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क्या है PM ऋषि सुनक का 'सीक्रेट प्लैन', जिसके चलते उन्होंने 6 महीने पहले संसद भंग करवा दी?

आमतौर पर माना जाता है कि अगर कोई नेता चुनाव तय तारीख़ से पहले करा रहा है, तो उसे अपने पक्ष में हवा बहते दिख रही है. माने उसके इनपुट्स उससे कह रहे हैं कि अभी माहौल ठीक है, क्या पता कल हो न हो. सुनक ने ऐसा क्या किया है, जो वो इतने चौड़े में हैं?

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ऋषि सुनक एक विवादास्पद क़ानून पर दाव खेल रहे हैं. (तस्वीर - रॉयटर्स)

यूनाइडेट किंगडम में चुनाव होने वाले हैं. जुलाई के पहले हफ़्ते में. यूं तो चुनाव कराने के लिए 28 जनवरी, 2025 तक का समय था, मगर प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने छह महीने पहले ही चुनाव करवाने की घोषणा कर दी है. ब्रिटिश मीडिया में छपी रिपोर्ट्स की मानें, तो उनकी कैबिनेट के अधिकतर लोगों को भी इस औचक क़दम की उम्मीद नहीं थी. इसलिए लाख टके का सवाल ये है कि सुनक ने ऐसा किया क्यों?

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आमतौर पर माना जाता है कि अगर कोई नेता चुनाव तय तारीख़ से पहले करा रहा है, तो उसे अपने पक्ष में हवा बहते दिख रही है. माने उसके इनपुट्स उससे कह रहे हैं कि अभी ‘माहौल’ ठीक है, क्या पता कल हो न हो.

ब्रिटेन में पिछला आम चुनाव दिसंबर, 2019 में हुआ था. यानी इस संसद का कार्यकाल दिसंबर 2024 में पूरा होने वाला था. छह महीने पहले चुनाव करवाने की दो बड़ी वजहें बताईं जा रहीं हैं - अर्थव्यवस्था में सुधार और रवांडा प्लैन.

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महंगाई दर में कमी

यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के निकलने (BREXIT) के बाद से UK की इकॉनमी ख़स्ताहाल है. बुनियादी ज़रूरतों के भी लाले हैं. कम से कम 1.13 करोड़ लोग - आबादी का 14% - खाद्य असुरक्षा की स्थिति में हैं. माने उनके पास पर्याप्त खाने की कमी है या अच्छी गुणवत्ता का खाना नहीं मिल पा रहा है. मिडल क्लास अलग जूझ रहा है. नौकरियां नहीं हैं. सरकारी नौकरियों में ज़रूरत है, लेकिन भर्ती नहीं निकल रही. रहने का हिसाब-किताब ऐसा है कि 2021 के एक सर्वे के मुताबिक़, इंग्लैंड के 1.75 करोड़ लोग 'भीड़भाड़ वाले, ख़तरनाक या अस्थिर इलाक़ों' में रह रहे थे. प्रॉपर्टी के दाम आसमान छू रहे हैं.

अर्थव्यवस्था और महंगाई वहां एक बड़ा मुद्दा है. PM सुनक से पहले लोग बोरिस जॉनसन सरकार की अर्थव्यवस्था से भी नासाज़ थे. उनके बाद लिज़ ट्रस आईं. उनकी तो कुर्सी ही इसी बात पर गई थी. उनकी ‘आर्थिक सुधार’ चले नहीं, बाज़ार क्रैश कर गया था, और इसके साथ उनकी सरकार भी.

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इस स्थिति में सुनक जब प्रधानमंत्री बने थे, तब उनका फ़ोकस अर्थ ही था. तब ब्रिटेन में महंगाई दर 11% से ज़्यादा थी. उन्होंने जनता से वादा किया कि इसे कम करेंगे. बीती 22 मई को आई एक रिपोर्ट के मुताबिक़, अप्रैल महीने में ब्रिटेन में महंगाई दर 2.3 फीसदी गिरी. जानकार कहते हैं, सुनक इस सफलता को भुनाना चाहते हैं.

रवांडा प्लैन

आधिकारिक तौर पर इसे कहते हैं, ‘UK-Rwanda Migration and Economic Development Partnership’. इसके मुताबिक़, 1 जनवरी, 2022 के बाद UK में शरण चाहने वाले और अवैध तरीक़ों से घुसने वाले लोगों को पुनर्वास (resettlement) के लिए अफ़्रीका के देश रवांडा भेजा जाएगा. जिनके ऐप्लिकेशन पास हो गए, वो ब्रिटेन में नहीं, रवांडा में रहेंगे. बदले में रवांडा सरकार को ब्रिटेन की तरफ़ से वित्तीय सहायता मिलेगी.

