महंत नरेंद्र गिरि के शिष्य आनंद गिरि को सोमवार 20 सितंबर की रात हरिद्वार में हिरासत में लिया गया था. कुछ घंटों की पूछताछ के बाद मंगलवार 21 सितंबर को उनकी गिरफ्तारी की खबर आई. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज ज़िले के जॉर्ज टाउन पुलिस स्टेशन में आनंद गिरि के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया है. उनके ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 306 लगाई गई है. आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में ये धारा लगाई जाती है.
हालांकि, आनंद गिरि ने आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा है कि ये सब उनके खिलाफ एक 'बहुत बड़ी साज़िश' है. उन्होंने आजतक से ये भी कहा कि नरेंद्र गिरि को 'पैसों के लिए प्रताड़ित' किया गया और उनकी हत्या कर दी गई. आनंदगिरि ने नरेंद्र गिरि की मौत के पीछे आईजी केपी सिंह का नाम लिया और उनके खिलाफ जांच की मांग की है. स्वामी ओम ने बताया हिस्ट्रीशीटर इसी बीच एक अन्य महंत ने आनंद गिरि पर हिस्ट्रीशीटर होने का आरोप लगाया है. आरोप लगाने वाले नोएडा के ब्रह्मचारी कुटी के महंत स्वामी ओम भारती हैं. इंडिया टुडे के मुताबिक़ महंत स्वामी ओम ने बताया कि साल 2020 में लॉकडाउन के दौरान आनंद गिरी ने ब्रह्मचारी कुटी की 12 बीघा जमीन हड़पने की कोशिश की थी. इसके लिए उसने सेक्टर 82 गांव के प्रधान के साथ मिलकर योजना बनाई थी. लेकिन इसके लिए आनंद गिरी को ब्रह्मचारी कुटी का महंत बनना ज़रूरी था.
स्वामी ओम का कहना है कि इस बात की भनक लगने पर उन्होंने इसकी शिकायत अखाड़े के बड़े साधुओं से की थी. लेकिन कोई भी सुनवाई नहीं हुई. जून, 2020 को एक आधिकारिक कार्यक्रम के तहत आनंद गिरी ब्रह्मचारी कुटी के महंत के रूप में पदासीन हुए.

नोएडा के ब्रह्मचारी कुटी के महंत स्वामी ओम भारती. फ़ोटो साभार- ट्विटर
स्वामी ओम भारती ने इंडिया टुडे से बातचीत में आगे बताया कि उन्होंने महंत नरेंद्र गिरि को मामले के बारे में सूचित किया था. उनके मुताबिक, नरेंद्र गिरि के हस्तक्षेप के बाद विवाद सुलझाया गया था.
इंडिया टुडे के पास वो टेप्स हैं, जिनमें कथित रूप से स्वामी ओम भारती और महंत नरेंद्र गिरि के बीच हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग है. हालांकि इन टेप्स की पुष्टि नहीं हुई है.
टेप में नरेंद्र गिरि इस बात को क़ुबूल कर रहे हैं कि आनंद गिरि व्यक्तिगत लाभ के लिए उनके नाम का गलत इस्तेमाल करते थे. उन्होंने ये भी कहा कि कई बार आनंद को समझाने के बावजूद ऐसी घटनाएं बार-बार हो रही हैं. टेप की बातचीत के हवाले से कहा गया है कि आनंद गिरि अपने गुरु के नाम पर दूसरे साधुओं का समर्थन हासिल करते थे.