#लाइसेंस के लिए आवेदन प्रक्रिया
मिनिस्ट्री ऑफ़ रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाईवेज़ (Ministry of Road Transport & Highways) के 'सारथी' (Sarathi) पोर्टल पर आप चार तरह के लाइसेंस के लिए अप्लाई कर सकते हैं. लर्नर लाइसेंस, ड्राइविंग लाइसेंस, कंडक्टर लाइसेंस और ड्राइविंग स्कूल लाइसेंस. कंडक्टर और ड्राइविंग स्कूल लाइसेंस प्रफ़ेशनल तरीक़े के हैं, आज बात सिर्फ़ लर्नर और ड्राइविंग लाइसेंस की.
#कितने तरीके के ड्राइविंग लाइसेंस होते हैं?
टू-व्हीलर और फोर व्हीलर के लिए परमानेंट ड्राइविंग लाइसेंस की चार केटेगरी हैं. शुरुआत लर्निंग लाइसेंस से करनी होती है, जिसके एक महीने बाद परमानेंट लाइसेंस के लिए अप्लाई कर सकते हैं. ये चार कैटेगरी हैं-
नॉन-गियर एंड नॉन ट्रांसपोर्ट- जो स्कूटी वगैरह के लिए ले सकते हैं.गियरलेस स्कूटर के लिए न्यूनतम उम्र 16 साल है, वहीं फोर व्हीलर, मोटर साइकिल या किसी भी और नॉन ट्रांसपोर्ट व्हीकल के लिए न्यूनतम उम्र 18 साल होनी चाहिए. अगर कमर्शियल यानी ट्रांसपोर्ट व्हीकल के लिए लाइसेंस चाहिए है तो न्यूनतम उम्र 20 साल है. अप्लाई करने का तरीका अब ऑनलाइन हो गया है. आप घर बैठे खुद से अप्लाई कर सकते हैं. लेकिन कई लोग दलाल के पास जाते हैं.
MCWG (NT) यानी मोटरसाइकिल विद गियर (नॉन ट्रांसपोर्ट).
LMV (NT) यानी लाइट मोटर व्हीकल (नॉन ट्रांसपोर्ट)- पर्सनल यूज़ वाली आपकी कार.
HMV (T) यानी हैवी मोटर व्हीकल (ट्रांसपोर्ट)- ये लाइसेंस गुड्स कैरियर, ट्रक वगैरह के लिए दिए जाते हैं.
#ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया
आसान स्टेप में समझें तो ऑनलाइन अप्लाई करने के लिए आपको सबसे पहले सारथी पोर्टल पर जाना होगा. एप्लीकेशन फॉर्म भरना होगा. मांगे गए डॉक्यूमेंट अपलोड करने होंगे. उसके बाद फ़ीस सबमिट करनी होगी. फिर ड्राइविंग टेस्ट के लिए स्लॉट बुक करना होगा और आखिर में पेमेंट वेरिफिकेशन.

अब इसके बाद आदर्श स्थिति में होना ये चाहिए की आपको टेस्ट का स्लॉट आसानी से मिल जाए. आप टेस्ट दें, उसे पास करें और लर्निंग लाइसेंस आपके हाथ में. लेकिन अमूमन ऐसा होता नहीं है. लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
#लर्निंग लाइसेंस की दिक्कतें
ये जानने के लिए हमें ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ा. हमारे तमाम साथी पत्रकार इन मुसीबतों से दो-चार हो चुके हैं. सबसे पहले हमने बात की हमारी ऑडनारी की सम्पादक प्रतीक्षा पांडेय से. उन्होंने कहा,
यूं तो हम पत्रकारों के लिए तुलनात्मक रूप से चीज़ें आसान होती हैं. सरकारी लोग हमारे साथ गड़बड़ करने से बचते हैं. लेकिन लाइसेंस बनवाने के मामले में हमें भी पापड़ बेलने पड़े. ऐसे में आम आदमी के साथ क्या दिक्कतें पेश आती होंगीं. अंदाजा लगाया जा सकता है.
