लिंचिंग क्या है और इसकी शुरुआत कहां से हुई? अमेरिका में लिंचिंग और नस्लभेद का क्या कनेक्शन है? और, नए कानून से क्या कुछ बदलने वाला है? साथ में बताएंगे, एक लीक्ड रिपोर्ट की कहानी. मामला चीन और उसके मिलिटरी बेस से जुड़ा है. इस रिपोर्ट ने कैसे ऑस्ट्रेलिया की नींद उड़ा दी है? और, अंत में बात होगी पाकिस्तान की. जहां प्रधानमंत्री इमरान ख़ान घबराहट में जी रहे हैं. उनके साथ डेजा वू हो रहा है. किसी की नहीं सुनने वाले इमरान ख़ान की कोई नहीं सुन रहा है. उनकी नाव मझधार में फंसी है. PTI गठबंधन के एक बड़े सहयोगी दल ने साथ छोड़ दिया है. समझेंगे, ये इमरान ख़ान के लिए कितना बड़ा झटका है? साल 1955. अमेरिका का मिसिसिपी शहर. एक डिपार्टमेंटल स्टोर के बाहर कुछ दोस्तों में हंसी-मज़ाक चल रहा था. उस लफ़्फ़ेबाज़ी के केंद्र में एमेट टिल नाम का एक लड़का था. उसकी उम्र 14 साल थी. वो शिकागो से मिसिसिपी आया था. अपने रिश्तेदारों से मिलने. टिल अश्वेत था. उसने रौब झाड़ने के लिए ये कह दिया कि शिकागो में उसकी गर्लफ़्रेंड है. और, वो वाइट है. ये उस दौर की बात है, जब अमेरिका में नस्लभेद और उसके ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलनों का ग्राफ़ चरम पर था. टिल की बात उसके दोस्तों को हज़म नहीं हुई. स्टोर के काउंटर पर एक वाइट महिला बैठी थी. टिल के दोस्तों ने उसके सामने एक चैलेंज रख दिया. बोले, अगर हिम्मत है तो उस महिला को प्रोपोज़ करके दिखाओ. टिल की मां अश्वेत होने का दर्द समझती थी. उन्होंने अपने बेटे को सावधानी बरतने की सलाह दे रखी थी. लेकिन टिल का लड़कपन उसे ऐसा करने से रोकता था. वो चंचल था. उसने चैलेंज स्वीकार कर लिया. टिल स्टोर के अंदर गया. चॉकलेट्स खरीदे. निकलते-निकलते उसने महिला को कहा, बाय, बेबी. उस समय स्टोर के भीतर कोई नहीं था. मतलब, इस वाकये का कोई गवाह नहीं था. काउंटर के पीछे बैठी महिला कैरोलिन ब्रायंट ने इस घटना को दूसरा मोड़ दे दिया. चार दिनों के बाद कैरोलिन का पति रॉय ब्रायंट बिजनेस ट्रिप से लौटा. उसके सामने कैरोलिन ने दूसरी कहानी सुना दी. उसने कहा कि एक अश्वेत लड़के ने उसे ज़बरदस्ती पकड़ने और ग़लत फ़ायदा उठाने की कोशिश की. रॉय ये सुनकर गुस्से से पागल हो गया. वो अपने साले के साथ टिल के घर गया. दोनों ने मिलकर टिल को किडनैप किया. उसे रातभर कार में घुमाते रहे. बुरी तरह पीटा. आंखें निकाल लीं. फिर उसके शरीर में भारी-भरकम गट्ठर बांधकर नदी में फेंक दिया. तीन दिनों के बाद टिल की लाश मिली. उसका चेहरा बुरी तरह बिगड़ा हुआ था. रिश्तेदारों ने बड़ी मुश्किल से लाश की पहचान की. पुलिसवाले जल्दबाजी में उसकी लाश को दफ़नाना चाहते थे. लेकिन टिल की मां अड़ गई. उसने टिल की लाश को शिकागो भेजने की मांग की. ऐसा हुआ भी. टिल की अंतिम यात्रा के दौरान ताबूत को खुला छोड़ा गया था. ये दिखाने के लिए कि नस्लभेद कितना विकृत है. 23 सितंबर 1955 को दोनों आरोपियों को ज्यूरी के सामने पेश किया गया. ज्यूरी में सारे वाइट लोग थे. एक घंटे से भी कम समय तक चली बहस के बाद दोनों आरोपियों को बरी कर दिया. 