गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा...
मैं शमा हूं तू है परवाना...
मुझसे पहले तू जल जाएगा...
1974 में फिल्म आई थी 'रोटी'. इसमें हीरो थे राजेश खन्ना और हीरोइन थीं मुमताज़. ऊपर की पंक्तियां इसी फिल्म के एक गाने की हैं. शमा और परवाने का रिश्ता इसी तरह बॉलीवुड के कई गानों में सुनाई देता है.

फिल्म 'रोटी' के गाने 'गोरे रंग पे न इतना गुमान कर' का एक सीन, मुमताज़ अब लंदन में रहती हैं.
इसमें लेटेस्ट है रईस का 'ओ ज़ालिमा' गाना
तू शमा है तो याद रखना
मैं भी हूं परवाना
ओ ज़ालिमा ओ ज़ालिमा
जो तेरी खातिर तड़पे पहले से ही
क्या उसे तड़पाना ओ ज़ालिमा, ओ ज़ालिमा...

फिल्म रईस के गाने ज़ालिमा का एक सीन, फिल्म में शाहरुख के अपोजिट पाकिस्तानी एक्ट्रेस माहिरा खान थीं.
लेकिन ये परवाने शमा पर क्यों मरते हैं? यानी कि कीड़े लाइट या मोमबत्ती की रोशनी की तरफ़ क्यों आकर्षित होते हैं? क्यों भिनभिनाते रहते हैं लाइट के चारों ओर? जबकि इसके चलते ज्यादातर मर भी जाते हैं. गुजरात के भुज में मेरा बचपन बीता. तब अपने घर में इन कीड़ों को देखकर मैं सोचती थी कि लाइट ही इन्हें पैदा करती है. ये पैदा भी इसी से होते हैं और मर भी इसी में जाते हैं. बड़ी हुई, साइंस पढ़ी तो समझ आया कि लाइट किसी को पैदा नहीं करती. तो मेरी थ्योरी तो बहुत जल्द फेल हो गई. मगर साइंटिस्ट ने इस पर कई थ्योरीज दी हैं. उन्हें जानते हैं आज. वैसे पक्का पक्का वो भी नहीं बता पाए हैं अभी तक. पर जितना उन्होंने बताया, उतना जानने में कोई हर्ज नहीं.

किसी भी कीड़े या जानवर के रोशनी के सोर्स से दूर जाने या पास आने की हरकत को फ़ोटोटेक्सिस (phototaxis) कहते हैं. पहली कैटिगरी में आते हैं कॉक्रोच जो रोशनी से दूर अंधेरे की तरफ भागते हैं. दूसरी कैटिगरी में आते हैं पतंगे जो बल्ब के चारों तरफ इस बरसाती सीजन में खूब नजर आते हैं.

यहां पर एक रोचक और उपयोगी जानकारी वाला कैप्शन लिखें
पहली थ्योरी
ये थ्योरी सबसे ज़्यादा पॉपुलर है. पहले जब आर्टिफ़िशल लाइटें नहीं थीं, तब कीड़े चांद का पीछा किया करते थे. ऐसा वो दिशा निर्देशन के लिए करते थे. एक आइडिया ये है कि कीड़ों को ऊपर चांद नज़र आता है. वो अपने और चांद के बीच एक एंगल बनाए रखने की कोशिश करते हैं. दूसरा चांद काफ़ी दूर है तो उनके बीच का एंगल लगभग एक समान ही रहता है. जैसे हम 100 मंज़िला इमारत देख रहे हैं. हम जहां खड़े हैं वहां से पहली और दूसरी इमारत के बीच तो बड़ा अंतर नज़र आएगा, लेकिन 99वी और 100वी इमारत के बीच ज़्यादा अंतर नहीं लगेगा.

