गांधी, जिन्ना को मनाने की कोशिश कर रहे थे. यहीं पर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ज़रूरत महसूस होती है. राजगोपालाचारी मद्रास के नेता थे. उन्हें 'राजाजी' और 'सी आर' के नाम से भी जाना जाता था. 10 दिसंबर 1878 को पैदा हुए सीआर 1942 के दौरान ही कहते थे कि ये बंटवारा होकर रहेगा. राजगोपालाचारी ने कांग्रेस से कहा कि जिन इलाकों में मुस्लिम बहुल है, वहां जनमत संग्रह होना चाहिए. इसके लिए उन्होंने और भी कई सुझाव दिए. इसे 'सी आर फॉर्मूला' कहा जाता है. लेकिन कांग्रेस ने उनकी बात नहीं मानी. गांधी ने सोचा इस फ़ॉर्मूले पर एक बार जिन्ना से बात करनी चाहिए. 'सी आर' फ़ॉर्मूला कुछ इस तरह था-
मुस्लिम लीग को भारत की आजादी की बात बढ़-चढ़कर करनी होगी. और राज्यों में अंतरिम सरकार बनाने में कांग्रेस का सहयोग करना होगा.इस फ़ॉर्मूले के साथ गांधी ने जिन्ना से 1944 में बात की. इसे जिन्ना-गांधी वार्ता के नाम से जाना जाता है. दो हफ़्तों तक इस फ़ॉर्मूले पर विचार किया जाता रहा. बाद में जिन्ना इसके लिए तैयार नहीं हुए. वार्ता असफल हो गई.
युद्ध के बाद एक कमीशन बनाया जाए जो भारत के उत्तर-पश्चिम में मुस्लिम मेजॉरिटी वाले इलाकों की पहचान करे. यहां उनके बीच जनमत संग्रह करया जाए कि ये लोग भारत से अलग होना चाहते हैं या नहीं.
विभाजन के बाद दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार और कम्युनिकेशन पर एक समझौता हो.
अगर लोग एक देश से दूसरे देश में जाना चाहते हों तो ये पूरी तरह उनकी मर्जी पर होना चाहिए.
समझौते के ये नियम तभी लागू होंगे, जब भारत को ब्रिटेन पूरी तरह से आज़ाद कर देगा.

गांधी के साथ राजाजी.
राजगोपालाचारी यानी राजाजी मद्रास के सलेम जिले के थोरपल्ली गांव में पैदा हुए थे. साल 1937 में काउंसिल के चुनावों में मद्रास प्रांत में कांग्रेस की जीत हुई. इसके अगुआ राजाजी रहे. उन्हें मद्रास का मुख्यमंत्री बनाया गया. साल 1939 में उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया.
राजाजी गांधी जी के फ़ॉलोवर थे, लेकिन 1939 में जब दूसरा वर्ल्ड वार शुरू हुआ, तब गांधी के विरोध में खड़े हो गए. असल में ब्रिटिश सरकार इस युद्ध में भारत की मदद चाहती थी. गांधी का मानना था कि युद्ध में ब्रिटिश सरकार को केवल नैतिक आधार पर समर्थन दिया जाए. पर राजाजी कहते थे कि हमें ब्रिटिश सरकार से युद्ध के बाद भारत की आजादी की पूरी गारंटी लेनी चाहिए. और सरकार को युद्ध में पूरा समर्थन देना चाहिए. पर गांधी जी ने उनकी बात नहीं मानी. इस वजह से राजाजी ने कांग्रेस की कार्यकारिणी से इस्तीफ़ा दे दिया. और अपने सिद्धांतों पर टिके रहे.
साल 1942 में जब गांधी जी ने 'भारत छोड़ो आंदोलन' शुरू किया, तब भी राजाजी उनके साथ नहीं आए. इसी दौरान भारत विभाजन के सुर भी तेज हो गए थे. उन्होंने तभी ताड़ लिया था कि ये विभाजन होकर रहेगा और इस बारे में बोलते भी थे. लेकिन लोग तब उनकी आलोचना करते थे. आखिरकार 1947 में ऐसा ही हुआ.
साल 1946 में देश की अंतरिम सरकार बनी. उन्हें केंद्र सरकार में उद्योग मंत्री बनाया गया. सन 1947 में आज़ादी मिलने पर बंगाल के राज्यपाल बने. अगले ही साल उन्हें गवर्नर जनरल बनाया गया. माउंटबेटन के बाद वो आज़ाद भारत के दूसरे गवर्नर जनरल थे. इस तरह पहले भारतीय गवर्नर जनरल बने. साल 1950 में फिर से मंत्रिमंडल में आए. सरदार वल्लभ भाई की मौत के बाद उन्हें होम मिनिस्टर बनाया गया. इस पद पर दस महीने तक रहे. 1952 में फिर से मद्रास के चीफ मिनिस्टर बने.आजादी के बाद साल 1954 में उन्हें भारत रत्न दिया गया. तमिल और अंग्रेजी के बहुत अच्छे लेखक राजाजी ने 'गीता' और 'उपनिषदों' की टीका लिखीं. अपनी किताब 'चक्रवर्ती थिरुमगम' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला. राजगोपालाचारी बेहतरीन कहानियां लिखते थे. उस वक्त 'स्वराज्य' अखबार में उनके लेख छपते थे. 25 दिसंबर 1972 को चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की मौत हो गई.
इस बीच कांग्रेस से उनके मतभेद बने रहे और उन्होंने अपनी अलग 'स्वतंत्र पार्टी' बना ली. स्वतंत्र पार्टी बनाने पर पर उन्होंने एक पैम्फलेट पर लिखा-
स्वतंत्र पार्टी लोगों के जीवन में बढ़ रहे राज्य के दखल के खिलाफ खड़ी है. कांग्रेस पार्टी जिस सोशलिज्म का दावा करती है, ये उसका जवाब है. इस पार्टी का मानना है कि सोशल जस्टिस और वेलफेयर लोगों की निजी दिलचस्पी के विषय हैं. इसमें स्टेट का दखल नहीं होना चाहिए.