''क्योंकि जब मुट्ठी में सूरज लिए नन्हीं सी बिटिया सामने खड़ी थीतब हम उसकी उंगलियों से छलकती रोशनी नहींउसका लड़की होना देख रहे थेउसकी मुट्ठी में था आने वाला कलऔर सब देख रहे थे मटमैला आजपर सूरज को तो धूप खिलाना था बेटी को तो सवेरा लाना थाऔर सुबह हो कर रही.''-प्रसून जोशी
लड़कियों के पंख काटने वालों! शर्म आ रही है ना?
साक्षी-सिंधू के झंडे गाड़ दिए. अब प्रसून जोशी ने इस समाज से कुछ चुभने वाले सवाल पूछे हैं.
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Prasoon Joshi
ओलंपिक में लड़कियों के मेडल लाने के बाद से सोशल मीडिया पर FightLikeAGirl जैसे हैशटैग चल रहे हैं. लड़कियों की वाहवाही हो रही है. सही समय पर प्रसून जोशी ने उन लोगों से सवाल किया है, जिन्होंने लड़कियों को दुपट्टे और चारदीवारी में रखी जाने वाली चीज समझा. बच्चियों की स्कूल जाने की इच्छा का गला घोंटकर उन्हें चूल्हे-चौके में झोंक दिया. सिर्फ गांव नहीं, शहरों में भी ऐसा हुआ. खेल खेलने से रोका गया. हर तरह की नौकरी की इजाजत नहीं मिली. उन्हें टीचर जैसे 'आसान जॉब' करने के लिए मना लिया गया. इन्हीं लोगों से सवाल करते हुए प्रसून जोशी ने एक कविता लिखी है. देखिए:
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