चांद दूर है, तो ये ϴ लगभग बराबर रहता है.
अब सोचकर देखो कि चांद धरती पर आ गया है. बस सोचना है ताकि इस चांद और आर्टिफ़िशल लाइट में समानता समझा सकें. ऐसे में कीड़े और चांद के बीच का अंतर जल्दी-जल्दी बदलने लगेगा. इस थ्योरी के मुताबिक चूंकि कीड़े अपने और चांद के बीच समान एंगल बनाए रखना चाहते हैं. वो टेनजेनशियली( tangentially) मूव करते हैं. इस फ़ोटो में Vt वो लाइन है जो सर्कल को बस एक जगह छू रही है, इसे बढ़ा भी दिया जाए तो भी ये सर्कल पर बस एक जगह ही टच हो रही होगी. इस लाइन को टेनजेंट लाइन कहते हैं और ऐसे मूवमेंट को टेनजेनशियली मूवमेंट.

Vt के अलावा बाकी के एरो टेनजेनशियल मूमेंट दर्शा रहे हैं.
कीड़ों के टेनजेनशियली मूवमेंट से चकली जैसा पैटर्न फॉर्म हो जाता है. चकली जिसे अंग्रेज़ी भाषा में समझाऊं तो वो स्पाइरल शेप की होती है. नीचे दिए गए GIF से पैटर्न को समझें.


साइंटिस्ट लोगों ने फ़ोटोज़ ली हैं कि कीड़े किस तरह से आर्टिफ़िशल लाइट की तरफ़ मूव करते हैं.

ये तस्वीर Nat Geo के लिए Steve Irwin ने खींची थी.
अब हमें इस फ़ोटो में चकली वाले मूमेंट के साथ-साथ कीड़े लाइट की तरफ़ सीधे आते हुए भी दिख रहे हैं. इससे पहली थ्योरी तो गलत साबित होती है.
दूसरी थ्योरी
सोचिए आप घने जंगल में खो गए हैं. आपको दूर कहीं छोटा सा रोशनी का गोला नज़र आ रहा है. आप उसी तरफ़ चलने लगेंगे. इस थ्योरी के मुताबिक ये कीड़े भी इसी वजह से रोशनी का पीछा करते हैं. जब लाइट चली जाती है, तो थोड़ी देर तक हमें कुछ नहीं दिखता. फिर धीरे-धीरे हमें थोड़ा बहुत दिखाई देना शुरू होता है. ये प्रोसेस कीड़ों में और धीरे होता है. यानी वो लाइट से दूर हो जाएं तो लगभग आधे घंटे तक उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता. इस अंधेपन से बचने के लिए वो लाइट के चारों ओर ही भिनभिनाते रहते हैं. चूंकि कुछ न दिखाई दे तो वो आसानी से शिकार बन जाएंगे.

रात में सफ़ेद कपड़े पहनकर निकलो तो कई बार उसमें कीड़े चिपक जाते हैं. UV लाइट और कम वेवलैंथ के रंग इन कीड़ों को ज़्यादा आकर्षित करते हैं. ये कहना काफ़ी मुश्किल है कि कीड़े लाइट की तरफ़ इतने आकर्षित क्यों होते हैं. कुछ अटकलें जो लगाई जाती हैं वो हमने आप को बता दीं.
अब ज्ञान की समाप्ती हो गई.
शमा-परवाने पर गुलज़ार की शायरी पढ़ लीजिए..
शाम से शमा जली देख रही है रास्ता
कोई परवाना इधर आया नहीं देर हुई
सौत होगी मेरी जो पास में जलती होगी

गुलज़ार
1993 में आई अजय देवगन की फ़िल्म 'प्लेटफॉर्म' का शमा और परवाने को लेकर गाना..
मैं शमा तू परवाना
पास आ जाने जाना
तेरे लिए जलती-बुझती हूं
तू मेरा आशिक दीवाना
1954 में 'शमा परवाना' नाम की एक फ़िल्म भी आई थी. इसमें शम्मी कपूर लीड हीरो थे.
ये स्टोरी रुचिका ने की है.