अगर ऐप्लिकेशन रिजेक्ट हो जाता है, तो वो और किसी आधार पर रवांडा में बसने के लिए अप्लाई कर सकते हैं, या किसी 'तीसरे सुरक्षित देश' जा सकते हैं. कोई भी UK वापस नहीं आ सकता.

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मगर ये प्लैन बहुत विवादास्पद है. क्यों? इसे समझने के लिए दी लल्लनटॉप ने BBC लंदन के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार परवेज़ आलम से बात की. उन्होंने हमें बताया कि इमीग्रेशन का मसला हमेशा ही विवाद में बना रहता है. क्या-क्या पक्ष हैं?

  • दक्षिणपंथी पार्टीज़ मुद्दा बनाती हैं कि अगर बाहर से बहुत ज़्यादा लोग आ जाएंगे, तो हमारे सीमित संसाधन उनमें बंट जाएंगे और ब्रिटेन तो वैसे ही एक टापू है. चारों तरफ़ से पानी से घिरा हुआ है. 68 मिलियन (पौने 7 करोड़) की आबादी वाले इस टापू देश में औसतन हर साल 80-85 हज़ार लोग असाइलम के लिए अप्लाई करते हैं. अब इतनी बड़ी तादाद में लोग यहां आएंगे, तो उनके लिए बंदोबस्त करना पड़ेगा. सरकार की नैशनल हेल्थ सर्विस जैसी तमाम welfare schemes को इनके लिए खोलना पड़ेगा. उनकी शिक्षा और रोज़गार के लिए एक सिस्टम बनाना पड़ेगा.
  • दूसरी साइड क्या कह रही है? वो रवांडा की स्थिति पर सवाल उठा रहे हैं. रवांडा, अफ़्रीका के सेंट्रल-ईस्ट में है. रवांडा का नाम अक्सर रवांडा नरसंहार (Rwanda Massacre) के चलते सुना होगा. साल 1994 में हुए इस वीभत्स नरसंहार में 100 दिनों के अंदर 10 लाख से ज़्यादा लोगों की हत्या कर दी गई थी. बहुसंख्यक समुदाय के लोगों ने अल्पसंख्यकों पर हमला कर दिया था. हालांकि, बाद के सालों में कुछ हालात बेहतर हुए, मगर रवांडा अभी भी बहुत पिछड़ा देश है. इसीलिए प्लैन के आलोचकों का तर्क है कि रवांडा उन रेफ़्यूजीज़ को भेजने के लिए सुरक्षित जगह नहीं है, जो ख़ुद अपने देश में अस्थिरता की वजह से भागे हैं. जैसे, अफ़ग़ानिस्तान से. फिर वहां उनके पास वकील नहीं होंगे, सपोर्ट नेटवर्क नहीं होगा. यहां तक कि देश के सुप्रीम कोर्ट तक ने ख़ुद इस प्लैन को इन्हीं ग्राउंड्स पर ग़ैर-क़ानूनी बताया था.

सुनक सरकार ने तमाम दबावों और मानवाधिकार संगठनों के विरोध के बावजूद रवांडा प्लैन को पास करवाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रवांडा सुरक्षित देश नहीं है, तो उसे सुरक्षित देश घोषित करने के लिए बाक़ायदा क़ानून पास किया. सारी तिकड़म लगाई, क्योंकि इमीग्रेशन अवैध आप्रवास बड़ा चुनावी मुद्दा बनकर उभरा है. बड़ी संख्या में लोग इसपर रोक लगाने की मांग करते हैं. वहां की राजनीति बूझने वाले बताते हैं कि सुनक को लगता है कि ये प्लैन उनके पक्ष में काम आ जाएगा.

अच्छा, आख़िरी सवाल. इसमें रवांडा का क्या फ़ायदा है? 

रवांडा की स्थिति जगज़ाहिर है. उनके लिए किसी भी तरह की फ़ाइनैंशियल एड ज़रूरी है. जगह की कमी उनके पास है नहीं. UK सरकार ने 2023 के अंत तक रवांडा को 240 मिलियन पाउंड (2,537 करोड़ रुपये) दे दिए हैं. अभी तक एक भी प्रवासी रवांडा गया नहीं है, और इतने पैसे लग गए हैं. उनके नैशनल ऑडिट ऑफ़िस के मुताबिक़, आने वाले पांच सालों में कम से कम 370 मिलियन पाउंड (3,912 करोड़ रुपये) लगेगा.

वीडियो: दुनियादारी: ब्रिटेन अपने यहां आए लोगों को रवांडा क्यों भेज रहा है?

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