क्या है ब्रेग्ज़िट, जिस पर ब्रिटेन की सरकार अभी गिरते-गिरते बच गई?
29 मार्च, 2019. दिन शुक्रवार. रात के 11 बजे. ये डेडलाइन है ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन के इस डिवोर्स की.
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29 मार्च को ब्रेग्ज़िट की डेडलाइन है. इस दिन रात 11 बजे ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन से निकल जाना है. बहुत लंबी बातचीत के बाद EU और ब्रिटेन ने अलग होने की शर्तें तय की थीं. मगर इस डील को ब्रिटिश संसद ने मंज़ूर नहीं किया. बल्कि PM टरीज़ा मे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी आ गया. मगर उनकी सरकार बच गई (फोटो: रॉयटर्स)
वो ज़हर देता तो सब की निगाह में आ जातासो ये किया कि मुझे वक़्त पे दवाएं न दीं.ब्रेग्जिट पर ब्रिटेन में जो हो रहा है, उसी के नाम है अख़्तर निज़ामी की ये शायरी. ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन (EU) से अलग होना है. मगर इसके लिए महीनों की बातचीत के बाद जो डील तय हुई, उसपर मुहर नहीं लग पाई. EU से तलाक की शर्तें क्या होंगी, अलगाव कैसे होगा, अलग होने के बाद कैसे रिश्ते होंगे, फाइनैंशल मैटर्स का क्या सीन होगा, एक-दूसरे के यहां रह रहे लोगों का क्या होगा, ये सारी चीजें ब्रिटेन और EU को मिलकर तय करनी थीं. इसपर ब्रिटेन की संसद को मुहर लगानी थी. मगर 15 जनवरी को टरीज़ा मे का प्रपोजल ब्रिटिश संसद ने गिरा दिया. विरोध में डले 432 वोट. समर्थन में गिरे 202 वोट. इसके बाद प्रधानमंत्री टरीज़ा मे की सरकार के खिलाफ भी अविश्वास मत आया. मगर वो बच गईं. ब्रेग्ज़िट की डेडलाइन है 29 मार्च. तारीख़ पास आ गई है और ब्रिटेन में रज़ामंदी नहीं बन पाई है. इससे यूरोपियन लीडर्स झल्लाए हुए हैं. कह रहे हैं, जो करना है जल्दी तय करो. ब्रिटेन में भी डर है कि कुछ तय नहीं हुआ, तो बिना किसी प्लान के अलग होना होगा. ये पूरा मामला क्या है, इसमें क्या पेच है, क्या कुछ हुआ है अब तक, ये सब हम आपको इस Brexit Explained में समझा रहे हैं. यूरोपियन यूनियन क्या बला है? एक संगठन है देशों का. यूरोप के कुल 28 देश हैं इसमें. यूरोप के देशों में आपसी दुश्मनी का इतिहास था. एक-दूसरे से लड़ते रहते थे. लड़-लड़कर दूसरा विश्व युद्ध कर लिया. तब जाकर अक्ल आई. सोचा, बहुत बर्बादी हो गई. अब बस करते हैं. आपस में शांति और सहयोग बना रहे, झगड़े की नौबत न आए, इसके लिए यूरोपियन यूनियन की नींव रखी गई. शुरुआत की बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, इटली, लक्ज़मबर्ग और नीदरलैंड्स ने. 1 जनवरी, 1973 को आकर यूनाइटेड किंगडम EU जॉइन कर पाया. ब्रिटेन के साथ आने की एक बड़ी वजह उसकी गिरती अर्थव्यवस्था भी थी. EU के देशों में राजनैतिक और आर्थिक, दोनों तरह की पार्टनरशिप रहती है. ये एक बड़े सिंगल मार्केट जैसा है. एक-दूसरे के यहां जाकर कारोबार करो. एक-दूसरे के यहां चले जाओ. कई सारी चीजों में इसके सदस्य देशों के अंदर एक जैसा कानून चलता है. ब्रेग्ज़िट मतलब क्या? एक दिन जैसे ब्रिटेन ने EU जॉइन किया था. वैसे ही एक दिन ब्रिटेन की मेजॉरिटी ने यूरोपियन यूनियन को तलाक़ देने का फैसला किया. ब्रिटेन की EU से एग्ज़िट. यानी Britain+Exit. दोनों को मिलाकर इसे ब्रेंजेलिना और वीरुष्का टाइप नाम मिला- ब्रेग्ज़िट. ब्रेग्ज़िट की बात आई कहां से? ऑक्सफर्ड डिक्शनरी के मुताबिक, इस शब्द के पहले इस्तेमाल का श्रेय जाता है पीटर