प्रतीक्षा ने बताया कि जब उन्होंने ऑनलाइन अप्लाई करने की कोशिश की तो कई बार वेबसाइट ही क्रैश हो गई. इस कारण वे इस ‘घर बैठे’ वाली सुविधा का लाभ नहीं उठा पाईं. इसके बाद प्रतीक्षा सीधे RTO दफ्तर गईं. यहां उन्हें दलालों की इतनी लंबी-चौड़ी फौज मिली कि कंफ्यूज होना लाजिमी था. ऐसे में प्रतीक्षा जिस मोटर ड्राइविंग स्कूल से गाड़ी चलाना सीख रहीं थीं, वहां के एक ट्रेनर ने उनकी मदद की. अब इसे मदद कहिए या धंधा, उस ट्रेनर ने प्रतीक्षा को बताया कि लाइसेंस अप्लाई हो जाने के बाद भी आपको लाइसेंस मिल पाए ये आसान नहीं है, कुछ न कुछ कमी निकाल दी जाएगी. और कमी दूर करने का तरीका एक ही है- घूस.
ऐसे में आप पचड़े में न पड़ो. हम करवा देंगे. और आवेदन से लेकर लर्निंग लाइसेंस दिलाने तक की ज़िम्मेदारी उस ट्रेनर ने ले ली. बदले में प्रतीक्षा से एक हज़ार रुपए ले लिए. प्रतीक्षा फिलहाल वेटिंग में हैं. डेढ़ महीने बाद उन्हें ऑफिस बुलाया गया है. अब ड्राइव टेस्ट होगा. डॉक्यूमेंट वेरीफाई होंगे. उसके बाद सीधे लाइसेंस मिल पाएगा या नहीं, देखते हैं.
परिवहन कार्यालय (प्रतीकात्मक फोटो - mandalnews)
इसके बाद हमारे ही एक और साथी सुमित से हमने बात की. उन्होंने कोई तिकड़म लगाने के बजाय खुद से कोशिश की. ऑनलाइन आवेदन पर जो प्रतीक्षा ने बताया था, सुमित ने भी उस पर हामी की मुहर लगा दी. हालांकि जैसे-तैसे सुमित का आवेदन हो गया, लेकिन कहानी अटक गई ड्राइव टेस्ट पर.
सुमित यहां दो दिक्कतें बताते हैं, जो उन्हें झेलनी पड़ीं. एक तो ये कि दिल्ली में लर्निंग लाइसेंस के लिए ड्राइव टेस्ट का स्लॉट उन्हें महीनों की वेटिंग के बाद मिला. और उसके बाद जब मिला भी तो टेस्ट एक बार में पास नहीं कर पाए. तीन बार टेस्ट देना पड़ा. तीन बार क्यों? सुमित कहते हैं-
कुछ साल पहले तक ड्राइविंग टेस्ट कुछ आसान था. ट्रैफिक इंस्पेक्टर के सामने गाड़ी आगे पीछे करके दिखा देते थे, पार्किंग कर लेते थे तो लाइसेंस मिल जाता था. लेकिन अब हमारे यहां यूरोपियन ड्राइविंग टेस्ट प्रणाली शुरू कर दी गई है, जोकि बहुत मुश्किल है. इस टेस्टिंग में कुछ सवाल पूछे जाते हैं. वो चलो आपने बता भी दिए, लेकिन उसके बाद आपको गाड़ी से ऐसे करतब दिखाने पड़ते हैं जिनमें दसियों साल गाड़ी चला चुके प्रफेशनल ड्राइवर्स तक फेल हो जाते हैं.
मसलन आपको कुछ सेकंड में गाड़ी बैक गियर में चलाकर S शेप बनाना होता है. एच-ट्रैक पर भी वाहन चलाना होता है. ओवरटेकिंग में भी जौहर दिखाना होता है. बाइक वालों को इमरजेंसी ब्रेक लगाने और सीधी चढ़ाई पर गाड़ी चढ़ाने जैसे काम भी करने पड़ते है. और ये सब करते वक़्त बीच में रखे किसी बंप में गाड़ी नहीं लगनी चाहिए. टाइम लिमिट भी है. इसके बाद भी एक अड़चन है- HD कैमरा, जो आपकी ड्राइविंग में खामियां निकाल कर आपको रिजेक्ट कर देगा.
