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अहमदाबाद ब्लास्ट: दोषियों की सजा कम कराने हाई कोर्ट जाएंगे मौलाना मदनी

दोषियों ने कहा, 'कुरान ही संविधान है, हम सजा नहीं मानते.'

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बाएं से दाहिने. ब्लास्ट की फाइल फोटो और मौलाना अरशद मदनी. (फोटो: इंडिया टुडे)
अहमदाबाद ब्लास्ट केस में कल स्पेशल कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. इस केस में 38 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई और 11 को उम्रकैद. इस मामले में अब जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का बयान सामने आया है. मदनी ने कहा कि वो दोषियों की सजा कम कराने के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. न्यूज एजेंसी ANI से बात करते हुए मदनी ने कहा,
"हम हाईकोर्ट जाएंगे. हमें उम्मीद है कि हाई कोर्ट में सजा में थोड़ी राहत मिल जाएगी. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो हम सुप्रीम कोर्ट में भी जाएंगे."
मौलाना मदनी ने कहा कि देश के नामी वकील दोषियों को फांसी से बचाने की कोशिश करेंगे. आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक, मदनी ने कहा कि उन्हें यकीन है कि इन लोगों को हाई कोर्ट से पूरा न्याय मिलेगा. पहले भी कई मामलों में निचली अदालतों से सजा पाए दोषी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से बाइज्जत बरी हो चुके हैं. खबर के मुताबिक, मदनी ने अक्षरधाम मंदिर हमले का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि निचली अदालत और गुजरात हाईकोर्ट ने मुफ्ती अब्दुल कय्यूम सहित 3 को फांसी और 4 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सभी को बाइज्जत बरी कर दिया. 2008 में हुए थे धमाके अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट का मामला 26 जुलाई, 2008 का है. इस दिन अहमदाबाद में 22 बम धमाके हुए थे. बस, साइकिल, पार्क और अस्पतालों में ये धमाके किए गए थे. इस आतंकवादी हमले में 56 लोगों की मौत हुई और लगभग 200 लोग घायल हुए. दो बमों में ब्लास्ट नहीं हुआ था. इन धमाकों की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन नाम के आतंकवादी संगठन ने ली थी. केस की सुनावाई 13 साल से ज्यादा तक चली. 8 फरवरी को अहमदाबाद के एक स्पेशल कोर्ट के जज अंबालाल पटेल ने इस मामले के 78 आरोपियों में से 49 को दोषी पाया था. इनमें से 38 दोषियों को मौत जबकि 11 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई.
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फाइल फोटो. (इंडिया टुडे)

इस मामले में जिन 38 दोषियों को मौत की सजा हुई है उनमें से 6 मध्यप्रदेश के भोपाल में सेंट्रल जेल में बंद हैं. आजतक के रवीश पाल सिंह की रिपोर्ट के मुताबिक, सजा के ऐलान के बाद से सभी दोषियों की बॉडी लैंग्वेज से नज़र आ रहा है कि वो परेशान हैं. उनके चेहरे मुरझाए हुए हैं. हालांकि बावजूद इसके दोषी संविधान को मानने के लिए तैयार नहीं है. रिपोर्ट के मुताबित जेल स्टाफ से बात करते हुए दोषियों ने कहा कि उनके लिए कुरान ही संविधान है, इसलिए इस सजा को वो नहीं मानते.