2017 में टिम टायसन ने एक किताब लिखी. द ब्लड ऑफ़ एमेट टिल. टायसन ने अपनी किताब में दावा किया कि कैरोलिन ब्रायंट ने बाद में अपना बयान बदल लिया था. उसने कहा था कि टिल ने उसे ना तो छुआ और ना ही पकड़ने की कोशिश की थी. हालांकि, कैरोलिन इस बयान से मुकर गई. टायसन ने कैरोलिन का बयान रिकॉर्ड नहीं किया था. यूएस जस्टिस डिपार्टमेंट ने किताब की रिलीज़ के बाद दोबारा जांच शुरू की. लेकिन सबूतों के अभाव में जांच रोक दी गई. एमेट टिल का परिवार आज भी न्याय की राह देख रहा है. आज ये कहानी सुनाने की वजह क्या है? दरअसल, अमेरिका ने लिंचिंग को हेट क्राइम की श्रेणी में डाल दिया है. 29 मार्च को राष्ट्रपति जो बाइडन ने एमेट टिल एंटी-लिंचिंग ऐक्ट पर दस्तख़त कर दिए. ऐक्ट का नामकरण उसी लड़के के नाम पर किया गया, जिसकी लिंचिंग के ज़ख़्म आज तक नहीं भरे हैं. बाइडन के दस्तख़त के बाद ये ऐक्ट कानून बन गया. अब लिंचिंग के आरोप में दोषी पाए जाने पर 30 साल तक की जेल हो सकती है. इससे पहले लगभग दो सौ बार लिंचिंग को कानूनी तौर पर बैन करने की कोशिश हो चुकी है. लेकिन कोशिश के सफ़ल होने में सौ बरस से भी अधिक का समय लग गया. इस मौके पर सांसद बॉबी रश ने ट्वीट किया,
‘अमेरिका के इतिहास में पहली बार लिंचिंग को फ़ेडरल हेट क्राइम घोषित किया जा रहा है. और, हम ये एमेट टिल के नाम पर कर रहे हैं. ये एक ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने की कोशिश है.’
अमेरिका में लिंचिंग का इतिहास क्या रहा है?
इसके लिए हमें लिंचिंग की परिभाषा समझनी होगी. लिंचिंग एक तरह की हिंसा है. इसे गैर-न्यायिक हत्या भी कहते हैं. इसके तहत, आरोपी की बिना किसी सुनवाई के हत्या कर दी जाती है. कानूनी परिभाषा के मुताबिक, जब तीन या तीन से अधिक व्यक्ति मिलकर कथित न्याय, और ये न्याय भीड़ का होता है, देने के लिए किसी की हत्या कर दें, तो उसे लिंचिंग कहा जा सकता है. अमेरिका में 1770 के दशक में रेवॉल्युशनरी वॉर शुरू हुआ. इस दौरान चार्ल्स लिंच नाम के एक ज़मींदार ने एक अदालत की स्थापना की थी. इसमें विरोधियों को सज़ा दी जाती थी. इस अदालत को कानूनी मान्यता नहीं थी. और, ना ही इनमें तय विधि का पालन होता था. चार्ल्स लिंच के नाम पर कानून को लिंच लॉ कहा गया. और, पूरी प्रक्रिया को लिंचिंग. कालांतर में लिंचिंग का इस्तेमाल अश्वेत समुदाय को आतंकित करने और उन्हें काबू में रखने के लिए किया जाने लगा. अमेरिका में लिंचिंग का एक तय पैटर्न दिखता है. जिस भी अश्वेत व्यक्ति से दिक्कत होती, सबसे पहले उसके ऊपर आरोप लगाया जाता. अधिकतर मामलों में आरोप बाद में झूठे साबित हुए. फिर पुलिस उस व्यक्ति को पकड़ने पहुंचती. उसी समय भीड़ भी इकट्ठा हो जाती. भीड़ आरोपी को पुलिस के चंगुल से खींच लेती थी. फिर उसे भर दम पीटा जाता. आरोपी को हर तरह से टॉर्चर करने के बाद उसे पेड़ से लटका दिया जाता था. कई बार तो आरोपी को आग से जला दिया जाता था. लिंचिंग में शामिल लोग मांस और हड्डियों को निशानी के तौर पर ले जाते थे. कई मामलों में पुलिस और कानूनी एजेंसियां भी लिंचिंग में सहयोग करतीं थीं. अगर आरोपी को गिरफ़्तार कर जेल में बंद कर दिया जाता, फिर भी उसके कानूनी अधिकारों की कोई गारंटी नहीं होती थी. पुलिस अक्सर आरोपी के सेल के दरवाज़े को खुला छोड़ दिया करती थी. इसके बाद बाकी क़ैदी आरोपी को पीट-पीटकर मार देते थे.