सुमित कहते हैं कि जब दूसरे टेस्ट में उन्हें बताया गया कि आप कैमरा रिकॉर्डिंग में रिजेक्ट हुए हैं तो उन्होंने कैमरे की फुटेज मांगी, जिस पर कह दिया गया कि इसके लिए आपको आरटीआई डालनी होगी.
ड्राइविंग टेस्ट सेंटर्स में इस तरह के ट्रैक पर गाड़ी चलानी होती है (फोटो साभार - gomechanic)
# देशव्यापी समस्या
अब आपके मन में सवाल ये आ सकता है कि क्या ये सिर्फ हमारी समस्या है. दूसरा आप ये भी सोच सकते हैं कि गाड़ी पर प्रेस लिखा है तो लाइसेंस की ज़रूरत क्या है. तो बता दें कि ये दोनों ही धारणाएं गलत हैं. एक तो ये कि प्रेस लिखा हो या प्रशासन, बात करने का मौक़ा ही नहीं मिलता, चालान सीधे मोबाइल पर आ जाता है. मज़े की बात तो ये है कि कई बार कार के नंबर के साथ हेलमेट का चालान आ जाता है. दूसरा ये कि समस्या सिर्फ़ हमारी नहीं है, आंकड़े बताते हैं कि हज़ारों लोग हर प्रदेश में लर्निंग और परमानेंट लाइसेंस की वेटिंग में महीनों से लगे हैं.
मसलन आपको कुछ सेकंड में गाड़ी बैक गियर में चलाकर S शेप बनाना होता है. एच-ट्रैक पर भी वाहन चलाना होता है. ओवरटेकिंग में भी जौहर दिखाना होता है. बाइक वालों को इमरजेंसी ब्रेक लगाने और सीधी चढ़ाई पर गाड़ी चढ़ाने जैसे काम भी करने पड़ते है. और ये सब करते वक़्त बीच में रखे किसी बंप में गाड़ी नहीं लगनी चाहिए. टाइम लिमिट भी है. इसके बाद भी एक अड़चन है- HD कैमरा, जो आपकी ड्राइविंग में खामियां निकाल कर आपको रिजेक्ट कर देगा.
#दिक्कतें क्यों हैं?
वाटर लेवल डाउन है, ये बता देने से काम नहीं चलेगा. बात ग्लोबल वार्मिंग की भी करनी पड़ेगी. ठीक इसी तरह ड्राइविंग लाइसेंस की समस्याओं के समाधान की तरफ बढ़ने की लॉजिकल क्रोनोलॉजी में ये सवाल लाजिम है कि दिक्कतें आखिर क्यों हैं.
अगर आधार कार्ड, पैन कार्ड या और तमाम सरकारी डाक्यूमेंट्स के लिए ऑनलाइन आवेदन करना आसान है, तो इसे भी आसान किया जा सकता है. और वेबसाइट क्रैश की दिक्कत अगर ज्यादा एप्लीकेशन लोड की वजह से है तो ये दिक्कत बाकी सरकारी पोर्टल्स के साथ भी होनी चाहिए. यानी दिक्कत कुछ और है.
दरअसल ये मामला थोड़ा बहुत वैसा ही है जैसा पंचायत वोटर कार्ड बनवाने का है. वहां भी ऑनलाइन आवेदन के बाद मैन्युअल असिस्टेंस की ज़रूरत होती है और यहां भी. लाइसेंस के लिए ऑनलाइन एप्लीकेशन का तीसरा और सबसे ज़रूरी स्टेप पूरी तरह मैन्युअल असिस्टेंस पर टिका है. जब आप स्लॉट बुकिंग की कोशिश करते हैं, तो जो डेट्स खाली हैं वो हरे रंग में शो होती हैं. ये खाली तारीखें शहर के RTO कार्यालय से निर्धारित होती हैं. एक मध्यम क्षेत्रफल के शहर में एक दिन में करीब 50 टेस्ट स्लॉट ही होते हैं. इस टेस्ट स्लॉट का नंबर ज़रूरत के अनुपात में बहुत कम है. ऐसे में आपको करीब 10 मिनट के एक टेस्ट स्लॉट के लिए महीनों का इंतजार करना पड़ सकता है.
