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BHU के मुस्लिम टीचर के पिता ने कहा, 'बेटे को संस्कृत पढ़ाने से अच्छा था, मुर्गे बेचने की दुकान खुलवा देता'

बीएचयू में मुस्लिम टीचर की नियुक्ति पर बवाल!

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बीएचयू के संस्कृत और धर्म विज्ञान संकाय में एक मुस्लिम टीचर फ़िरोज़ खान (बाएं) की नियुक्ति हुई. इसके बाद छात्रों का विरोध शुरू हुआ. वजह? कि संकाय के दरवाज़े पर लिखा हुआ है कि इस संकाय में गैर हिन्दू का प्रवेश वर्जित है.
ढोल. मजीरा. हनुमान चालीसा. हवन. धरना. कहा की बात? BHU की. यानी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. संस्कृत विद्या एवं धर्म विज्ञान संकाय. यहां पढ़ाई धर्म, शास्त्र, ज्योतिष, वेद और संस्कृत की होती है. और यहां नियुक्ति हुई एक मुस्लिम शिक्षक की. फ़िरोज़ खान. और नियुक्ति के बाद शुरू हुआ आन्दोलन. छात्र कहने लगे कि एक गैर हिन्दू शिक्षक की नियुक्ति क्यों हुई? उन्हें हटाया जाए. विश्वविद्यालय ने मना कर दिया. कहा कि सब नियम से हो रहा है और हम भेदभाव नहीं कर सकते हैं.
लेकिन आन्दोलन की अपनी धार है, अपना रुख है. छात्र बैठ गए हैं धरने पर. कह रहे हैं कि मुस्लिम शिक्षक से नहीं पढ़ेंगे. कुलपति आवास के सामने ढोल मजीरा लेकर धरना दे रहे हैं. सोमवार 18 नवम्बर को बाकायदा हवन कुंड बनाकर हवन किया गया कहा गया कि बुद्धिशुद्धि यज्ञ कर रहे हैं. सब मुद्दा क्यों? कहना है कि "मालवीय जी गरिमा को ठेस पहुंचेगी". कैसे? क्योंकि कालांतर में इस विभाग के दरवाज़े पर जड़ दिया गया कि गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है.
पढ़िए पूरा मामला यहां. 
ये तो हो गया मुद्दा. दो हफ्ते पुराना. अब मीडिया में शिक्षक फ़िरोज़ खान और उनके परिजनों के बयान आये हैं. क्या हैं बयान?
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए
फ़िरोज़ खान ने कहा है कि मैंने पूरी जिंदगी संस्कृत की पढ़ाई की, और पढ़ते हुए मुझे कभी नहीं लगा कि मैं मुस्लिम हूं. उन्होंने कहा,
"अब जब मैं छात्रों को पढ़ाने जा रहा हूं, तो मेरा मुस्लिम होना एक विषय बन चुका है."
राजस्थान के रहने वाले फ़िरोज़ खान कक्षा 2 से ही संस्कृत की पढ़ाई कर रहे हैं. उनके बाप और दादा बचपन से ही संस्कृत की पढ़ाई करते रहे हैं. और फ़िरोज़ कहते हैं कि पूरे जीवन में संस्कृत की पढ़ाई करने के दौरान उनकी मुस्लिम पहचान कभी आड़े नहीं आई. राजस्थान के रहने वाले फ़िरोज़ खान कक्षा 2 से ही संस्कृत की पढ़ाई कर रहे हैं. उनके बाप और दादा बचपन से ही संस्कृत की पढ़ाई करते रहे हैं. और फ़िरोज़ कहते हैं कि पूरे जीवन में संस्कृत की पढ़ाई करने के दौरान उनकी मुस्लिम पहचान कभी आड़े नहीं आई.

