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2017 के जिस ट्रेन हादसे को माओवादी साज़िश कहा जा रहा था, वो ख़राब पटरी के चलते हुआ था

रेलवे ने अपनी जांच रिपोर्ट में ख़ुलासा किया.

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2017 में आंध्र प्रदेश में हुआ हीराखंड एक्सप्रेस एक्सीडेंट, जिसमें जांच रिपोर्ट क़यासों से उलटा रिज़ल्ट दे रही है.
21 जनवरी, 2017. रात 11 बजे का वक़्त. जगदलपुर से भुवनेश्वर जाने वाली हीराखंड एक्सप्रेस आंध्र प्रदेश के विजयानगरम में पटरी से उतर गयी. ट्रेन में 600 लोग सवार थे. दुर्घटना में 41 लोगों की मौत हो गयी. इस दुर्घटना में माओवादियों द्वारा साज़िश की बात चली. जांच NIA को दी गयी. तीन साल गुज़र गए. और रेलवे की अपनी जांच में पता चला है कि माओवादियों की वजह से नहीं, बल्कि रेल ट्रैक के ख़राब पार्ट की वजह से ये दुर्घटना हुई थी. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर की मानें, तो साउथ सेंट्रल सर्किल के CRS राम कृपाल द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट बताती है कि ऐक्सिडेंट टंग (tongue) रेल के टूटने की वजह से हुआ था. टंग रेल यानी ट्रैक का 9 मीटर लम्बा वो हिस्सा, जो गाड़ियों को ट्रैक चेंज करने में मदद करता है. क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन टीम को जांच के दौरान दुर्घटना स्थल पर टंग रेल का टुकड़ा मिला था, जिसे रेलवे को सौंप दिया गया था. इस रिपोर्ट में पूर्वी घाट रेलवे के सिविल इंजीनियरों को दुर्घटना के लिए दोष योग्य माना गया है. साथ ही ये भी कहा गया है कि इसमें रेलवे का कोई अधिकारी या कोई दूसरा व्यक्ति किसी भी हाल में दोष देने योग्य नहीं है. टंग रेल के बारे में बात करते हुए रेलवे सेफ़्टी के चीफ कमिश्नर एसके पाठक ने बताया कि टंग रेल का वज़न लगभग 52 किलो का होता है. एक तयशुदा वक़्त के बाद उसे बदलना होता है. लेकिन टंग रेल अपनी क्षमता से ज़्यादा वज़न उठा चुका था, और उसे बदला नहीं गया. जिसके कारण सम्भव है कि वो टूट गया. हालांकि जांच रिपोर्ट में राहत कार्य में रेलवे अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं. कहा गया है कि रेलवे के किसी भी अधिकारी ने राहत कार्य में मदद नहीं की. टीटीई ने भी राहत कार्य में मदद नहीं की, और न ही किसी रेलवे कर्मचारी को राहत कार्य में मदद करने के लिए कहा. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि घटनास्थल तक अपनी दुर्घटना राहत ट्रेन समय से भेजने में रेलवे असफल रहा. और दूसरी तरफ़ NIA ने इस मामले में आतंकी साज़िश के तहत FIR दर्ज तो की थी, लेकिन अब तक चार्जशीट नहीं फ़ाइल की है. सूत्रों के हवाले से आ रही ख़बरों की मानें तो NIA अभी तक इस मामले में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी है. कानपुर हादसे में भी यही हुआ था साल 2016 और 2017 के बीच कई ट्रेन दुर्घटनाएं हुई थीं. नवंबर 2016 में कानपुर में हुए हादसे में 150 लोग मारे गए थे. कुछ महीनो बाद नरेंद्र मोदी ने चुनावी रैली में ये भी कह दिया था कि ये सीमापार की साज़िश है. और ये भी कहा कि साज़िशकर्ताओं का साथ देने वाले चुनाव जीत जायेंगे तो क्या देश सुरक्षित रहेगा? एक्सप्रेस की ख़बर बताती है कि आतंकी साज़िश की आशंका जताते हुए सुरेश प्रभु ने तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह से इन घटनाओं की NIA से जांच कराने की सिफ़ारिश की थी. NIA ने जांच में मलबे और ट्रैक के हिस्से फ़ोरेंसिक साइंस लैब में भेजे ताकि विस्फोटकों का सुराग़ मिल सके. लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. IIT कानपुर की मदद से NIA ने एक प्रयोग किया. दुर्घटना का कम्यूटर की मदद से रीइनैक्ट किया गया. उसमें भी किसी साज़िश का ख़ुलासा नहीं हो पाया. NIA ने चार्जशीट तो फ़ाइल नहीं की. अलबत्ता रेलवे की जांच में रेलवे ट्रैक का हिस्सा ही टूटा हुआ निकला, जिसे शायद समय से बदला नहीं गया. कानपुर में हुई 2016 की दुर्घटना की जांच में भी रेलवे ने वेल्डिंग यानी, जोड़ की समस्या को दुर्घटना की वजह माना था. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़, ये जांच रिपोर्ट साल 2020 की शुरुआत में आयी थी. लेकिन रेलवे ने ये भी कहा था कि NIA अभी भी इस मामले की जांच कर रही है. लेकिन दी हिंदू से बातचीत में NIA के सूत्रों ने कहा कि कानपुर की घटना में भी उन्हें आतंकी साज़िश की कोई सबूत नहीं मिले हैं, लिहाज़ा वो इस मामले में चार्जशीट नहीं फ़ाइल करेंगे.

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