सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से बिलकिस बानो को 50 लाख रुपए, नौकरी और घर देने को कहा है
2002 में गुजरात दंगे के वक्त प्रेगनेंट बिलकिस का रेप हुआ, उन्हें मरा समझकर छोड़ दिया गया था.
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2002 गुजरात दंगे के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप हुआ था. उस समय वह गर्भवती थीं. रेप करने वाले उन्हें मरा समझ छोड़ कर भाग गए थे. घटना के 17 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल को बिलकिस बानो को मुआवजा देने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को आदेश दिया है कि बानो को 50 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए. साथ ही कोर्ट ने गुजरात सरकार को ये भी आदेश दिया है कि बिलकिस बानो को सरकारी नौकरी और नियमों के मुताबिक घर मुहैया कराया जाए.
क्या है मामला साल 2002 की बात है. फरवरी की 27वीं तारीख थी. गुजरात के गोधरा स्टेशन पर खड़ी साबरमती एक्सप्रेस का डिब्बा नंबर एस-6 उपद्रवियों ने आग के हवाले कर दिया. इसके बाद देखते ही देखते आग ने 3 और डब्बों को अपनी जद में लिया. अयोध्या से आ रही इस ट्रेन में सवार 59 कारसेवक इस आग में झुलस कर मर गए. लेकिन ये आग यहीं रुकने वाली नहीं थी. देखते ही देखते पूरा गुजरात जलने लगा. बुरा दौर था. हालात हर बीतते घंटे के साथ बिगड़ रहे थे. गोधरा की घटना को 4 दिन बीते थे. तारीख थी 3 मार्च. एक परिवार था. जिसके लिए अब अपने घर पर रहना संभव नहीं रह गया था. उसने अपना सामान एक ट्रक पर लादा और बड़े भी भरे मन से अपना गांव छोड़ दिया. ट्रक में जरूरी चीजों के अलावा 17 लोग भी थे. वो इस जगह से जल्द से जल्द निकल जाना चाहते थे. आस-पास के इलाके से लगातार बुरी-बुरी खबरें आ रही थीं. एक परिवार था जो इस सब से बच निकलना चाहता था दाहोद जिले में एक छोटा सा गांव है राधिकापुर. यहां कई लोग काफी देर से किसी के आने का इंतजार कर रहे थे. उनके हाथों में हथियार थे. जैसे ही ट्रक राधिकापुर पहुंचा, इसे घेर लिया गया. देखते ही देखते 14 लोगों को मार डाला गया. पीछे बचे तीन लोगों में एक 19 साल की औरत थी. पेट में पांच महीने का बच्चा था. उसने अपनी दो साल की बच्ची सहेला की हत्या होते देखा. इस औरत ने सोचा था कि अब उसका मरना भी तय है. लेकिन जो उसके साथ हुआ, वो इससे भी बुरा था. पांच महीने की गर्भवती औरत का रेप उन लोगों ने किया जो ‘धर्म’ की रक्षा के लिए जान देने की कसमें खा रहे थे. गैंग रेप करने के बाद उन्होंने औरत को मरा समझ कर छोड़ दिया और वहां से फरार हो गए. उस औरत का नाम था बिलकिस बानो. तीन घंटे के बाद जब वो होश में आईं, तो वो पहले वाली बिलकिस नहीं थीं. वो खुद बताती हैं,2002 Gujarat riots case: Supreme Court today directed the Gujarat government to pay a compensation of Rs 50 lakh to gangarape survivour Bilkis Bano. Supreme Court also directed the Gujarat Government to provide Bilkis Bano, a government job and accommodation as per rules. pic.twitter.com/dcTTKuj5fi
— ANI (@ANI) April 23, 2019
“मैं एकदम नंगी थी. मेरे चारों तरफ मेरे परिवार के लोगों की लाशें बिखरी पड़ी थीं. पहले तो मैं डर गई. मैंने चारों तरफ देखा. मैं कोई कपड़ा खोज रही थी ताकि कुछ पहन सकूं. आखिर में मुझे अपना पेटीकोट मिल गया. मैंने उसी से अपना बदन ढका और पास के पहाड़ों में जाकर छुप गई.”एक अनपढ़ औरत की लड़ाई बिलकिस को आखर का ज्ञान नहीं है. लेकिन हिम्मत है. वो अपनी शिकायत ले कर स्थानीय पुलिस स्टेशन गईं. वहां पर पहले तो केस ही दर्ज करने से इनकार कर दिया गया. इसके बाद जब दर्ज भी हुआ तो पुलिस ने मैजिस्ट्रेट के सामने बिलकिस के बयान को असंगत करार दिया. इसके बाद मैजिस्ट्रेट ने इस केस को बंद कर दिया. तारीख थी 25 मार्च 2003. बिलकिस को पता था कि लड़ाई लंबी चलेगी. उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में अपील दायर की. सुप्रीम कोर्ट में पेटीशन डाली. दिसंबर 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए. हालांकि यह बिलकिस की पहली जीत थी, लेकिन मुश्किलें अब शुरू होने वाली थीं. शिकायत दायर करने के बाद से उन्हें 2 साल में 20घर बदलने पड़े. एक रेप पीड़िता अब अपराधियों सा जीवन बिताने पर मजबूर थी. बीबीसी को दिए गए इंटरव्यू में उनके पति याकूब कहते हैं,
“हमने 12 साल इधर-उधर घूम कर किसी तरह से अपनी जान बचाकर काटे हैं.”सीबीआई ने मामले की जांच के दौरान नीमखेड़ा तालुका से न केवल 12 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था, बल्कि 3 मार्च 2002 को भीड़ के हाथों कत्ल हुए लोगों के शवों को बरामद करने के लिए पन्नीवेल के जंगलों में खुदाई भी करवाई थी. इस कार्रवाई में सीबीआई चार लोगों के कंकाल बरामद करने में सफल रही थी. लगातार धमकियां मिलती रहीं लगातार आ रही धकामियों से परेशान हो कर 2004 में बिलकिस एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर पहुंचीं. उनका कहना था कि उन्हें गुजरात की अदालतों में न्याय मिलने की कोई उम्मीद नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मांग को जायज मानते हुए अगस्त2004 में मामले को मुंबई की अदालत में शिफ्ट कर दिया. चार साल बाद निचली अदालत ने अपना फैसला सुनाया. 18 आरोपियों में से 11 को हत्या और बलात्कार के जुर्म में दोषी पाया गया और उम्रकैद की सजा सुनाई गई. छह आरोपी पुलिस वालों में से एक को सबूतों के साथ छेड़छाड़ का दोषी माना गया. ये जनवरी2008 की बात है. हाईकोर्ट ने 2017 में दिया था फैसला सीबीआई इस फैसले से संतुष्ट नहीं थी और इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की. एजेंसी ने तीन आरोपियों राधेश्याम नाई, जसवंत नाई और शैलेश भट्ट के लिए फांसी की मांग की. 20 हजार रुपए के जुर्माने पर छोड़ दिए गए पुलिसकर्मियों और मेडिकल स्टाफ के खिलाफ भी अपील दायर की गई. चार मई 2017 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बिलकिस बानो केस में फैसला सुनाया था. कोर्ट ने 11 दोषियों की अपील खारिज करते हुए निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा है. 2008 में जब निचली अदालत ने इस केस में अपना फैसला सुनाया तो यह आजादी के बाद पहली मर्तबा था कि दंगों से जुड़े हुए किसी भी बलात्कार के मुकदमें में सजा हुई थी.
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