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कौन हैं सज्जाद लोन, जिन्होंने कश्मीर में मोदी के खिलाफ मोर्चे को बाय-बाय बोल दिया है?

अलगाववादी से मंत्री बनने की कहानी भी कम रोचक नहीं.

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जम्मू एंड कश्मीर पीपल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद अहमद लोन. (तस्वीर: इंडिया टुडे)
जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) की एक पार्टी है जम्मू एंड कश्मीर पीपल्स कांफ्रेंस (JKPC). यह पार्टी साल 2014 चुनावों में दो विधानसभा सीटों पर चुनाव जीती थी. इस पार्टी के प्रमुख हैं- सज्जाद गनी लोन (Sajjad Gani Lone). 19 जनवरी को सज्जाद लोन ने बताया कि उनकी पार्टी जेकेपीसी अब गुपकार गठबंधन का हिस्सा नहीं रहेगी. आइए जानते हैं, सज्जाद गनी लोन कौन हैं? उनकी पार्टी का गुपकार गठबंधन के साथ क्यों गई थी, और अब अलग क्यों हो गई?
सज्जाद के पिता की आतंकियों ने की हत्या
सज्जाद लोन पहली बार सुर्खियों में 2002 में आए. लेकिन इन्हें जानने से पहले इनके पिता की कहानी जानना जरूरी है. अब्दुल गनी लोन. इनकी कहानी पर एक क्लासिक पॉलिटिकल थ्रिलर बन सकती है. एक गरीब घर का लड़का वकील बनना चाहता है, बनता भी है. लेकिन फिर राजनीति में आ जाता है. साल 1967 में वह कांग्रेस से जुड़ते हैं, लेकिन साल 1978 के आते-आते उन्होंने अपनी पार्टी जेकेपीसी बना ली और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की सत्ता को चुनौती देने की कोशिश की. उनकी मांग भारत में कश्मीर को और अधिक  दिलाने की थी.
अब्दुल 1983 का चुनाव 10 वोट और 1987 का चुनाव 430 वोट से हार जाते हैं. 1987 चुनावों के बाद अब्दुल अलगाववाद के रास्ते पर चल पड़ते हैं. इनके साथ मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के भी कई लोग साथ आते हैं. अब्दुल हुर्रियत से जुड़ जाते हैं और जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के काफ़ी नज़दीक चले जाते हैं. 2002 में आतंकी इनकी हत्या कर देते हैं. अब्दुल की मौत पर उस वक्त के पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था-
अब्दुल लोन की हत्या इसलिए की गई है क्योंकि वह जम्मू और कश्मीर में शांति के लिए काम कर रहे थे.
Abdul Gani Lone
सज्जाद लोन के पिता अब्दुल गनी लोन. (तस्वीर: एएफपी)


इसके बाद आते हैं सज्जाद अली लोन
पिता के मारे जाने के बाद सज्जाद उनके पिता के सहयोगी अलगाववादी खेमे के लोगों और पाकिस्तान को जमकर सुनाते हैं. अपनी नाराज़गी जताते हैं और घाटी से एक नई आवाज़ बनकर उभरते हैं. सज्जाद आज़ादी की बात करते हैं लेकिन पाकिस्तान के बिना और हिंदुस्तान के साथ. माने हिंदुस्तान में रहते हुए और कश्मीर की और स्वायतता की मांग. इस दौरान वह अलगाववादी गुटों पर लगातार सवाल उठाते हैं. लेकिन इस सबके बाद भी वह हुर्रियत के साथ बने रहते हैं. साल 2002 के विधानसभा चुनावों में सज्जाद पर आरोप लगे कि उन्होंने अलगाववादी कैंडिडेट्स के खिलाफ़ प्रॉक्सी कैंडिडेट्स उतार दिए. इसके बाद मामला बिगड़ता चला गया और सज्जाद ने धीरे धीरे खुद को हुर्रियत से अलग करना शुरू कर दिया.
लेकिन कश्मीर को लेकर सज्जाद हमेशा से मुखर रहे हैं. कश्मीर मसले को लेकर उन्होंने 2006 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह से मुलाक़ात की. 2007 में वह कश्मीर के विज़न डॉक्यूमेंट के साथ आए. लेकिन नई दिल्ली ने उनसे दूरी बनानी शुरू कर दिया था. लेकिन क्यों? क्योंकि 2008 आते-आते सज्जाद टीवी पर अलगाववादी आंदोलन के प्रतिनिधि जैसे बन गए. उनकी राजनीति पर कट्टरपंथ हावी होने लगा. कश्मीर की मुस्लिम पहचान के बारे में वह खुलकर बात करने लगे. इस सबको देखते हुए नई दिल्ली ने सज्जाद से दूरी बना ली.
2008 अमरनाथ जमीन मामले को लेकर हिंसा में दर्जनों लोगों की हत्या के बाद सज्जाद से खुद को अलगाववादी विचारधाराओं से अलग करना शुरू किया और सज्जाद और उनकी पार्टी जेकेपीसी 2014 में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मैदान में आई. 2014 के चुनावों के दौरान सज्जाद ने कहा था कि उन्हें इस बात का अफ़सोस है कि उनकी  पार्टी ने 2008 विधानसभा और 2009 लोकसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लिया. हालांकि 2009 लोकसभा चुनाव सज्जाद बारामूला सीट से निर्दलीय चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए थे.
2014  वो साल था जब सज्जाद और जेकेपीसी की भारतीय जनता पार्टी से पटने लगी. बीजेपी के नज़दीक आते ही जम्मू कश्मीर की अन्य पार्टियों ने जेकेपीसी को एंटी-कश्मीर और एंटी मुस्लिम बताना शुरू कर दिया. अलगाववादियों ने सज्जाद को 'गद्दार' करार दे दिया, लेकिन सज्जाद बीजेपी के सहयोगी बने रहे.
साल 2014 में जेकेपीसी ने दो सीटों पर जीत दर्ज की. सज्जाद लोन भी जीते, वो भी प्रदेश के तत्कालीन मंत्री चौधरी मोहम्मद रमज़ान को हराकर. और जब पीडीपी और बीजेपी ने मिलकर राज्य में सरकार बनाई थी तो जेकेपीसी भी उस सरकार में शामिल थी. बीजेपी कोटे से सज्जाद मंत्री भी बने. इस सबके बाद से ऐसा माने जाने लगा कि जेकेपीसी बीजेपी खेमे की पार्टी है, खासकर घाटी में. अभी हाल में हुए डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव में जेकेपीसी ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की है.
Sajjad Gali Lone
पीएम मोदी के साथ सज्जाद गनी लोन. (तस्वीर: पीटीआई)