RTO ये स्लॉट क्यों नहीं बढ़ाता, मैन्युअल लेवल पर क्या दिक्कतें हैं, इस बारे में हमने एक RTO स्तर के अधिकारी से बात की. नाम डिस्क्लोज़ न करने की शर्त पर उन्होंने हमें बताया,
लर्नर लाइसेंस अगर एक्सपायर हो गया तो उसे एक्सटेंड न करके नया लर्नर इशू किया जाता है. एक महीने बाद दोबारा परमानेंट लाइसेंस के लिए अप्लाई करना होता है. हालांकि कोरोना के दौरान लर्नर की टाइम वैलिडिटी 6 महीने से ज्यादा कर दी गई थी, लेकिन 31 अक्टूबर को जब सरकार ने लर्नर की वैलिडिटी और एक्सटेंड नहीं की तो ये समस्या और बड़ी हो गई. एकसाथ हज़ारों लोगों के लर्नर एक्सपायर हो गए. पूरे उत्तर प्रदेश में लाइसेंस न बन पाने की समस्या कम से कम 50 से 60 हज़ार लोगों की है.
स्लॉट्स की समस्या पर अधिकारी ने कहा,
डिपार्टमेंट ने एक RI यानी रीजनल इंस्पेक्टर पर 40 लाइसेंस टेस्ट का कोटा रखा है. लेकिन यूपी में पॉपुलेशन ज्यादा है. ऐसे में जिस जिले में दस RI और पांच ऑफिस होने चाहिए वहां एक RI और एक ऑफिस से काम चल रहा है. पांच VIP स्लॉट भी बनाए गए हैं. लेकिन आम आदमी के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. आम लोग टेस्ट देना चाहते हैं, लेकिन सरकार टेस्ट नहीं ले पा रही है. इसकी वजह सरकार की ख़राब फंक्शनिंग है.
RTO ऑफिस (फोटो साभार - patrika.com))
टेस्ट और स्लॉट के बाद क्या दिक्कत है, इस सवाल पर जवाब आया,
अगर टेस्ट में पास हो गए तो लाइसेंस लखनऊ से बनकर आ जाता है. शुरू में पोस्ट ऑफिस वाले दिक्कत कर रहे थे, लेकिन जब हमारे विभाग की तरफ से ये कहा गया कि हम डिलीवरी का काम प्राइवेट फर्म को दे देंगे, तब से कोई दिक्कत नहीं है.
#समाधान क्या है?
समाधान दरअसल कई स्तर पर किए जाने की ज़रूरत है.
#एक तो सरकार को स्लॉट बढ़ाने के लिए बड़े शहरों में ऑफिस और RI की कमी दूर करनी होगी. दूसरा, ऑनलाइन पोर्टल को दुरुस्त करना होगा. ताकि 'डिजिटल इंडिया' का नारा जुमला भर न लगे.
#एक बड़ी कमी इस पूरे सिंडिकेट में फैले करप्शन की है. लर्नर लाइसेंस बनवाना हो या लर्निंग से परमानेंट लाइसेंस तक की जंग लड़नी हो, आपके पास दो तरीके हैं. या तो आप सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने में माहिर हों या फिर आप पॉवर और जुगाड़ रखते हों. इलाके में आपके किसी ख़ास का भौकाल हो, कि जब कोई पेचीदा सरकारी काम कराने जाते हों तो आपको कुछ कर्णप्रिय शब्द सुनने को मिलते हों. जैसे, ‘अरे भाईसाब आपसे पैसा क्या लेना.’ ऐसे में आपका काम जल्दी हो जाएगा.
