ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के मुताबिक हॉर्स ट्रेडिंग का मतलब होता है - किसी के साथ धंधे की बात इस चतुराई से करना कि आपका फायदा हो. अब आप पूछ सकते हैं कि भैया चतुराई से मुनाफा ही कमाना था, तो इसके लिए घोड़ों को बदनाम करने की क्या ज़रूरत थी? तो बात ये है कि घोड़ा खरीदना और बेचना एक बहुत जटिल कला है. क्योंकि उसका मूल्यांकन बहुत मुश्किल होता है. देखकर, दौड़ाकर कुछ अंदाज़ा तो लिया जा सकता है, लेकिन पैसा वसूल हुआ या नहीं, ये घोड़ा खरीदने के महीनों बाद ही मालूम चलता है. और इसीलिए घोड़ा बेचने वाले और खरीदने वाले - दोनों के पास एक दूसरे को चूना लगाने के पर्याप्त मौके होते हैं.
महाराष्ट्र में चल रहा असली खेल तो अब पता चला!
महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे की अब तक की कहानी

यही कारण है कि जब जब होटल या रिज़ॉर्ट वाली राजनीति होती है, हॉर्स ट्रेडिंग शब्द का इस्तेमाल होने लगता है. जितने पक्ष होते हैं, इसी कोशिश में रहते हैं कि सबसे ज़्यादा फायदा हमारा ही हो. महाराष्ट्र की घटनाएं बस इस मामले में नायाब हैं कि घोड़ा खरीद कौन रहा है, इसकी जगह, इस बात पर संशय ज़्यादा है कि घोड़े का मालिक है कौन.
शिवसेना में अब तक ठाकरे परिवार का एकछत्र राज था. विधायकों से लेकर काडर, ठाकरे परिवार के नाम पर ही लामबंद होता था. लेकिन अब शिवसेना के विधायक चिट्ठी लिखकर उद्धव ठाकरे से सवाल पूछ रहे हैं. और मुंबई के करीबी इलाकों में एकनाथ शिंदे के पोस्टर लग रहे हैं. फिर जैसे इतना कंफ्यूज़न कम लग रहा था, तो संजय राउत ने एक क्रिप्टिक बयान दे दिया - कि गुआहाटी वाली शिवसेना अगर मुंबई वाली शिवसेना से आ मिले तो ''कुछ सोचा जा सकता है.'' उधर से गुआहाटी वाली शिवसेना ने ये कह दिया कि उद्धव महाविकास अघाड़ी से अलग हों, तो कुछ सोचा जा सकता है!
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इमोशनल स्पीच के बाद, इमोशनल कार्ड चला - मुख्यमंत्री आवास ''वर्षा'' को छोड़कर अपने घर मातोश्री चले गए. तगड़ी भीड़ जुटी. शिवसैनिकों ने रोते रोते गुआहाटी कैंप को लानतें दीं. मगर असर उल्टा हुआ, कल तक बागी शिवसेना विधायकों की संख्या जो 29 थी, वो बढ़कर 35 हो गई. खबर आई कि 4-5 और विधायक मुंबई से गुवाहाटी पहुंच गए हैं. चूंकि ऐसे मामलों में सारा खेल नंबर का हो जाता है,
नारे आपने सुने, नंबर जान लीजिए. यहां एकनाथ शिंदे के साथ कुल 42 विधायक बैठे हैं. जिसमें से 7 तो निर्दलीय हैं. बाकी 35 शिवसेना के विधायक हैं. दो तिहाई का आंकड़ा छूने लिए 37 विधायकों की जरूरत है. अगर एकनाथ शिंदे ने 37 विधायक इकट्ठा कर लिए तो विधायकों पर दलबदल कानून भी लागू नहीं होगा, यहां तक कि शिंदे समूची शिवसेना पर ही क्लेम कर सकते हैं. इशारा तो कल ही दिया जा चुका है कि जब उद्धव की तरफ से बनाए गए व्हिप को शिंदे गुट ने खारिज कर दिया था. शिंदे गुट का दावा है कि उसके पास 37 से ज्यादा विधायक हैं, जो पार्टी पर उनका क्लेम मजबूत करते हैं.
