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तारीख: इंडियन आर्मी ने कैसे जीती सियाचिन की सबसे ऊंची चोटी?

सियाचिन में भारतीय फौज ने कैसे मिटाया मुहम्मद अली जिन्ना का नाम?

“जय माता दी साहिब, हमारे जवानों की लाश वापिस लानी है.”

हर रोज़ जब लेफ्टिनेंट जनरल बटालियन के मंदिर जाते, प्रसाद देते हुए कोई न कोई जवान उनसे ये शब्द कहता. ये साल था 1987 का. सियाचिन की पहाड़ी पर हर सुबह अपने साथ थोड़ी गर्मी लेकर आती थी. लेकिन सूरज की रौशनी में सामने अपने साथियों की लाश देखकर जवान सूरज को कोसते थे. उन्हें वापिस लाने का जूनून हर किसी के दिल में था लेकिन ये काम था बहुत मुश्किल. वजह - वो पहाड़ी जिस पर उनके साथी अंतिम नींद सोए थे, पाकिस्तान के कब्ज़े में आती थी. लेकिन क्या ऐसा संभव था कि सेना अपने साथियों को यूं की पीछे छोड़ दे? हरगिज़ नहीं. लिहाजा एक ऑपरेशन को अंजाम दिया गया. जिसमें सैनिक न सिर्फ अपने साथियों को वापिस लेकर आई. बल्कि उस चोटी को भी पाकिस्तान से हथिया लिया, जिसका नाम बड़े फख्र से उन्होंने क़ायद रखा था. मुहम्मद अली जिन्ना के नाम पर. क्या था ये ऑपरेशन, जानेंगे आज के एपिसोड में.