद्धिहीन बताया जाने लगेगा. # उनकी मां सोनिया गांधी के बारे में तो क्या-क्या बकवास बातें चलती हैं. सोनिया गांधी को बार में काम करने वाली वेट्रेस बताया जाएगा. किसी ऐक्ट्रेस के कुछ कह दिया तो उसे सबसे पहले तो 'रंडी' शब्द के आभूषण से सजाया जाता है. उसके बाद उसे कैरेक्टर-लेस बताया जाता है. उसके बारे में जितनी घटिया बातें हो सकती हैं, कही जाती हैं. # कोई ऐक्टर हो तो उसके घर की महिलाओं के बारे में, उससे जुड़ी महिलाओं के बारे में बातें करते हुए नीचता की हदें पार कर दी जाती हैं. उसे कुछ भी कहा जाने लगता है.
सब कुछ काफी प्रेडिक्टेबल है. ट्रोल करने में कुछ भी नयापन नहीं है. कोई भी क्रियेटिविटी नहीं है. सब कुछ स्थिर है.
किसी को ट्रोल किया जाना, उसे चेक में रखे जाने के लिए ज़रूरी है. लेकिन ट्रोलिंग की परिभाषा ठीक उसी तरह एक डरावना रूप ले चुकी है जैसे इन्टरनेट पर फेमिनिज्म. फेमिनिज्म के नाम पर छिछली बातें करने वालों के कारण असल में महिलाओं की बराबरी की सोच रखने वाले भद्रजन फेमिनिस्ट कहलाये जाने से डरते हैं. उसी तरह से ट्रोलिंग भी एक डरावना अहसास देने लगा है. ट्रोलिंग का मतलब अब सिर्फ़ भद्दी गालियां, रेप की धमकियां और मार दिए जाने का ऐलान हो गया है.

कांग्रेस पार्टी के यूथ विंग के ट्विटर हैंडल से भारत के प्रधानमंत्री मोदी को चायवाला कहा गया. ये कहने के लिए एक मीम का सहारा लिया गया. मीम में मोदी को मेमे कहते हुए दिखाया जा रहा था जिसे पहले तो ट्रम्प के सुधारते हुए बताया कि उसे मीम कहते हैं और फिर थेरेसा मे कहती हैं, "तू चाय बेच."

ओरिजिनल मीम जिसे यहां शेयर नहीं करना चाहता था लेकिन करना पड़ा.
कितना हल्का ह्यूमर है ये. इतना कि इसपर हंसी नहीं बल्कि रोना आए. हमें एक इंसान की कमज़ोर कड़ी मिल गई और हम उसे खींचे जा रहे हैं. और वो कमज़ोर कड़ी है भी तो क्यूं? अव्वल तो ये कि कहीं भी इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि मोदी बचपन में सचमुच चाय ही बेचा करते थे. लेकिन अगर वो ऐसा करते भी थे, तो समस्या क्या है? चाय बेचना एक सम्माननीय पेशा है. कथानुसार, मोदी एक गरीब परिवार से आते थे. इस वजह से उन्हें चाय बेचनी पड़ती थी. हम-आप के लिए, जिन्हें बचपन से ही कम्प्यूटर दिखने लगे, ये एक तुच्छ काम हो सकता है. लेकिन इसके लिए उस बच्चे को सलाम किया जाना चाहिए जिसने चाय बेचते हुए खुद को इस काबिल बनाया कि वो आगे चलकर क्या से क्या बन गया. एक चाय बेचने वाला अपने दम पर, अपनी अक्ल भिड़ाकर देश में अपने नाम पर 336 सीटें ले आया. इतनी कि थोड़ी बचा के रख ले एनडीए तो अगले चुनावों में भी काम आ जाती. ये किस लिहाज़ से अच्छे ह्यूमर की निशानी है? आप अपनी फ्रस्ट्रेशन ज़ाहिर कर रहे हैं. बस!

आपको मोदी को ट्रोल करना है, आप करिए. आप उन्हें कोंचिये क्यूंकि वो पिछले कितने दिनों से चले आ रहे पद्मावती विवाद पर खामोश हैं. उनकी खामोशी तब और भी सालती है जब उन्हीं की पार्टी से जुड़े लोग फ़िल्म की ऐक्ट्रेस को मारने की बात करते हैं, देश में सिनेमा हॉल जला देने की बात करते हैं, लोगों को पीटने की बात करते हैं. आप मोदी से सवाल पूछिए. आप उनसे पूछिए कि क्यूं बिना एक अच्छा स्ट्रक्चर बनाए देशन जीएसटी लागू कर दिया. बाद में कई सामानों से जीएसटी घटा दी गई.
देश में रैंडमली नोटबंदी लागू कर दी गई. नोटबंदी ने देश को अब तक का सबसे बड़ा कन्फ्यूज़न दिया. मुंहनोचवा है या नहीं, इससे भी बड़ा कन्फ्यूज़न. देश को बंटवारे की याद आ गई थी. हर कोई अपने घर में मौजूद रुपया पैसा अपनी जेब में डाले, घर से बाहर टहल रहा था. बंटवारे के वक्त भी सरकार के बनाए सभी प्लान्स चौपट हो गए थे. इस बात पर मोदी को घेरा जा सकता है. आप अपने फैक्ट्स मजबूत रखिये, सुदृढ़ दलीलें लाइए, आवाज़ बुलंद रखिये और ट्वीट पे ट्वीट पेलिए. कोई भी आपको काउंटर करने की स्थिति में नहीं रहेगा. सवाल पूछा जाना जनतंत्र की सबसे पहली और सबसे ज़रूरी शर्त है. ये हक़ आपसे कोई भी नहीं छीन सकता. खुद मोदी भी नहीं. लेकिन सवालों को भद्देपन की खटाई में लपेटकर पूछियेगा तो बदले में जहालत ही मिलेगी. यूपी में रहते हैं तो शायद जेल भी.

सब कुछ हमारे ही हाथ में है. हम सभी की ऑनलाइन आइडेंटिटी है. एक मिनट में वो बदल सकती है. बस एक ट्रोल आतंकी की ज़रुरत है. कोशिश करिए कि आप ट्रोल बनें तो ट्रोल आतंकी न बनें. आप अपने आकाओं का तो क्या, किसी का भी भला नहीं कर रहे होंगे. खुद का भी नहीं.
ट्रोल करने की ये तकनीक सिर्फ मोदी या किसी और नेता तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए. ये हर जगह लागू होती है. एक फ़िल्म ऐक्ट्रेस पर भी, एक ऐक्टर पर भी, एक आम आदमी पर भी. किसी लड़की की ओपिनियन से गुरेज़ है तो उसकी टांगों के बीच ही अपनी बातों की दुनिया मत बसा लीजिये. उसके विचारों को काउंटर कीजिये न कि इस फैक्ट को कि वो एक लड़की है. उसके मुंह पर फैक्ट्स फेंक के मारिये न कि एसिड की बोतल. और यकीन मानिए यही एक तरीका है किसी से भी जीत पाने का. (अगर आप सचमुच एक इन्टरनेट पर चल रही बहस को जीतने के लिए इतने ही डेस्पेरेट हैं तो. वरना छोड़ भी सकते हैं.) दूसरों को उनकी गलती का अहसास दिलाएं न कि अपनी बातों से उसे उकसाएं कि अगले को अपनी गलती का अहसास होने की बजाय आपसे खुन्नस ही हो जाए.

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