गुआहाटी वाली शिवसेना की तरफ से हिंदुत्व के मुद्दे पर अपनी राह अलग करने का दावा किया गया था. दिलचस्प ये है कि हिंदुत्व की रक्षा के लिए शिवसेना विधायक अब्दुल सत्तार भी गुवाहटी मौजूद हैं. इस पर सोशल मीडिया पर भी खूब चटखारे लिए जा रहे हैं. बीते दिनों वो ईडी की रडार पर भी रहे थे. सत्तार इससे पहले निर्दलीय राजनीति कर चुके हैं. कांग्रेस में रह चुके हैं. कांग्रेस से भाजपा में जाने की बात कर चुके हैं. और 2019 से शिवसेना में हैं. सत्तार और गुवाहाटी के होटल रेडिसन ब्लू में जमा दूसरे शिवसैनिकों की तरफ से उद्धव ठाकरे पत्र भी लिखा गया.. मराठी में लिखे गए इस पत्र को एकनाथ शिंदे ने ट्वीट किया. पत्र की शुरुआत में विधायक लिखते हैं -
''कल वर्षा बंगले के दरवाज़े सच्चे अर्थों में आम लोगों के लिए खुले, देखकर आनंद हुआ. लेकिन यही दरवाज़े पिछले ढाई साल से शिवसेना के विधायकों के लिए बंद थे.''
आगे विधायक लिखते हैं कि बंगले पर न मिल पाने वाले शिवसैनिक मंत्रालय (महाराष्ट्र सचिवालय) के छठवे माले पर भी सीएम से नहीं मिल पाते थे, क्योंकि सीएम साहब वहां कभी आए ही नहीं. मिन्नतों के बाद वर्षा बंगले पर बुलाया जाता, लेकिन घंटो गेट पर खड़ा रखा जाता. फोन रिसीव नहीं किया जाता.
इसके बाद आता है एक वाक्य - '' मात्र याचवेळी आम्हाला आदरणीय एकनाथजी शिंदे साहेब यांचा दरवाज़ा उघडा होता'
'मतलब - ऐसे में हमारे लिए एकनाथ शिंदे का दरवाज़ा हमेशा खुला रहता था.
शिवसैनिकों ने इस बात की भी शिकायत की है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस के लोग नियमित रूप से उद्धव से मिलते रहते थे और उनके काम भी लगातार पूरे हो रहे थे. फंड भी मिल रहा था. ऐसे में शिवसैनिक अपने लोगों को क्या जवाब देते. फिर जब आदित्य ठाकरे अयोध्या जाने वाले थे, तब शिवसेना के दूसरे विधायकों को एयरपोर्ट से वापस क्यों बुलाया गया? इस खत की एक एक लाइन में तंज़ और शिकायत से भरी हुई है. और आखिर में ये भी लिखा है कि 22 जून के फेसबुक लाइव में उद्धव ने जो कहा, वो भावुक तो था, लेकिन उसमें बाग़ी शिवसैनिकों के सवालों के जवाब नहीं थे.
गुवाहटी से सवाल आए तो जवाब मुंबई से भी आना था. गुवाहटी में हुई गोलबंदी के बीच सीएम उद्धव ठाकरे ने भी विधायकों की बैठक बुलाई. बैठक हुई तो पता लगा कि बेटे आदित्य ठाकरे सहित 13 विधायकों ने उद्धव ठाकरे का साथ नहीं छोड़ा है. या ये कह लीजिए कि 13 ही बचे हैं. जबकि 2019 में हुए महाराष्ट्र चुनाव में शिवसेना के 56 विधायक जीतकर आए थे. एक की मृत्यु हो चुकी है. बचते हैं 55 और उसमें उद्धव के खाते में 13. कौन हैं वो विधायक?
> अजय चौधरी,
> रवींद्र वायकर
> राजन सालवी,
> वैभव नाईक,
> नितीन देशमुख,
> उदय सामंत,
> सुनील राऊत,
> सुनील प्रभु,
> दिलीप लांडे,
> राहुल पाटिल,
> रमेश कोरगावकर,
> प्रकाश फातरपेकर और
> आदित्य ठाकरे
ये सभी मातोश्री में मौजूद रहे. और जो नहीं आए, माने जो गुवाहाटी में हैं.
संजय राउत ने अपने मराठी में दिए एक बयान में यहां तक कह दिया कि शिवसेना के विधायकों को गुवाहाटी से संदेश नहीं देना चाहिए. वे लोग मुंबई वापस आकर बात करें. अगर सभी विधायक चाहते हैं कि हम MVA गठबंधन से बाहर आ जाएं तो इस पर भी बातचीत होगी. लेकिन उनको आकर सीएम उद्धव ठाकरे से बात करनी होगी. एकनाथ शिंदे के साथ मौजूद सभी विधायक अगर यहां आकर कहेंगे कि उनको एनसीपी और कांग्रेस के साथ नहीं रहना है तो हम सत्ता छोड़ने के लिए तैयार हैं. लेकिन, पहले आकर बात करें. मैं शिंदे और उनके साथ गुवाहाटी में मौजूद विधायकों को आने वाले 24 घंटे का समय देता हूं.