सज्जाद लोन के साथ एक और कश्मीरी नेता हैं जिन्हें बीजेपी का करीबी का माना जाता है. ये नाम है जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी के प्रमुख अल्ताफ बुखारी. जनवरी 2020 में जब अल्ताफ़ ने पार्टी बनाई तो बीजेपी ने स्वागत किया था. अल्ताफ बुखारी प्रदेश के पूर्व मंत्री रहे हैं और जम्मू एंड कश्मीर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) से जुड़े रहे हैं.
Altaf Bukhari
अल्ताफ़ बुखारी.


JKPC ने गुपकर गठबंधन का साथ क्यों छोड़ा?
सज्जाद लोन ने गठबंधन के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला को लिखी एक चिठ्ठी में कहा-
हमारे लिए यह दिखावा करते हुए गठबंधन में रहने का कोई तुक नहीं है कि कुछ हुआ ही नहीं है. गठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच का भरोसा टूटा है. गठबंधन में शामिल हर भागीदार से त्याग की उम्मीद थी लेकिन कोई कुर्बानी देने को तैयार नहीं है. हमने डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव में कश्मीर में एक-दूसरे के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी है जो कि हमें 5 अगस्त के गुनाहगारों के खिलाफ़ लड़ना था.
उन्होंने आगे कहा-
ऐसे में हमारी पार्टी ने यह फैसला लिया है कि चीज़ों के और बदतर होने से पहले गठबंधन का साथ छोड़ देना चाहिए. और मैं इस बात कि पुष्टि कर रहा हूं कि हम अब गुपकर गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं.
अन्य दलों द्वारा डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट चुनावों में प्रॉक्सी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने को सज्जाद ने गठबंधन छोड़ने के पीछे का सबसे प्रमुख कारण बताया है.
गुपकर गठबंधन में क्यों शामिल हुए थे सज्जाद?
सज्जाद ने 5 अगस्त 2019 के दिन को अपने जीवन का सबसे काला दिन बताया था. गुपकर गठबंधन में शामिल होते हुए सज्जाद ने क्या कहा-
जम्मू कश्मीर के स्पेशल स्टेट्स को छीनना जम्मू कश्मीर के लोगों के साथ धोखा करने जैसा था. किसी को भी कश्मीरियों की गरिमा से खिलवाड़ करने का अधिकार नहीं है. लोगों में बहुत गुस्सा है. लोग कतई खुश नहीं हैं. हमारा (गुपकर गठबंधन) एक ही मकसद है. वो ये है कि जो हक़ हमसे छीना गया है, उसे वापस पाना है. हम आज़ादी की मांग नहीं कर रहे हैं. हम संविधान के दायरे में रहते हुए अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं.
5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर के विशेष प्रावधान वाले आर्टिकल 370 को निष्क्रिय किए जाने के बाद सज्जाद को कस्टडी में रखा गया था. उन्हें 31 जुलाई को 2020 को रिहा किया गया था.
जाते-जाते गुपकर गठबंधन के बारे में भी जान लीजिए
5 अगस्त 2019 को भारतीय संविधान की धारा 370 को निष्प्रभावी कर दिया गया था. इसी धारा के तहत जम्मू कश्मीर को देश में खास दर्जा प्राप्त था. देश में शामिल होते हुए भी उसका अलग संविधान और अलग झंडा था. आईपीसी वहां लागू नहीं होता था. लेकिन मोदी सरकार ने इस धारा को खत्म करके जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया है. जम्मू कश्मीर के कई क्षेत्रीय दल इसके विरोध में हैं. इन्होंने 5 अगस्त 2019 से पहले की स्थिति बहाल करने की मांग करते हुए एक गठबंधन बनाया है. उसका नाम है पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन. इस गठबंधन में कई दल शामिल हैं, जैसे- पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस पार्टी आदि.
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में परिसीमन का काम ज़ारी है और परिसीमन के बाद प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होंगे. हाल ही में प्रदेश में डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव हुए हैं. ऐसे में इसी साल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव कराए जा सकते हैं.

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