विल्डिंग को. मई 2012 में पीटर ने पहली बार इस शब्द का इस्तेमाल किया. पीटर ने 'ब्रिटिश इन्फ्लूऐंस' नाम के एक थिंकटैंक की नींव डाली थी. इसके आठ महीने बाद, यानी जनवरी 2013 में उस समय के ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने वादा किया. कि अगर 2015 में कंजरवेटिव पार्टी इलेक्शन जीतती है, तो वो रेफरेंडम करवाएंगे. यूरोपियन यूनियन के साथ ब्रिटेन के रिश्तों पर. ब्रिटेन में बात चल रही थी कि EU में उसको और कैसी सहूलियत मिलनी चाहिए. वो EU के नियमों में अपने मुताबिक कुछ बदलाव चाहता था. इमिग्रेशन, व्यापार जैसे कई मुद्दे थे जिनको लेकर ब्रिटेन की असहमतियां थीं. धीरे-धीरे रेफरेंडम के मामले ने जोर पकड़ा. इलेक्शन में कंजरवेटिव पार्टी को मेजॉरिटी भी मिल गई. फिर रेफरेंडम की तारीख भी तय हो गई. कब हुआ जनमत संग्रह? 23 जून, 2016. इस दिन ब्रिटेन में वोट डले. सवाल था कि ब्रिटेन को EU के साथ रहना चाहिए कि अलग हो जाना चाहिए. ब्रिटेन की आबादी बंटी हुई थी. दोनों तरफ के लोग कैंपेन चला रहे थे. सर्वे हो रहे थे. क्या आया रिज़ल्ट? कुल तीन करोड़ से ज्यादा लोगों ने वोट डाला था. जीत हुई अलग हो जाने वाले धड़े की. 51.9 फीसद लोगों ने अलग होने को चुना. 48.1 फीसद लोगों ने साथ रहने को चुना. यूनाइटेड किंगडम के बाकी हिस्से क्या चाहते थे? यूनाइटेड किंगडम का एक हिस्सा है इंग्लैंड. इंग्लैंड के अलावा स्कॉटलैंड, वेल्स और नॉदर्न आयरलैंड भी हैं. यहां भी वोटिंग हुई. वेल्स में भी बहुमत ने अलग हो जाने का फैसला किया. मगर स्कॉटलैंड और नॉदर्न आयरलैंड, दोनों EU के साथ बने रहना चाहते थे. अलग होने के लिए क्या करना था? एक समझौता है- लिस्बन ट्रिटी. इसके आर्टिकल 50 में अलग होने वाली बात है. इसके मुताबिक, अगर अलगाव की स्थिति आई तो इसकी शर्तें तय करने के लिए दोनों पक्षों के पास दो साल का समय होगा. रेफरेंडम का फैसला आने के बाद डेविड कैमरन ने इस्तीफ़ा दे दिया. उनकी जगह ब्रिटेन की PM बनीं टरीज़ा मे. उन्होंने 29 मार्च, 2017 को अलगाव वाली प्रक्रिया शुरू की. EU और ब्रिटेन में डील क्या हुई? लंबी-चौड़ी बातचीत के बाद चीजें तय हुईं. दोनों पक्ष एक ब्रेक्ज़िट डील पर रज़ामंद हुए. डील के दो हिस्से हैं. एक, विदड्रॉ अग्रीमेंट. दूसरा, भविष्य के संबंध. विदड्रॉ अग्रीमेंट के मुताबिक, ब्रिटेन को तकरीबन 39 बिलियन पाउंड (लगभग साढ़े 35 खरब रुपये) देने होंगे EU को. ये रकम अभी अनुमानित है. इसके अलावा नागरिकता से जुड़े नियम भी तय हुए. ब्रिटेन के जो लोग EU के हिस्सों में रहते हैं और EU के जो लोग ब्रिटेन में रहते हैं, उनके क्या अधिकार होंगे, ये सब भी इसी समझौते का हिस्सा है. साथ ही, आयरिश बॉर्डर का क्या सीन होगा ये भी इसी डील का हिस्सा था. फ्यूचर रिलेशन्सय में बात हुई कि भविष्य में EU और ब्रिटेन के बीच कैसे रिश्ते होंगे वगैरह वगैरह. शॉर्ट में कहें, तो EU और ब्रिटेन के बीच डील के तीन सबसे मुख्य पॉइंट्स थे- आयरिश बॉर्डर, वित्तीय समझौता, और EU-ब्रिटिश नागरिकों के अधिकार. अलग होने की डेडलाइन क्या है? नियम के मुताबिक, प्रक्रिया शुरू होने के बाद दो साल की मियाद रहती है. इस हिसाब से ब्रेग्ज़िट की डेडलाइन है 29 मार्च, 2019. इस तारीख़ को रात 11 बजे ब्रिटेन को EU से अलग हो जाना है. लेकिन अभी तक तो ब्रिटिश संसद ने डील ही फाइनल नहीं की है. क्या टल सकता है ब्रेग्ज़िट? हां. यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस ने दिसंबर 2018 