इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High court) ने रेप और अटेम्प्ट टू मर्डर के मामले में लोअर कोर्ट से सजा पाए अंकित पुनिया को बरी कर दिया है. अंकित पुनिया को 2020 में सेशन कोर्ट ने 100 साल की महिला के साथ रेप और हत्या करने के प्रयास का दोषी ठहराया था. और उम्रकैद की सजा सुनाई थी. जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा और जस्टिस गौतम चौधरी की पीठ ने सेशन कोर्ट के फैसले को पलटते हुए अंकित पुनिया को बरी कर दिया.
सौ साल की महिला से रेप में उम्रकैद की सजा काट रहा था शख्स, हाईकोर्ट ने बरी कर दिया
Allahabad High court ने मेरठ की 100 वर्षीय महिला के साथ रेप और हत्या के प्रयास के मामले में दोषी ठहराए गए शख्स को बरी कर दिया है. जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा और जस्टिस गौतम चौधरी की पीठ ने लोअर कोर्ट के फैसले को पलट दिया. पर हाईकोर्ट ने ऐसा क्यों किया?
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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला के पोते ने अंकित पुनिया के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत के मुताबिक, 29 अगस्त 2017 की रात महिला की चीख सुनकर उनका पोता और परिवार के दूसरे सदस्य मदद के लिए पहुंचे. और वहां से अंकित पुनिया को भागते हुए देखा. शिकायत में आगे बताया गया कि उस समय महिला पिछले एक साल से बिस्तर पर थीं. और इसके बाद से उनकी तबीयत बिगड़ गई. जिसके बाद उनको हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. जहां अगले दिन उनकी मौत हो गई.
इस मामले में अंकित पुनिया के खिलाफ हत्या और रेप का प्रयास और घर में जबरन घुसने समेत कई धाराओं में मामला दर्ज किया गया. इसके अलावा पीड़िता दलित थीं. इसलिए पुलिस ने उनके खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत मामला दर्ज किया. पुलिस ने इस मामले में पुनिया को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया. और 20 नवंबर, 2020 को मेरठ की एक अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई. जिसके बाद उन्होंने इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दायर की.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक, अपील पर सुनवाई के दौरान अंकित पुनिया के वकील ने कोर्ट को बताया कि महिला के पोते ने पुनिया से कर्ज लिया था. और कर्ज चुकाने से बचने और सरकार से आर्थिक मदद लेने के लिए उनके मुवक्किल को फंसाया था. पुनिया के वकील ने आगे बताया कि इस मामले में कोई स्वतंत्र गवाह या प्रत्यक्षदर्शी नहीं था.
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हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया है कि घटना के समय वह अपनी पत्नी के साथ गाजियाबाद में रह रहा था. जिसका मतलब है कि वह इस घटना का प्रत्यक्षदर्शी नहीं था. इसलिए शिकायतकर्ता और उनकी पत्नी के बयानों को कोर्ट ने अविश्वसनीय करार दिया. जोकि इस मामले में गवाह भी थे.
हाईकोर्ट ने अपने जजमेंट में महिला की मेडिकल रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि उनके शरीर पर कोई बाहरी चोट नहीं पाई गई. और शरीर पर बल प्रयोग के भी कोई निशान नहीं थे. हाईकोर्ट ने आगे बताया कि महिला बीमार थीं. और बाद में ‘सेप्टीसीमिया’ से उनकी मौत हो गई.
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