शिवसेना ने बागी विधायकों से बात करने के लिए MLC संजय राठौर के साथ दो नेताओं का दल गुवाहाटी भी भेजा है. इसके साथ संजय राउत की तरफ से एक दावा और किया गया. कि गुवाहाटी में मौजूद 21 विधायकों ने उनसे संपर्क किया है और जब वे मुंबई लौटेंगे, तो वे शिवसेना के साथ ही खड़े होंगे. राउत के मुताबिक महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे बहुत जल्द ‘वर्षा’ बंगले में वापस आएंगे.
अब संजय राउत कुछ भी कहें लेकिन शिंदे के पीछे खड़े होने वाले विधायकों की कतार दिन पर दिन लंबी होती चली गई है. अब वो इस स्थिति में है कि मुंबई में मौजूद आलाकमान को रण से याचना के स्वर में आना पड़ गया है. मगर इन सबके बीच जो बड़ी बात निकल कर सामने आई वो ये, कि शिवसेना अब कह रही है कि वो महाविकास अघाड़ी यानी ने कांग्रेस और एनसीपी का साथ छोड़ने को तैयार है.
महज़ ढाई साल पहले की बात है जब संजय राउत इस गंठबंधन की सरकार 50 साल तक चलाने की बात कर रहे थे. अब उनके इस बयान से NCP और कांग्रेस का भरोसा भी हिल गया है.
NCP ने भी बैठक की. सूत्रों के मुताबिक बैठक में से 3 प्वाइंट्स निकल कर सामने आए
1. स्थिति को देखते रहें और वक्त आने पर उचित कॉल लें
2. असंतुष्ट विधायकों को साथ लाने में शिवसेना के साथ लड़ें
3. इसपर विचार करें कि क्या संजय राउत के बयान के बाद MVA गठबंधन और सरकार में बने रहना चाहिए?
इन सवालों के बीच एनसीपी नेता और पूर्व डिप्टी सीएम छगन भुजबल का बयान आया. उनकी तरफ से मराठी में दिए गए बयान में कहा गया, अगर संजय राउत सही हैं और गठबंधन से बाहर जाना चाहते हैं तो वो हमारे नेता शरद पवार से बात करें, उन्हें कोई रोकेगा नहीं. हर पार्टी को अपने रास्ते पर चलने का अधिकार है. लेकिन अपने ''दिल'' की सुनने वाले अजित पवार जब प्रेस के सामने आए, तो उन्होंने कह दिया कि NCP अंत तक उद्धव ठाकरे के साथ बनी रहेगी. उन्होंने ये भी कहा कि शिवसेना विधायकों की तरफ से फंडिंग में पक्षपात का जो आरोप लगाया गया, वो सही नहीं है. क्योंकि एक मंत्रालय या विभाग या नेता किसी दूसरे के लिए जारी होने वाली निधि को रोक ही नहीं सकता. शरद पवार ने तो यहां तक कहा कि बाग़ियों को कीमत चुकानी होगी. और जो होगा, विधायकों के मुंबई आने के बाद होगा.
एक तरफ शिवसेना, एक तरफ एनसीपी और एक तरफ कांग्रेस - सबका अपना गेम है. दूसरी तरफ है बीजेपी, जिसका गेम सबसे बड़ा माना जा रहा है. और दिलचस्प बात ये कि बीजेपी इस बार हड़बड़ी के मूड में बिलकुल नहीं है. वो खिचड़ी के पूरी तरह पकने का इंतजार कर रही है.
कहावत है कि दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंक कर पीता है. बीजेपी फिलवक्त उसी मोड में है. क्योंकि पिछली बार अजित पवार के साथ जाकर गच्चा खा चुकी है. ये आज के दिन का अपडेट था. अब आ जाते हैं इनसाइट्स यानी अंदर की खबर पर. जो धीरे-धीरे सामने आ रही हैं.
शिवसेना के ज़्यादातर विधायक गुआहाटी के रेडिसल ब्लू होटल में हैं. तो क्या मान लें कि मातोश्री की सियासी ताकत खत्म हो गई है? मातोश्री मतलब वो बंगला जहां बाल ठाकरे रहा करते थे और अभी उद्धव ठाकरे रहते हैं. ताकत कम होने का अंदाजा फिलहाल बचकाना होगा क्योंकि राजनीति में फौरी आंकलन दूसरे दिन औंधे मुंह गिर जाते हैं. मातोश्री का मतबल महाराष्ट्र के बाहर भले ही कम लोगों को पता हो. मगर महाराष्ट्र के शिवसैनिकों के लिए मातोश्री किसी मंदिर से कम नहीं है.
