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2002 गुजरात दंगा : बिलकिस बानो का सामूहिक बलात्कार करने वाले 11 लोगों को रिहा किया गया

गुजरात सरकार की बनाई कमिटी का फैसला, इन लोगों ने 3 साल की बच्ची को भी पटककर मार डाला था!

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गुजरात सरकार ने माफी नीति के तहत रिहाई की अनुमति दी (फोटो: आजतक)

गुजरात (Gujarat) में गोधरा कांड के दौरान बिलकिस बानो गैंगरेप (Bilkis Bano Gangrape) केस में दोषी सभी 11 सजायाफ्ता कैदियों को स्वतंत्रता दिवस पर रिहा कर दिया गया. गुजरात सरकार ने अपनी माफी नीति के तहत इन कैदियों को रिहा करने की अनुमति दी थी. सोमवार, 15 अगस्त को राधेश्याम शाह, जसवंत चतुरभाई नाई, केशुभाई वदानिया, बकाभाई वदानिया, राजीभाई सोनी, रमेशभाई चौहान, शैलेशभाई भट्ट, बिपिन चंद्र जोशी, गोविंदभाई नाई, मितेश भट्ट और प्रदीप मोढिया को गोधरा जेल से रिहा कर दिया गया. 

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गुजरात सरकार ने बनाई थी कमिटी

आजतक की गोपी घांघर की रिपोर्ट के मुताबिक, इन कैदियों में से एक ने सजा में छूट के लिए आवेदन दिया था. पंचमहल कलेक्टर सुजल मायात्रा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को कैदियों की सजा में माफी के मसले पर गौर करने का निर्देश दिया था. इसके बाद सरकार ने एक कमिटी बनाई थी. इस कमिटी की अध्यक्षता मायात्रा ने ही की है. कलेक्टर ने बताया कि कमिटी ने घटना के सभी 11 दोषियों को रिहा करने के पक्ष में सर्वसम्मति से फैसला लिया. राज्य सरकार को सिफारिश भेजी गई थी और फिर दोषियों की रिहाई के आदेश मिले.

गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राज कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि जेल में "14 साल पूरे होने" और दूसरे कारकों जैसे "उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार वगैरह" के कारण सजा में छूट के आवेदन पर विचार किया गया."

बिलकिस बानो गैंगरेप केस: पूरा मामला

गुजरात में साल 2002 में गोधरा कांड हुआ था. 3 मार्च, 2002 को दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव में बिलकिस बानो का गैंगरेप हुआ था और उनकी 3 साल की बच्ची समेत परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. बिलकिस की 3 साल की बच्ची की हत्या उसे पटककर की गई थी. जब वारदात को अंजाम दिया गया था, तब बिलकिस बानो 5 महीने की गर्भवती थी. इस मामले के इन 11 लोगों को साल 2004 में गिरफ्तार किया गया था.

फिर अहमदाबाद में केस का ट्रायल शुरू हुआ. हालांकि, बिलकिस बानो ने आशंका जताई कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा एकत्रित सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में इस केस को मुंबई ट्रांसफर कर दिया था.

2008 में 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई

मामले में 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 11 आरोपियों को दोषी पाया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा.

रिपोर्ट के मुताबिक, इन दोषियों ने 15 साल से ज्यादा सजा काट ली थी, जिसके बाद राधेश्याम ने सजा को माफ करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. हाईकोर्ट ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि उनकी माफी के बारे में फैसला करने वाली 'उपयुक्त सरकार' महाराष्ट्र है, न कि गुजरात.

राधेश्याम ने तब सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की और कहा कि वह 1 अप्रैल, 2022 तक बिना किसी छूट के 15 साल 4 महीने जेल में रहा. 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि अपराध गुजरात में किया गया था, इसलिए गुजरात राज्य राधेश्याम के आवेदन की जांच करने के लिए उपयुक्त सरकार है.

सुप्रीम कोर्ट ने सजा में छूट के आवेदन पर विचार करने को कहा

रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को 9 जुलाई, 1992 की माफी नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया और कहा था कि दो महीने के अंदर फैसला किया जा सकता है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह), राज कुमार ने बताया कि 11 दोषियों ने कुल 14 साल की सजा काट ली है. कानून के अनुसार, आजीवन कारावास का मतलब न्यूनतम 14 साल की अवधि है, जिसके बाद दोषी छूट के लिए आवेदन कर सकता है. फिर आवेदन पर विचार करना सरकार का निर्णय होता है. उन्होंने बताया कि कैदियों को जेल सलाहकार समिति के साथ-साथ जिला कानूनी अधिकारियों की सिफारिश के बाद छूट दी जाती है.

वीडियो- अमित शाह ने गुजरात दंगों पर किससे माफी मांगने को कहा?