The Lallantop
लल्लनटॉप का चैनलJOINकरें

48 हजार साल पुराना वायरस सामने आया, अब एक नई महामारी आएगी?

पूरी दुनिया डरी हुई है!

post-main-image
प्रतीकात्मक तस्वीरें. (Pixabay.com)

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण मानव सभ्यता पर बहुत बड़ा संकट आ सकता है. इस आशंका को हवा में उड़ा देने वालों के लिए एक खबर. शोधकर्ताओं को क्लाइमेंट चेंज के कारण बनी झील से करीब दो दर्जन वायरस मिले हैं. इनकी जांच ने उनकी नींद उड़ा दी है. इन विषाणुओं को लेकर वैज्ञानिक कितने डरे हुए हैं, इसका अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि इन्हें 'जॉम्बी वायरस' (Zombie Viruses) कह दिया गया है. इनमें से एक जॉम्बी वायरस तो अति प्राचीन है. 48 हजार 500 साल से भी ज्यादा पुराना. इतने सालों से बर्फ के नीचे जमा था. अभी भी जमा है. लेकिन क्लाइमेट चेंज की वजह से जिस रफ्तार से बर्फ पिघल रही है, उसके मद्देनजर शोधकर्ताओं को टेंशन होने लगी है.

बर्फ में दबे हैं कई खतरे, पिघलने पर आएंगे सामने

रिपोर्टों के मुताबिक यूरोपीय शोधकर्ताओं को रूस के साइबेरिया में शोध आधारित खोजबीन के दौरान इन वायरसों का पता चला है. उन्होंने इन विषाणुओं को विशेष उद्देश्य के लिए पुनर्जीवित कर इन्हें 13 अलग-अलग रोगाणु श्रेणियों में बांटा है. चूंकि ये विषाणु एक तरह से मरकर जिंदा हुए हैं, इसीलिए सभी को 'जॉम्बी वायरस' नाम दे दिया गया है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने बताया कि ये वायरस लाखों सालों से बर्फ में जमे पड़े थे, इसके बावजूद संक्रमण फैलाने की इनकी क्षमता बरकरार है.

इन वायरसों में सबसे पुराने जॉम्बी वायरस को पैंडोरावायरस येडोमा (Pandoravirus Yedoma) नाम दिया गया है. रोगाणु प्रजाति के इस अति प्राचीन सदस्य ने उम्र के मामले में अपने एक भाई का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया है. साल 2013 में मिले उस वायरस की उम्र 30 हजार साल बताई गई थी. लेकिन दीर्घायु पैंडोरावायरस येडोमा उससे 18 हजार 500 साल से भी ज्यादा बड़ा है.

हजारों सालों से ग्रीनहाउस गैसें (जैसे मीथेन) बर्फ में दबी थीं. लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते लगातार बर्फ पिघलने के कारण अब इन गैसों के हवा में फैलने का डर है. और इसकी जानकारी काफी कम है कि इन गैसों के हवा में फैलने से उन रोगाणुओं पर क्या असर पड़ेगा जो लंबे वक्त से बर्फ में दबे होने की वजह से निष्क्रिय हैं.  

शोध में शामिल रूस, जर्मनी और फ्रांस के वैज्ञानिकों ने कहा है कि जिन वायरसों को उन्होंने खोजा है, उनके फिर से जीवित होने का जैविक खतरा बहुत ही कम है. उन्होंने बताया कि अध्ययन के लिए उन्होंने उन स्ट्रेन को टारगेट किया है जो केवल सूक्ष्म अमीबा जीवाणुओं को संक्रमित कर सकते हैं. समस्या तब है अगर जानवरों या इंसानों को संक्रमित करने वाले वायरस पुनर्जीवित हो जाएं. अगर ऐसा हुआ तो वो समस्या काफी बड़ी हो सकती है. शोधकर्ताओं के मुताबिक उनका अध्ययन बता सकता है कि ये खतरा वाकई में है. प्राचीन काल से बर्फ में दबे वायरस जलवायु परिवर्तन के कारण मुक्त हो सकते हैं.

क्या है मारबर्ग वायरस जिसमें 90 पर्सेंट संक्रमितों की जान चली जाती है.