अब सवाल है कि इन सबके बावजूद शिवसेना जैसी काडर बेस्ड पार्टी में ये नौबत कैसे आई?
पहला बिंदु -मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी है. और साथ ही शिवसेना का गढ़ भी, जहां शिवसेना का कट्टर काडर बसता है. ऐसे में यहां से इतनी बड़ी संख्या में विधायकों का सूरत जाना कई तरह के सवाल पैदा कर रहा है. क्या ये इंटेलिजेंस फेलियर था? सरकार के पास अपने विधायकों के मूवमेंट की जानकारी क्यों नहीं थी? इसका सीधा जवाब किसी के पास नहीं है. लेकिन सूत्रों के हवाले से मीडिया रिपोर्ट्स में ये दावा किया गया है कि महाराष्ट्र पुलिस के स्टेट इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट (SID) ने करीब दो महीने पहले ही सरकार को बता दिया था कि महाविकास अघाड़ी के 8 से 10 विधायक विपक्ष के संपर्क में थे. विपक्ष का मतलब महाराष्ट्र के संदर्भ में भाजपा होता है. लेकिन इसपर उद्धव सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया. यहां दिलचस्प ये है कि गृहमंत्रालय NCP के पास है. दिलीप वासले पाटिल गृहमंत्री हैं. क्या उन्हें इंटेलिस डिपार्टमेंट से मिली सूचना की खबर नहीं थी?
सभी विधायकों और मंत्रियों को महाराष्ट्र पुलिस की सुरक्षा मिली हुई थी. सूत्र बताते हैं कि गुजरात बॉर्डर तक महाराष्ट्र पुलिस के जवान विधायकों के साथ ही थे. इस पर NCP की तरफ से अजीत पवार की सफाई आई है, उन्होंने कहा- जो भूमिका कुछ लोग बना रहे हैं राष्ट्रवादी को लेकर वैसा कुछ भी नहीं है. मगर सवाल तो ये बना ही रहेगा कि इंटेल की सारी रिपोर्ट गृहमंत्री और मुख्यमंत्री क्या नहीं पहुंची ? सवाल इसलिए हैं क्योंकि जो दिखता है, राजनीति में होता उससे कहीं ज्यादा है.
अब आते हैं दूसरे बिंदु परमहाविकास अघाड़ी सरकार के चीफ आर्किटेक्ट शरद पवार ही हैं, ये बात किसी से छिपी नहीं है. पवार के पास लंबा प्रशासनिक और राजनैतिक अनुभव है. संभवतः इसीलिए जो शिकायतें आज शिवसैनिक गुआहाटी से कर रहे हैं, उन्हें लेकर पवार ने उद्धव को पहले ही चेता दिया था. दरअसल सूत्रों ने दावा किया कि कुछ मौकों पर शरद पवार तक को मुख्यमंत्री से मिलने का मौका नहीं मिला. ये दावा किया जा रहा है कि आज से तकरीबन 4 से 5 महीने पहले पवार ने उद्धव को सलाह दी थी कि विधायकों और गठबंधन के नेताओं से मिलना जुलना शुरू करें, वरना कोई अनहोनी हो सकती है.
तीसरा बिंदु -अब ये बात एक ओपन सीक्रेट है कि बग़ावत से दो दिन पहले शिवसेना के भीतर एक गर्मा-गर्म बहस हुई थी. एक तरफ थे एकनाथ शिंदे, दूसरी तरफ थे आदित्य ठाकरे और संजय राउत. वजह थी विधान परिषद चुनाव. एकनाथ शिंदे नहीं चाहते थे कि शिवसेना के अतिरिक्त मत कांग्रेस प्रत्याशी को दिए जाएं. नतीजा क्या हुआ, हमने आपको 21 जून वाले बुलेटिन में बता दिया था. कांग्रेस के दूसरे उम्मीदवार चंद्रकांत हंदोरे परिषद चुनाव हार गए. कारण ये था कि कम से कम 3 शिवसैनिकों और तीन कांग्रेसियों ने क्रॉसवोट किया.
इन बातों से ये स्थापित होता है कि जो शिकायतें शिवसैनिकों ने अपनी चिट्ठी में लिखी थीं, वो पूरी तरह बेबुनियाद नहीं थीं.
