प्रवीण आमरे भारतीय क्रिकेट के परिदृश्य पर तब चमके थे, जब उन्होंने 1992 में अपने पहले टेस्ट में दुनिया की सबसे तेज़ पिच वाले डर्बन के मैदान पर 'व्हाइट लाइटनिंग' एनल डोनाल्ड के सामने डेब्यू पर सैंकड़ा ठोक दिया था. लेकिन आमरे जितनी तेज़ी से चढ़े, उतनी तेज़ी से गायब भी हो गए. उनकी टेस्ट में एवरेज 42 की है. लेकिन एक सीरीज़ की असफ़लता ने उन्हें हमेशा के लिए टीम से गायब कर दिया.
यही वजह थी. उन के मन में कसक रह गई थी कहीं, अौर जब वे कोचिंग में आए तो कुछ साबित करने का इरादा लेकर आए थे. आज उनकी कोचिंग के चर्चे भारतीय क्रिकेट की दैनिक चर्चाअों में शामिल हैं अौर अनिल कुंबले अौर रवि शास्त्री जैसे दिग्गजों के साथ वे भी भारतीय क्रिकेट टीम का नियमित कोच बनने के मज़बूत दावेदारों में से हैं. वैसे बॉब वूल्मर से लेकर डेव व्हाटमोर तक ने यह साबित किया है कि क्रिकेट का सफ़ल कोच बनने के लिए खुद 'सितारा खिलाड़ी' होना ज़रूरी नहीं. अौर यहां भारत में जॉन राइट से लेकर गैरी कर्स्टन जैसे नामों ने (अौर उससे भी ज़्यादा ग्रेग चैपल ने) यह साबित किया है कि पीछे रहकर काम करने वाला कोच भारतीय क्रिकेट के ढांचे में बेहतर काम करता है.
यहां जानिए, प्रवीण आमरे अौर उनकी कोचिंग से जुड़े 7 किस्से अौर बातें, जिन्हें पढ़कर ये साबित हो जाता है कि क्यों आमरे को कोच बनाना भारतीय क्रिकेट का मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है −
1.
प्रवीण आमरे ने कोचिंग की ट्रेनिंग साउथ अफ्रीका के क्रिकेट ढांचे में ली है. साउथ अफ्रीका, हमारे दौर की क्रिकेट का सबसे मुकाबले से भरा अौर हार्ड क्रिकेट सिस्टम वाला देश. उसी ढांचे से हमको विश्वकप जिताने वाला कोच मिला, गैरी कर्स्टन. पक्की ट्रेनिंग है आमरे की. आमरे नब्बे के दशक के आखिर में वहां बोलेंड की टीम के लिए क्रिकेट खेलने गए थे, लेकिन रुक गए. वहीं से उन्होंने कोचिंग (लेवल 1, लेवल 2) अौर अंपायरिंग के सर्टिफिकेट कोर्स किए.
2.
मज़ेदार बात ये है कि 2001 में भारत वापस आने पर उन्हें इंडिया में कोचिंग प्रैक्टिस करने के लिए दोबारा लेवल 2 कोचिंग कोर्स करना पड़ा, क्योंकि BCCI ने साउथ अफ्रीकन सिस्टम के कोर्स को रिकॉग्नाइज़ करने से मना कर दिया था. आमरे लेवल 2 पर रुके नहीं. उन्होंने लेवल 3 एग्ज़ाम के लिए एप्लाई किया. लेकिन ऐन मौके पर मुम्बई क्रिकेट एसोसिएशन ने उन्हें कहा कि उनके यहां से दोनों स्लॉट भर चुके हैं, लालचंद राजपूत अौर चंद्रकांत पंडित के आगे उनका नाम काट दिया गया था. आखिर में एनसीए हेड ब्रजेश पटेल के सहयोग से उन्होंने लेवल 3 का एग्ज़ाम दिया अौर आज वे भारत के सबसे प्रशिक्षित क्रिकेट कोच की लिस्ट में शामिल हैं.
3.
