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8 साल ईंटे ढोईं, आज रांची के टॉप कॉलेज में पढ़ती है

इसके अलावा एक और कहानी है. एक लड़के ने जेल में रहकर 2 साल पढ़ाई की और IIT का एग्जाम फोड्डाला.

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फोटो - thelallantop
बड़ी बोरिंग शुरुआत हो जाएगी अगर 'कोशिश करने वालों की हार नहीं होती' या 'प्रतिभा अभावों में ही जन्म लेती है' वाला जुमला दोहराएं. इस बात को फ्रेश तरीके से कहे जाने की जरूरत है. क्योंकि रोज नई कहानियां हमारे सामने इंस्पिरेशन बनकर खड़ी हो जाती हैं. आज दो कहानियां बताएंगे. एक लड़की जिसने 8 साल तक ईंटें ढोईं, आज रांची के टॉप कॉलेज में पढ़ती है. एक लड़का, जिसने जेल में अपने पिता के साथ रहते हुए पढ़ाई की और आईआईटी का एग्जाम फोड्डाला. 16 साल की मीरा खोया घर का खर्च चलाने के लिए मजदूरी करती थी. 10वीं में बढ़िया नंबर आए थे, लेकिन फ्यूचर का कोई भरोसा नहीं था. मंगलवार को उसका एडमिशन रांची के निर्मला कॉलेज में हुआ. जो शहर के सबसे बढ़िया कॉलेजों में शुमार किया जाता है. कॉलेज उसे स्कॉलरशिप भी देगा और होस्टल भी.
मीरा बहुत खुश है. वह बार-बार उन सबको शुक्रिया कहती है, जिन्होंने यहां तक पहुंचने में उसकी मदद की. जब लोगों ने उसकी कहानी सुनी तो मदद को सामने आए. आज उसके बैंक अकाउंट में तीन लाख रुपये हैं.
8 साल की उम्र से वो मजदूरी कर रही थी. हर रोज करीब 12 घंटे ईंटें ढोईं. दिन अच्छा रहता तो 200 रुपये तक की दिहाड़ी मिल जाती. एक-एक दिन छोड़कर वो एक छोटे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई करने जाती. एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, मीरा के पापा 12 साल पहले मर गए थे. तब से फैमिली की हालत खराब है. उसकी मां छोटे-मोटे काम करती हैं. कभी-कभी तो देसी शराब भी बेचनी पड़ती है. अब तक मीरा और उसकी छोटी बहन मजदूरी करके ही रोटी कमा रहे थे. उनका भाई बच्चों को फुटबॉल सिखाता है, ताकि वो भी किसी कॉलेज में एडमिशन ले सके. मीरा आगे चलकर पुलिस ऑफिसर बनना चाहती है. पहले डॉक्टर बनना चाहती थी, लेकिन किसी ने बताया कि डॉक्टरी की पढ़ाई में खर्चा बहुत लगता है.

अब बात दूसरी कहानी की...

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ओपन जेल एक सिस्टम है, जिसमें अच्छे बिहेवियर वाले कैदियों को जेल प्रशासन कूछ छूट देता है. कैदियों को एक तय वक्त में जेल कैंपस से बाहर जाकर नौकरी करने की इजाजत होती है. कई मामलों में उनकी सेल को लॉक नहीं किया जाता है. पर करना इतना होता है कि रात होते-होते कैदी को जेल में लौटना होता है.
पीयूष ने कहा, 'ये जेल बुरी नहीं है. लोगों को लगता है कि यहां माहौल खराब है पर ऐसा नहीं है. आज मैंने अपने पापा के सपनों को पूरा किया है. पापा ने मुझे जेल में रखकर और मेरी पढ़ाई को फंड करके जो बेहद साहस का काम दिखाया है.'

लड़के ने 2 साल जेल में 'रहकर' आईआईटी क्रैक कर दिया. पीयूष बीते दो साल से कोटा सेंट्रल जेल की ओपन जेल में रह रहा था. पीयूष के पापा फूलचंद मीणा जेल में कैद हैं. मर्डर करने के बाद उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. पीयूष जेल में किसी गुनाह की वजह से नहीं, बल्कि सिर्फ तैयारी करने के मकसद से रह रहा था. मेहनत सफल रही. पीयूष की इंडिया में 453वीं रैंक आई है. यानी IIT मिलना पक्का समझो. फूलचंद मीणा को इसी ओपन जेल के तहत छूट मिली हुई थी. बेटे की पढ़ाई में मदद हो जाए, इसलिए फूलचंद नौकरी करने लगे. रोज दिनभर नौकरी करते. इस नौकरी से फूलचंद को हर महीने 12 हजार रुपये मिलते. इन पैसों से वो बेटे को IIT की कोचिंग 'वाइब्रेंट' तो भेज पाए. लेकिन हॉस्टल में पीयूष को रखवा पाना मुश्किल था. इसलिए उनने की जेल प्रशासन से बात. जेल प्रशासन वाले भी बढ़िया लोग निकले. ओपन जेल में पीयूष को साथ रहने की इजाजत दे दी. बीते दो साल से पीयूष वहां रहकर तैयारी में जुटा हुआ था. फूलचंद नौकरी के बाद रात में जेल में लौट आते, ताकि बेटे की पढ़ाई हो सके. फूलचंद ने कहा, 'पीयूष के लिए जेल में रहकर पढ़ाई करना मुश्किल था. पर जेल के अंदर ड्यूटी पर तैनात गार्ड्स हमेशा पीयूष का हौसला बढ़ाते.' जेल सुप्रीटेंडेंट शंकर सिंह ने कहा, 'कठिन हालात में पीयूष के एग्जाम क्वालिफाई करने की हमें खुशी है.'

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