जब नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को 500 और 1000 के नोट बंद होने का ऐलान किया तो बहुत सारे लोग ये पूछ रहे थे कि ये काम रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने क्यों नहीं किया. क्योंकि जब नोट रिजर्व बैंक छापता है, बैंकों को बांटता वही है तो ये काम भी तो उसी का है.
Advertisement
रिजर्व बैंक सबसे पहले बना था ब्रिटिश राज में. RBI Act, 1934 के मुताबिक इसे अधिकार दिये गये थे. पर अगर एक्ट पास हुआ तो इसका मतलब ये सरकार के अंडर ही आता है. उस वक्त की दुनिया के बड़े लोगों ने तय किया था कि बैंकिंग को पॉलिटिक्स से दूर रखेंगे. क्योंकि पॉलिटिक्स ज्यादातर लोगों के मूड को देखकर होती है. और बैंकिंग बिजनेस के लिहाज से होती है. पर 1929 में जब ग्रेट डिप्रेशन आया और आर्थिक मंदी छा गई, तब सरकारों को बैंकिंग में हाथ डालना ही पड़ा. तब समझ आया कि इकॉनमी और पॉलिटिक्स को अलग नहीं रखा जा सकता. दोनों आखिर लोगों से ही जुड़े हैं. तो एक काम किया गया. एक्ट में तय हुआ कि रिजर्व बैंक को सरकार से थोड़ी स्वतंत्रता दी जाएगी. डिसीजन लेने की. सरकार डायरेक्ट रिजर्व बैंक को कंट्रोल नहीं करेगी. मतलब उसके काम में हस्तक्षेप नहीं करेगी. पर रिजर्व बैंक रिपोर्ट तो सरकार को ही करेगा. मतलब समझ लीजिए कि अगर रिजर्व बैंक हाथ है तो सरकार दिमाग है. हाथ अपने मन से काम तो करेगा, पर अंदर से सरकार ही चलाएगी. उसके बिना कोई अस्तित्व नहीं है. इस लिहाज से नरेंद्र मोदी बिल्कुल अधिकारी हैं ऐलान करने के लिये. इसमें एक और बात थी. इस नोट बैन का असर जनता पर बहुत ज्यादा होने वाला था. अगर रिजर्व बैंक करता तो जनता में बड़ा आक्रोश फैलता. फिर ये इकॉनमिक डिसीजन नहीं रह जाता. पॉलिटिकल हो जाता. फिर सरकार को ही हस्तक्षेप करना पड़ता. तो इसके प्रभाव को देखते हुए खुद प्रधानमंत्री का देश को संबोधित करना सही था. अब सवाल ये है कि रिजर्व बैंक क्या करता है? सरकार को इकॉनमी चलानी है. नोट छापना है. लोन देना है. बिजनेस करवाना है लोगों से. टैक्स लेना है. तो ये काम बहुत बड़ा है. इसको बांट दिया गया दो संस्थाओं के बीच. टैक्स और सरकारी प्रोजेक्ट से जुड़ी हर चीज फाइनेंस मिनिस्ट्री के अंडर रख दी गई. और मुद्रा से जुड़ी चीजें जैसे लोन का इंटरेस्ट रेट, इन्फलेशन सब रिजर्व बैंक के अंडर दिये गये. होता क्या है कि सरकार भी अपने काम के लिये पैसा रिजर्व बैंक से उठाती है. अगर सरकार के हाथ में सारा दे दिया गया, तो कभी-कभी सरकार नोट छाप के काम कर लेगी. इससे इकॉनमी प्रभावित होगी. तो सरकार ने खुद के हाथ पर नियंत्रण रखने के लिए रिजर्व बैंक को ये अधिकार दे दिया है. फाइनेंस मिनिस्ट्री और रिजर्व बैंक दोनों माता-पिता की तरह हैं. जिनमें से कोई एक कमाता है और दूसरा ये निश्चित करता है कि महंगाई के दौर में कितना पैसा निकाला जाये. फाइनेंस मिनिस्ट्री के ये काम हैं 1. ये देश की फिस्कल पॉलिसी तय करते हैं.
2. मतलब टैक्स लेना और मिले पैसों से जनता के लिये काम करना.
3. फाइनेंस मिनिस्ट्री दिन-रात मेहनत कर पैसा जुटाती है. फिर उसे काम में लगाती है.
4. टैक्स निश्चित करते समय ये संसद में डिस्कस होता है. क्योंकि विपक्ष भी अपना पॉइंट रखता है. संसद पास करती है. ये कंट्रोल के लिये है. नहीं तो सरकार अपने मन से जब चाहे, तब टैक्स घटा-बढ़ा देगी. इससे लोगों को दिक्कतें होंगी. रिजर्व बैंक के ये काम हैं 1. ये मॉनीटरी पॉलिसी देखते हैं.
2. ये लोग देश में मुद्रा के आवागमन पर ध्यान रखते हैं. रुपये कितना गिरा, कितना बढ़ा इनके जिम्मे है. लोन, रेपो रेट, मनी सप्लाई सब.
3. ये सरकार का बैंक है. जैसे हमें अपने-अपने बैंक पसंद होते हैं. रिजर्व बैंक सरकार के पैसे का हिसाब रखती है.