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कौन है अजीत सिंह, जिसकी लखनऊ में हत्या को बड़ी गैंगवॉर की शुरुआत कहा जा रहा है

लखनऊ के पॉश इलाके विभूति खंड में ताबड़तोड़ गोलीबारी हुई

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लखनऊ में अजीत सिंह (बॉक्स) नाम के एक बाहुबली को पॉश विभूतिखंड इलाके में गोलियों से भून दिया गया. पुलिस इसे गैंगवॉर के नतीजे की तरह देख रही है.
यूपी में अपराधी बेखौफ हैं, आशंका एक बार फिर उस समय सिर उठाने लगी जब राजधानी लखनऊ के गोमती नगर जैसे पॉश इलाके में बदमाश एक बाहुबली को गोलियों से भूनकर फरार हो गए. पुलिस के अधिकारी इसे गैंगवॉर बता रहे हैं. बदमाशों ने जिस अजीत सिंह को निशाना बनाया, वो माफिया डॉन मुख्तार अंसारी का करीबी और मऊ की एक पूर्व ब्लॉक प्रमुख का पति था. ताबड़तोड़ फायरिंग में अजीत की मौत हो गई.
लखनऊ शहर को हिला देने वाली ये वारदात बुधवार को हुई, गोमती नगर इलाके के विभूतिखंड में. रात करीब 8 बजे अंधाधुंध गोलीबारी में 39 साल के अजीत सिंह के साथ मौजूद एक शख्स घायल हो गया. उस वक्त वहां से गुजर रहे जोमैटो के एक डिलीवरी बॉय को भी गोली लग गई. दोनों घायलों का लोहिया हॉस्पिटल में इलाज किया जा रहा है. बताया जा रहा है कि अजीत को 8 से 10 गोलियां लगीं. मोहर सिंह के पैर में भी 3 गोलियां लगीं. अजीत सिंह पर दर्ज हैं डेढ़ दर्जन मुकदमे आजतक के आशीष श्रीवास्तव की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर ने बताया कि अजीत सिंह एक माफिया और अपराधी था. उसके खिलाफ 17-18 मुकदमे दर्ज हैं. इनमें से पांच मर्डर के हैं. अजीत तो 31 दिसंबर को ही जिला मजिस्ट्रेट ने जिला बदर घोषित किया है. कमिश्नर ने बताया कि अजीत सिंह ब्लॉक प्रमुख नहीं है. उसकी पत्नी पहले ब्लॉक प्रमुख थी.
कमिश्नर के मुताबिक, अजीत के साथी मोहर सिंह ने पूछताछ में बताया है कि तीन हमलावर थे, मोटरसाइकिल पर आए थे. अजीत जब मोहर सिंह के साथ SUV में जा रहा था, उसी वक्त उन पर हमला किया गया. अजीत और मोहर सिंह ने भी जवाब में गोलियां चलाई थीं. लेकिन किसी हमलावर को गोली लगी या नहीं, ये अभी पता नहीं चल सका है. गोली क्यों चली, क्या मामला था, इस बात की छानबीन की जा रही है. ठाकुर ने दावा किया कि गोलीबारी करने वाले लोग भी इन्हीं के परिचित थे. पुलिस इस बारे में मोहर सिंह से जानकारी लेने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसने खुलकर अभी कुछ नहीं बताया है. चाक-चौबंद सिक्योरिटी भी नहीं बचा सकी अपने आपराधिक इतिहास के चलते अजीत सिंह काफी चौकन्ना रहता था. अजीत सिंह ने अपनी गाड़ी भी बूलेटप्रुफ करा रखी थी. जब भी घर से बाहर निकलता था तो 4 गाड़ियों का काफिला उसके साथ रहता था. इसके बाद भी वह खुद को बचा नहीं सका. पुलिस सूत्रों का कहना है कि अजीत सिंह की हत्या के लिए आजमगढ़ से 3 दिन पहले ही 3 शूटर लखनऊ आ गए थे. इन लोगों ने अजीत सिंह के घर और उसके आसपास रेकी भी की थी. तीन दिनों से ये शूटर अजीत सिंह के हर मूवमेंट पर नजर रख रहे थे.
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अजीत सिंह अपनी सेफ्टी के लिए कई बॉडीगार्ड लेकर बुलेटप्रूफ गाड़ी में चलता था लेकिन वह भी काम नहीं आया. (फोटो-आजतक)
मऊ में दहशत रहती थी अजीत की मऊ के ग्राम देवसीपुर में रहने वाले राधेश्याम सिंह का बेटा अजीत हिस्ट्रीशीटर था. बताते हैं कि क्षेत्र पंचायत की राजनीति हो या शराब का बिजनेस, इलाके में कोई भी उसके खिलाफ नहीं जाता था. 2005 मे क्षेत्र पंचायत के इलेक्शन से उसने राजनीति में एंट्री ली थी. 2010 में उसने पत्नी रानू सिंह को ब्लॉक प्रमुख बनवाया. जब यह सीट अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षित हो गई, तो उसने अपने यहां काम करने वाली मनभावती राजभर को 2015 में मुहम्मदाबाद गोहना ब्लॉक प्रमुख के पद पर निर्विरोध जिताया. अजीत का इतना खौफ था कि कोई उसके खिलाफ इलेक्शन नहीं लड़ता था. तब से वही ब्लॉक प्रमुख प्रतिनिधि बनकर सारा काम संभाल रहा था.
मुहम्मदाबाद गोहना कोतवाली में हत्या, लूट, छिनैती और मारपीट के दर्जन भर से अधिक मुकदमे उसके खिलाफ दर्ज हैं. अजीत पर पहली FIR 2003 में राजकीय महाविद्यालय के स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन में हुए विवाद के कारण हुई थी.
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अजीत सिंह की इलाके में इतनी दहशत थी कि उसने अपनी पत्नी और उसके बाद अपनी नौकरानी को ब्लॉक प्रमुख का चुनाव निर्विरोध जितवा दिया था.

अजीत सिंह की आजमगढ़ के बाहुबली कुंटू सिंह से पुरानी दुश्मनी बताई जा रही है. कुंटू सिंह को यूपी पुलिस ने सूबे की टॉप 10 माफिया की सूची में शामिल किया है. माना जा रहा है कि इस हत्या के पीछे साल 2013 में सगड़ी के पूर्व विधायक सीपू सिंह की हत्या का भी एंगल हो सकता है. अजीत सिंह भी इस मामले में एक प्रमुख गवाह था. कई लोग अजीत सिंह की हत्या को गैंगवॉर की शुरुआत मान रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में कई बहुबलियों की इस तरह हत्या हो चुकी है. विकास नगर में पुष्पजीत, बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी और गोमती नगर में तारिक की हत्या के बाद अब विभूति खंड में ये हत्याकांड हुआ है. योगी सरकार ने राजधानी लखनऊ और एनसीआर में आने वाले नोएडा में कानून व्यवस्था दुरुस्त करने के मकसद से पुलिस कमिश्नरी व्यवस्था लागू की है. इन दोनों शहरों को अलग-अलग जोन में बांटकर डीसीपी बनाए गए हैं. बावजूद इसके अपराधी पुलिस को चुनौती देते नजर आते हैं.

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