हमने आज दिन भर के अपडेट आपको बता दिए. उन अपडेट्स के पीछे के कारण जान लीजिए. अब अपनी बात कहते हैं. कुल मिलकर अगर इस क्राइसिस में महाराष्ट्र सरकार में मौजूद तीनों पार्टियों के स्टैंड को टटोला जाए तो चार बातें समझ आती हैं -
> कांग्रेस के नाना पटोले खुलकर इसे बीजेपी की साजिश बता रहे हैं.
> NCP कह रही है कि बीजेपी की साजिश नहीं ये शिवसेना का अंदरुनी मसला है.
> और शिवसेना भी बीजेपी को खुलकर ब्लेम नहीं कर रही है. सरकार के ढाई साल पूरे हो चुके हैं. ढाई साल के लिए शिवसेना का मुख्यमंत्री राज कर चुका है.
> इन सबके बीच बीजेपी ठहरे हुए पानी आए हलचल का आनंद ले रही है.
इस सबके बीच मार्के की बात ये है कि शिवसेना में बगावत हुई है, मगर बागी विधायकों की तरफ से सरकार गिराने का कोई भी औपचारिक प्रयास नहीं किया गया है. औपचारिक प्रयास का मतलब विधायकों के हस्ताक्षर के साथ राज्यपाल को चिट्ठी भेजना. इसमें लिखना कि हमारा इस सरकार में कोई विश्वास नहीं रहा.
हो सकता है कि शिंदेसैनिक 37 के आंकड़े का इंतज़ार कर रहे हों. तब वो ये दावा करे सकते हैं कि हम अगल गुट हैं या हम ही असली शिवसेना हैं. उसके बाद राज्यपाल मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख कर विशेष सत्र बुलाने का निर्देश देंगे. ताकि बहुमत का परीक्षण हो सके. वैसे दर्शक ये जान लें कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी कोविड पॉजिटिव हैं.
एक और ज़रूरी बात है, जिसपर आपको ध्यान देना चाहिए. वो ये, कि महाराष्ट्र विधानसभा में फिलवक्त कोई स्पीकर यानी अध्यक्ष नहीं हैं. कांग्रेस के नाना पटोले स्पीकर थे, उनके इस्तीफे के बाद ये पद खाली है. असलियत ये है कि उसके लिए चुनाव ही नहीं कराया गया. अब ऐसे में NCP नरहरि झिरवर, जो डिप्टी स्पीकर हैं, वही स्पीकर का काम संभाल रहे हैं. यहां उनका रोल काफी महत्वपूर्ण हो गया है.
अब तक एकनाथ शिंदे शिवसेना के नेता सदन थे. डिप्टी स्पीकर नरहरी ने एकनाथ शिंदे की जगह अजय चौधरी को सदन में शिवसेना के समूह के नेता के रूप में नियुक्त करने की मंजूरी दे दी है. मंगलवार को ही शिवसेना ने शिंदे को पद से हटा दिया था. बागी शिंदे को भी डिप्टी स्पीकर से संपर्क करना होगा और अपने विद्रोही समूह को असली शिवसेना के रूप में मान्यता देने की मांग करनी होगी. अब यहां से सवाल दो हैं -
>क्या डिप्टी स्पीकर शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट का समर्थन करेंगे ताकि सरकार बच जाए? या वो विद्रोही गुट को असली शिवसेना के रूप में स्वीकार करेंगे? सत्ता एक है, संभावनाएं अनके.
> जम्मू कश्मीर की तरफ से विधानसभा भंग करने का विकल्प भी मौजूद है. कोर्ट-कचहरी के रास्ते भी खुले हैं. यानी मुंबई के समंदर अभी कई बड़ी लहरों का उठना बाकी है.
कल क्या हो, इसकी खबर किसी को नहीं, लेकिन कुछ जानकारी जरूर हाथ लगी है. बताया जा रहा है कि गुवाहाटी के होटल रेडिसन ब्लू में 6 दिन के लिए बुकिंग की गई है. करीब 90 लोग होटल में ठहरे हुए हैं. इनमें शिवसेना और निर्दलीय विधायक भी शामिल हैं. विधायकों की संख्या बढ़ते देखते हुए होटल में कुछ और कमरों को खाली रखने के लिए कहा गया है. अभी होटल में 4 दिन की बुकिंग बाकी है. तो क्या ये मामला 4 दिन और चलेगा? देखते जाइए, अभी इस वेब सीरीज़ के कई एपिसोड बाकी हैं