में ये फैसला दिया था. कि अगर ब्रिटेन चाहे, तो अलग होने का फैसला रद्द कर सकता है. वो चाहे, तो EU के साथ बना रह सकता है. मतलब इस प्रोसेस को कैंसल कर सकता है. इसके लिए उसे EU के बाकी देशों से इजाज़त भी नहीं लेनी होगी. ब्रिटेन जिन शर्तों के साथ, जिस तरह पहले EU का सदस्य था, उसे वैसे ही बने रहना होगा. क्या अलग होने की तारीख बढ़ सकती है? हां, ये विकल्प है. अगर डेडलाइन तक कोई ठोस फैसला नहीं हो पाया, तो मियाद बढ़ाई जा सकती है. इसके लिए EU के सभी 28 देशों की सहमति चाहिए होगी. मगर टरीज़ा मे सरकार ने तय कियाकि चाहे डील हो या न हो, 29 मार्च को तो निकल ही जाना है. अब अगर ब्रिटेन ब्रेग्ज़िट रोकना चाहे, तो उसके लिए ब्रिटिश सरकार को कानून में बदलाव करना होगा. क्या दूसरा रेफरेंडम हो सकता है? इसकी भी खूब बातें हो रही हैं. कई पार्टियां कह रही हैं कि दोबारा जनता के बीच जाएं और इसी मुद्दे पर फिर से जनमत संग्रह करवाएं. कइयों को लगता है कि शायद इस बार ब्रिटेन की बहुमत आबादी EU के साथ रहने का फैसला करेगी. स्कॉटिश नैशनल पार्टी (SNP), लिबरल डेमोक्रैट्स पार्टी, ग्रीन पार्टी, लेबर पार्टी के कई सांसद और कंजरवेटिव पार्टी के भी कई लोग फिर से रेफरेंडम करवाने के पक्ष में हैं. बात तब बने, जब लेबर पार्टी की लीडरशिप भी साथ आए. लेबर पार्टी भी कह रही है कि बिना किसी डील के EU छोड़ने से कहीं बेहतर है दूसरा रेफरेंडम करवाना. लेबर के मुखिया हैं जेरमी कॉर्बिन. वो चाहते हैं कि पहले चुनाव हो. फिर ब्रेग्ज़िट की डेडलाइन बढ़वाकर लेबर पार्टी अपने हिसाब से EU के साथ डील करे. 'नो डील' ब्रेग्ज़िट माने क्या? इसका मतलब होगा कि EU और ब्रिटेन बिना किसी समझौते के, बिना कुछ तय किए अलग हो जाएं. डील की स्थिति में चीजें को सिस्टम में लाने के लिए 21 महीने लंबा ट्रांज़िशन पीरियड होना है. मगर नो डील में ये नहीं होगा. कारोबार के, संस्थाओं के, तमाम नियम-कायदे रातोरात बदल जाएंगे. बहुत अव्यवस्था और अफरातफरी हो जाएगी. ऐसा हुआ तो जो होगा, उसके कुछ उदाहरण देख लीजिए- 1. कारोबार- रातोरात कारोबार, सीमा शुल्क सबके नियम बदल जाएंगे. द्विपक्षीय व्यापार समझौते के बिना EU विश्व व्यापार संगन के नियमों के हिसाब से ब्रिटेन के साथ डील करेगा. EU और ब्रिटेन के बीच कारोबार में बहुत मुश्किल हो जाएगी. ब्रिटेन EU से सामान मंगवाएगा, तो उसपर ऊंचा आयात शुल्क लगेगा. ब्रिटेन में चीजें महंगी हो जाएंगी. 2. एक-दूसरे के यहां रहने वाले नागरिक- अभी लगभग 13 लाख ब्रिटिश नागरिक EU के देशों में रहते हैं. ऐसे ही लाखों यूरोपियन नागरिक ब्रिटेन में रहते हैं. नागरिकता से जुड़े, एक-दूसरे के यहां रहने और कमाने-खाने से जुड़ी बातें पहले ही साफ नहीं होती, तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी. कइयों की नौकरियां चली जाएंगी. कई सारी फ्लाइट सेवाएं तक बंद हो सकती हैं. 3. आयरिश सीमा- नॉदर्न आयरलैंड और रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड के बीच की सीमा का क्या होगा, ये सवाल अनसुलझा ही रह जाएगा. ऐसी स्ठिति में सीमा शुल्क और इमिग्रेशन कानून कैसे तय होंगे? बिना डील के निकलने का मतलब होगा खूब हाय-तौबा. ब्रिटेन में अभी बातचीत चल रही है. पार्टियों के बीच. कोई रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं लोग. मगर फिलहाल तो बहुत सारी अनिश्चितता, बहुत सारा कन्फ्यूजन बना हुआ है.
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