फ़िरोज़ खान के काम की फेहरिस्त लम्बी है. जयपुर के पास बागरू के रहने वाले हैं. फ़िरोज़ ने संस्कृत में शास्त्री यानी ग्रेजुएशन, आचार्य (पोस्ट ग्रेजुएट), शिक्षा शास्त्री (बीएड) की. उसके बाद शोध किया. बाकायदे पी.एचडी. डिग्री मिली 2018 में, जयपुर स्थित राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से. अपनी पढ़ाई लिखाई के बारे में फ़िरोज़ खान ने कहा है,
"मैं कक्षा 2 से संस्कृत पढ़ रहा हूं. लेकिन कभी किसी ने इस बात पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की. न पड़ोस वालों ने, न किसी मौलवी ने. मैं जितना संस्कृत जानता हूं, उतना तो क़ुरान का भी ज्ञान मुझे नहीं है. मेरे इलाके के कई हिन्दुओं ने मेरे संस्कृत ज्ञान पर मेरी हौसलाफजाई की है."
BHU में आन्दोलन करने वाले छात्र अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े हुए हैं. मीडिया से बातचीत में छात्रों ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति जो उनकी भाषा और धर्म के आधार से नहीं जुड़ा है, वो हमें कैसे पढ़ा सकता है. इस पर फ़िरोज़ खान ने कहा है,
"जो लोग प्रदर्शन कर रहे है और कह रहे हैं कि मैं मुस्लिम होते हुए उन्हें धर्म की शिक्षा कैसे दे सकता हूं, मैं कह सकता हूं कि साहित्य विभाग में हमें संस्कृत साहित्य की तकनीकी पहलुओं और बहुत प्रसिद्ध नाटक - जैसे अभिज्ञान शाकुंतलम, उत्तर रामचरितम - और रघुवंश महाकाव्य और हर्शचरितम जैसे महाकाव्यों की पढ़ाई करनी होती है, जिनका धर्म से कोई लेनादेना नहीं है."
संस्कृत साहित्य पढ़ाने आए फ़िरोज़ खान का कहना है,
"एक टाइम पर मैं मान सकता हूं कि अगर वेद, धर्म शास्त्र या ज्योतिष की शिक्षा देनी हो, तो ज्यादा अच्छा होता कि मैं हिदू होता. लेकिन मेरी नियुक्ति संस्कृत साहित्य पढ़ाने के लिए हुई है, जिसका धर्म से कोई लेनादेना नहीं है. मुझे तो बस वही पढ़ाना है, जो पहले से ही लिखा जा चुका है."
शिक्षक फ़िरोज़ खान के पिता ने भी मीडिया से बात की है. रमज़ान खान. खुद संस्कृत में शास्त्री की डिग्री ली है. और संस्कृत का यही लगाव कि सोचा कि बच्चे को भी संस्कृत पढ़ाएंगे. News18 से बातचीत
में कहा,
"मैंने ज़िंदगी भर संस्कृत से मुहब्बत की और बेटे को भी दूसरी कक्षा से संस्कृत की तालीम दिलवाई. लेकिन अब दिल कचोट रहा है कि इस मुकाम पर पहुंचकर भी कुछ लोगों के विरोध के चलते उनके बेटे का कैरियर दांव पर लग गया है."
महापुरा के संस्कृत संस्थान से पढ़ाई कर चुके रमजान खान का नाम बागरू और आसपास के इलाकों में फेमस है. क्यों? क्योंकि रमज़ान मौके दर मौके शहरों और गांवों में जा-जाकर भजन और कीर्तन गाते हैं. उन्होंने आगे कहा,
"मेरे बेटे की नियुक्ति की वजह से बीएचयू में जो विरोध हो रहा है, उसे देखकर सोचता हूं बेटे को संस्कृत की पढ़ाई करवाने के बजाय अगर मुर्गे की दुकान खुलवा देता तो ज्यादा सही रहता. तब लोगों को इतनी आपत्ति नहीं होती."
और रमज़ान ही नहीं, उनके पिता भी संस्कृत के जानकार थे इसलिए उन्होंने अपने तीनों बेटों की भी संस्कृत की शिक्षा दी. बेटी दिवाली के दिन पैदा हुई तो उनका नाम लक्ष्मी रखा.
फ़िरोज़ खान के पिता रमज़ान खान कहते हैं कि मेरे बेटे को संस्कृत पढ़ने की वजह से इतनी दिक्कत हो रही है, इससे अच्छा होता कि बच्चे की मुर्गे बेचने की दुकान खुलवा दी होती. फ़िरोज़ खान के पिता रमज़ान खान कहते हैं कि मेरे बेटे को संस्कृत पढ़ने की वजह से इतनी दिक्कत हो रही है, इससे अच्छा होता कि बच्चे की मुर्गे बेचने की दुकान खुलवा दी होती.

फिरोज खान कहते हैं कि हमने कभी भी धर्म के आधार पर फर्क नहीं किया. मेरे लिए तो विरोध करने वाले विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस के लोग भी उतने ही प्रेमी है.
वहीं बीएचयू में इतिहास के प्रोफ़ेसर महेश प्रसार अहिरवार ने फेसबुक पर पोस्ट लिखी है कि बीएचयू को बीएचयू बनाने में सिर्फ हिन्दुओं का नहीं बल्कि मुस्लिमों का भी हाथ है. उन्होंने सातवें निजाम की चिट्ठी भी साझा की है कि उन्होंने मदन मोहन मालवीय को बीएचयू के निर्माण के लिए एक लाख रूपए का चन्दा दिया था.

एक और पोस्ट में उन्होंने फ़िरोज़ खान का बीएचयू में स्वागत भी किया है. लिखा है,
"फिरोज जी!महामना के परिसर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आपका स्वागत और अभिनंदन है. शिक्षा के पवित्र मंदिरों में मनुवादी और देशद्रोही ताकतों का खूनी पंजा धीरे-धीरे ढीला हो रहा है. इसलिए वे आपके चयन के विरोध में आंदोलन करने में लग गई हैं. वर्ण-जाति व्यवस्था को मजबूत करने एवं अपना वजूद बचाने के लिए यह ताकते छटपटा रही हैं, इससे घबराने की जरूरत नहीं है. हम आपके साथ हैं. यह देश और इस देश की शिक्षण संस्थाएं किसी जाति विशेष की जागीर नहीं है. जो लोग हिंदू धर्म शास्त्रों को आधार बनाकर कहते रहे हैं की वर्ण-जाति व्यवस्था में योग्यता ही सर्वोपरि है और "कोई भी व्यक्ति कर्म के आधार पर ब्राह्मण तथा कर्म के आधार पर शुद्र हो सकता है" अथवा "जातियां जन्मना नहीं कर्मणा है", उनका असली चेहरा बेनकाब हो चुका है. वर्ण जाति व्यवस्था और मनुवाद की पोषक, देश विरोधी इन ताकतों को बता देना है कि यह देश और इस देश की शिक्षण संस्थाएं किसी जाति विशेष की जागीर नहीं है और बाबा साहब का पवित्र संविधान एक नागरिक के रूप में हमें बराबर का अधिकार प्रदान करता है."



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