पीड़ितों पर किस तरह के आरोप लगाए जाते थे?
लिंचिंग के मामले में दो तरह के आरोपों का इस्तेमाल सबसे अधिक होता था. पहला, यौन शोषण. और दूसरा, हत्या. इक़्वल इनीशिएटिव जस्टिस (EJI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, लिंचिंग के 30 प्रतिशत मामलों में हत्या का आरोप लगाया गया. जबकि, 25 प्रतिशत मामलों में आरोपी पर यौन दुर्व्यवहार का इलज़ाम लगाया गया. जानकारों की मानें तो लिंचिंग के जरिए वाइट कम्युनिटी एक साथ कई संदेश दिया करती थी. इतिहासकार बॉब स्मीड ने अपनी किताब ब्लड जस्टिस: द लिंचिंग ऑफ़ मैक चार्ल्स पार्कर में लिखा है,
भीड़ ने लिंचिंग को एक सांकेतिक प्रथा में बदल दिया था. इसमें अश्वेत पीड़ित को पूरे समुदाय का प्रतिनिधि
बना दिया जाता था. इसके ज़रिए उन्हें अनुशासित रखने की कोशिश की जाती थी. अश्वेत आबादी को चेतावनी दी जाती थी कि वे वाइट सुप्रीमेसी को चुनौती देने की कोशिश ना करें.’ अमेरिका में 1881 से 1968 के बीच लिंचिंग के लगभग पांच हज़ार मामले दर्ज़ हुए. इन मामलों में तीन-चौथाई से अधिक पीड़ित अश्वेत थे.
लिंचिंग करने वालों के साथ क्या होता था?
अधिकतर मामलों में आरोपी वाइट होते थे. उनकी संख्या सैकड़ों में होती थी. एक तो उनकी पहचान मुश्किल होती थी. और, अगर पहचान हो भी जाती थी तो उनके ऊपर कोई छोटा-मोटा चार्ज़ लगाया जाता था. EJI की रिपोर्ट के अनुसार, एक प्रतिशत से भी कम मामले में दोषियों को सज़ा मिली. अमेरिका में लिंचिंग के ख़िलाफ़ कानून बनाने की मुहिम 1900 के दशक में शुरू हो चुकी थी. अभी तक लगभग दो सौ बार इसके ख़िलाफ़ बिल पेश करने की कोशिश हुई. लेकिन हर बार नाकाम रही. अब जाकर ये कोशिश सफ़ल हुई है. अमेरिका ने तो अपने यहां लिंचिंग के ख़िलाफ़ कानून बना दिया है. दुनिया के कई देशों में भीड़ द्वारा न्याय का चलन बढ़ा है. इसमें अफ़्रीका और एशिया के अल्प-विकसित से विकासशील देश तक शामिल हैं. उम्मीद की जा सकती है कि इन देशों में भी लिंचिंग जैसे घृणित अपराध के ख़िलाफ़ सख़्त कदम उठाए जाएंगे. लिंचिंग के चैप्टर को यहीं पर विराम देते हैं. अब चलते हैं सोलोमन आईलैंड्स की तरफ़. सोलोमन आईलैंड्स प्रशांत महासागर में बसा एक द्वीपीय देश है. ये ऑस्ट्रेलिया और न्यू ज़ीलैंड के पास पड़ता है. सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान इस द्वीप की अहमियत काफ़ी बढ़ गई थी. (हम दुनियादारी में सोलोमन आईलैंड्स के बारे में विस्तार से बता चुके हैं. आपको उस ऐपिसोड का लिंक डिस्क्रिप्शन में मिलेगा.) अभी हम हालिया घटना का ज़िक्र कर लेते हैं. पिछले हफ़्ते सोलोमन आईलैंड्स सरकार का सीक्रेट दस्तावेज़ लीक हुआ था. इससे पता चला था कि चीन सोलोमन आईलैंड्स में अपना मिलिटरी बेस बनाने की तैयारी कर रहा है. अभी डील का पूरा मजमून स्पष्ट नहीं हो सका है. हालांकि, इसने ऑस्ट्रेलिया की चिंताएं बढ़ा दीं है. पिछले कुछ सालों से ऑस्ट्रेलिया और चीन के रिश्ते खराब हुए हैं. ऑस्ट्रेलिया ने यूके और अमेरिका के साथ ऑकस डील की है. इसके तहत, ऑस्ट्रेलिया को परमाणु ऊर्जा से संचालित होने वाली पनडुब्बियां मिलने वालीं है. इस डील के लिए उसने फ़्रांस से बना-बनाया सौदा रद्द कर दिया था. जानकारों का मानना था कि ऑस्ट्रेलिया