ये बात थी 2002 की. इसी मुम्बई क्रिकेट एसोसिएशन ने 2006-07 सीज़न में प्रवीण आमरे को मुम्बई टीम को कोच करने के लिए बुलाया. मुम्बई टीम भारतीय क्रिकेट की सबसे दिग्गज टीम है, 41 रणजी खिताबों के साथ दुनिया की सबसे चमकदार प्रथम श्रेणी टीम. मुम्बई कोच पद का वज़न इस तथ्य से समझें कि उन्हें उनकी सिखाई टीम में एक सचिन तेंदुल्कर नाम का खिलाड़ी भी खेलता था. क्या नतीजा निकला इस प्रयोग का? नतीजा − वे पांच साल मुम्बई के कोच रहे अौर उनमें से तीन साल मुम्बई ने रणजी ट्रॉफी को जीता.
4.
सचिन अौर कांबली की तरह वे भी शारदा आश्रम विद्यामंदिर स्कूल के विद्यार्थी हैं अौर रमाकांत अचरेकर के शिष्य हैं. उनका बचपन भी भारतीय क्रिकेट की नर्सरी कहे जानेवाले 'शिवाजी पार्क' में क्रिकेट खेलते बीता है अौर आज वो उसी क्लब के प्रेसीडेंट भी बने हैं. एक अौर खास बात, वो भारतीय अंडर नाइंटीन टीम जो 2012 में उनमुक्त चंद की कप्तानी में अॉस्ट्रेलिया में विश्वकप जीती, उसके कोच भी प्रवीन आमरे ही थे.
5.
प्रवीण आमरे क्रिकेट कोचिंग में आधुनिक तकनीक का खूब इस्तेमाल करते हैं. "सारा खेल बायो-मैकेनिक्स का है. टेनिस, बेसबॉल, क्रिकेट जैसे खेलों में हैंड-आई कॉर्डिनेशन अौर फोकस के एक से नियम लगते हैं. बेसबॉल प्लेयर ताकत के लिए पेट अौर पीठ की मसल्स का ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं. मैंने उसकी बैकलिफ़्ट में कुछ चेंज किए अौर उसकी हिटिंग सुधर गई." उन्होंने रहाणे की तकनीक में सुधार पर बात करते हुए कहा था.
6.
सुरेश रैना भी उनके क्रिकेट विद्यार्थी रहे हैं. ये पांच साल पुरानी बात है जब 2011 का विश्वकप शुरु हो चुका था. सुरेश रैना निराश थे क्योंकि उनके पहले युसुफ़ पठान को मैचों में खिलाया जा रहा था. उन्होंने इस बारे में आमरे से बात की. "मैंने उसे सही मौके का इंतज़ार करने को कहा." मौका आया अौर रैना ने अॉस्ट्रेलिया अौर पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक मौकों पर कमाल की पारियां खेलकर भारत को विश्वकप जिताया.
7.
प्रवीण बल्लेबाज़ी में दिमाग़ी मज़बूती के खेल को भी खूब समझते हैं. ये किस्सा देखिये − उनके संबंधी हैं अभय पोयरकर. अभय वो हैं जिन्होंने 1993 में मुम्बई पोर्ट पर rdx का बड़ा कंसाइमेंट पकड़ा था. ये rdx कंसाइमेंट गणेशोत्सव के दौरान मुम्बई को उड़ाने के लिए आया था. आठ साल वे अन्डरवर्ल्ड की हिट लिस्ट पर रहे. Z सिक्योरिटी पर. इस बहादुरी के लिए उन्हें राष्ट्रपति का पुरस्कार मिला. प्रवीण अजिंक्य रहाणे अौर रॉबिन उथप्पा को अभय पोयरकर से मिलवाने लेकर गए. अभय ने दोनों को बताया कि कैसे डॉन लोग उन्हें धमकाते थे अौर कैसे उनके परिवार पर हमले हुए. "ये हैं असली हीरो" प्रवीण आमरे कहते हैं. अजिंक्य रहाणे से पूछिए, वो आज भी उस मुलाकात को याद कर रोमांच भरे गौरव से भर उठते हैं.