#लेकिन अगर दोनों तरीके अपनाना आपके लिए संभव नहीं है तो तीसरा विकल्प ही बचता है. वो है करप्शन के सिंडिकेट के लिए दुधारू गाय बन जाना. सिंडिकेट ऐसा कि चाहें ड्राइविंग सीखनी हो, मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाना हो, टेस्ट के झंझट से बचना हो, यहां तक कि अगर आप RTO ऑफिस जाकर साइन भी नहीं करना चाहते हों, तो भी आपको लोग मिल जाएंगे. कौन लोग? वही जो भौकाली आदमी से कहते हैं- आपसे क्या पैसा लेना. ये लोग कुछ हज़ार रुपए में आपको ड्राइविंग लाइसेंस दिलवाने का पूरा ठेका ले लेंगें.
ड्राइविंग लाइसेंस (प्रतीकात्मक फोटो सोर्स - इंडिया टुडे )
#इन लोगों के रेट क्या हैं?
इसके लिए हमने एक ऐसे ही मिडिलमैंन से बात की. उसने कहा,
हमारे रेट कोई तय नहीं हैं, जिससे जैसा मिल जाए. कोई जानने वाला हुआ तो बहुत सस्ते में काम करना पड़ता है. लेकिन अन्दर वालों का हिस्सा फिक्स है. अन्दर वाले मतलब आरटीओ वालों का.
अन्दर वालों का हिस्सा कितना है, इस सवाल पर जवाब ये आया,
सिर्फ लाइसेंस की बात नहीं है. तमाम तरीके के काम आते हैं. बहुत लंबी लिस्ट है. जैसे- इंटरनेशनल ड्राइविंग परमिट करवाना, एड्रेस चेंज करना, ड्राइविंग लाइसेंस रिन्यूअल, रिपीट टेस्ट वगैरह-वगैरह. सबके रेट तय हैं. उदाहरण के लिए लर्नर लाइसेंस की एप्लीकेशन फ़ीस और टेस्ट फ़ीस मिलाकर क़रीब 350 रुपए सरकारी फीस है. इसके बाद अन्दर 500 रुपए जाते हैं. टेस्ट नहीं देना है तो ये हिस्सा ज्यादा भी हो सकता है. इसके बाद इस सेटलमेंट के लिए हम चार्ज करते हैं.'
इस मिडिलमैन ने ये भी कहा कि अगर आपको ये सब होते देखना है तो किसी भी RTO दफ्तर चले जाइए, और किसी भी आवेदक से पूछ लीजिए, सभी बता देंगे कि कितने रुपए एक्स्ट्रा दे रहे हैं.
वैसे सरकारी फ़ीस कितनी है आप भी इस लिंक पर क्लिक करके जान सकते हैं.
मिडिलमैन ने कहा कि किसी भी RTO ऑफिस के बाहर टहल लीजिए, आपको इनकी दुकानें मिल जाएंगी. यहां भी सरकार की एक कमी है. जैसे LIC की पॉलिसी आप ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं, और LIC एजेंट से भी, वैसी व्यवस्था ट्रांसपोर्ट विभाग में नहीं है. माने वैध अभिकर्ता नहीं हैं, जिनके माध्यम से आप लाइसेंस की प्रक्रिया करवा सकें.
हम आपसे ये कतई नहीं कह रहे कि आप जुगाड़ या बैक डोर से काम करवाएं, हमारा उद्देश्य केवल आपको सिस्टम के अंदर की सच्चाई से रूबरू कराना है. समाधान के तौर पर हम आपको यही सलाह देंगे कि 'जागो ग्राहक जागो', या 'जागो और ग्राहक न बनो'.
यानी थोड़ा सा टेक्नोलॉजिकली स्मार्ट बनो. नहीं भी हैं तो किसी ऐसे मित्र या जानकार की मदद लीजिए जो सरकारी वेबसाइट पर काम करने में उस्ताद हो. आप किसी जनसेवा केंद्र पर जाकर ऑनलाइन आवेदन भी कर सकते हैं. ये भी नहीं करना चाहते तो RTO के दफ्तर जाइए, और बिना हिचक के सीधे कमर्चारियों से मिलकर अपना काम कराने की कोशिश करिए.