प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़त रोकने के लिए ऐसा कर रहा है. अगर सोलोमन आईलैंड्स में चीन के मिलिटरी बेस पर बात आगे बढ़ी तो ऑस्ट्रेलिया की बढ़त गौण हो जाएगी. सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद से ऑस्ट्रेलिया सोलोमन आईलैंड्स का सबसे बड़ा मददगार रहा है. उसने इस द्वीपीय देश के विकास में बड़ी भूमिका निभाई. और, अभी तक वो सोलोमन आईलैंड्स का सबसे बड़ा डिफ़ेंस पार्टनर भी था. चीन ने इसमें सेंध लगा दी है. उसने सोलोमन आईलैंड्स की सरकार का मन बदल दिया है. ये डील इस इलाके की जियो-पॉलिटिक्स में क्या गुल खिलाती है, देखना दिलचस्प होगा. अब पड़ोस की पॉलिटिक्स का हाल समझ लेते हैं. जान लेते हैं, पाकिस्तान के राजनैतिक संकट में क्या नया हुआ? बता दें कि पाकिस्तान में विपक्ष ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है. 28 मार्च को प्रस्ताव पटल पर रखा गया. 03 अप्रैल तक इस पर वोटिंग होने की उम्मीद है. अगर विपक्ष ने 172 सांसदों का समर्थन जुटा लिया तो इमरान ख़ान को कुर्सी छोड़नी होगी.
ये तो हुई मूल बात. अपडेट क्या हैं?
- 30 मार्च को मुत्ताहिदा क़ौमी मूवमेंट-पाकिस्तान (MQM-P) ने इमरान ख़ान को बड़ा झटका दिया. ये पार्टी इमरान सरकार में सहयोगी है. उसके पास नेशनल असेंबली में सात सीटें हैं. MQM-P के झटके का मंच इस्लामाबाद के पार्लियामेंट लॉज में सजा था. 29 मार्च की देर रात पार्लियामेंट लॉज में वीवीआईपी गाड़ियों का जमावड़ा लगना शुरू हुआ. विपक्ष के लगभग सभी बड़े नेता जमा हुए थे. वहां उन्होंने MQM-P के संयोजक डॉ. खालिद मक़बूल सिद्दीकी और दूसरे नेताओं से मुलाक़ात की. ये मुलाक़ात 30 मार्च की सुबह तक चली. बिलावल भुट्टो और विपक्ष के कई नेताओं ने कहा है कि MQM-P के साथ समझौता हो चुका है. विपक्ष का मन था कि समझौते का ऐलान तुरंत हो जाए. लेकिन MQM-P ने कहा, सब्र रखो. इतनी जल्दी भी क्या है. फिर ऐलान हुआ कि एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलाई जाएगी. शाम चार बजे. तय समय पर प्रेस कॉन्फ़्रेंस शुरू हुई. इसमें MQM-P ने इमरान सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया है. पार्टी ने कहा कि ये फ़ैसला देश के हित में लिया गया है. MQM-P के निकलते ही इमरान सरकार ने बहुमत गंवा दिया है. अगर यही स्थिति वोटिंग के दिन तक बनी रही तो क़यामत तय है.
- इन सबके बीच प्रधानमंत्री इमरान ख़ान क्या कर रहे हैं?
वो अभी तक एक-एक को देख लेने की धमकियां दे रहे थे. अब ‘विदेशी साज़िश’ की बात सुनाते फिर रहे हैं. 27 मार्च को PTI की रैली में इमरान ख़ान ने एक चिट्ठी दिखाने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि ये चिट्ठी विदेशी साज़िश का सबूत है. विपक्ष ने कहा, काग़ज़ है तो दिखा दीजिए. इमरान के मंत्रियों ने पहले कहा कि हम सिर्फ़ चीफ़ जस्टिस को दिखाएंगे. 30 मार्च को इमरान ख़ान के सुर बदल गए. उन्होंने कहा कि मैं वरिष्ठ पत्रकारों के साथ चिट्ठी साझा करूंगा. 30 मार्च को इमरान ख़ान राष्ट्र के नाम संबोधन देने वाले थे. देर शाम उन्होंने अपना फ़ैसला बदल दिया. कहा जा रहा है कि MQM-P के अलगाव के बाद उन्हें नए सिरे से अपना भाषण तैयार करना होगा.