The Lallantop

कभी ऑटोरिक्शा चालक रहे एकनाथ शिंदे इतने ताकतवर कैसे बने कि आज महाराष्ट्र सरकार को हिला दिया?

साल 2019 में भी एकनाथ शिंदे बीजेपी के साथ सरकार बनाने के पक्षधर थे. बताया जाता है कि शिंदे को एनसीपी और कांग्रेस का साथ शुरू से पसंद नहीं है.

Advertisement
post-main-image
महाराष्ट्र के मंत्री एकनाथ शिंदे (फोटो- फेसबुक/Eknath Shinde)

एकनाथ संभाजी शिंदे. महाराष्ट्र सरकार में शहरी विकास मंत्री हैं. शिवसेना के 25 विधायकों को लेकर रातोरात गुजरात निकल गए. विधायकों के साथ सूरत के एक होटल में मौजूद हैं. इस 'बगावत' के पीछे की असली कहानी अभी सामने नहीं आई है. लेकिन शिंदे के इस कदम ने महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट पैदा कर दिया है. सत्ताधारी और विपक्षी विधायकों की दौड़ लगने लगी है. सीएम उद्धव ठाकरे ने शिवसेना विधायकों की बैठक बुलाई. इसके बाद पार्टी ने एकनाथ शिंदे को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया.  

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement

शिवसेना की कार्रवाई के बाद एकनाथ शिंदे ने मराठी भाषा में एक ट्वीट किया. उन्होंने लिखा, 

“हम बालासाहेब (बाल ठाकरे) के पक्के शिवसैनिक हैं. बालासाहेब ने हमें हिंदुत्व सिखाया है. बालासाहेब के विचारों और धर्मवीर आनंद दिघे साहब की शिक्षा ली है. सत्ता के लिए हमने ना कभी धोखा दिया है और न कभी देंगे.”

Advertisement
कौन हैं एकनाथ शिंदे?

एकनाथ शिंदे करीब चार दशकों से शिवसेना के साथ हैं. वो शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के प्रभाव के कारण कम उम्र में ही पार्टी से जुड़ गए. एकनाथ शिंदे मूलरूप से महाराष्ट्र के सतारा के रहने वाले हैं. 1970 के दशक में उनका परिवार ठाणे शिफ्ट हो गया. शुरुआती दिनों में उन्होंने ऑटोरिक्शा भी चलाया. 

शिवसेना की आक्रामक हिंदुत्व की राजनीति से शिंदे काफी प्रभावित हुए. पार्टी से जुड़ने के बाद उन्होंने 1980 और 90 के दशक में कई आंदोलनों में हिस्सा लिया. इंडिया टुडे से जुड़े साहिल जोशी के मुताबिक शिंदे पहले ठाणे में शाखा प्रमुख के रूप में काम करते थे. शिवसेना में ये सबसे छोटा पद होता है. 1997 में उन्होंने ठाणे नगर निगम का चुनाव लड़ा और पहली बार में ही जीत हासिल कर पार्षद बने. एकनाथ शिंदे शिवसेना के कद्दावर नेता आनंद दिघे के काफी करीबी माने जाते थे. दिघे ठाणे के पार्टी अध्यक्ष थे.

उद्धव ठाकरे के सेनापति!

साल 2001 में आनंद दिघे की मौत हो गई. शिवसेना को ठाणे में दिघे की तरह एक मजबूत नेता की जरूरत थी. एकनाथ शिंदे दिघे के बाद खाली हुई जगह को भरने में कामयाब रहे. उन्होंने शिवसेना के आक्रामक कार्यकर्ताओं का भरोसा जीता. पार्टी ने भरोसा जताया और 2004 में विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका दिया. पहले चुनाव में ही जीत मिली. ठाणे के कोपारी-पछपाखड़ी से एकनाथ शिंदे अब तक लगातार चार बार विधायक चुने जा चुके हैं. विधायक बनने के बाद 2005 में उन्हें शिवसेना ने ठाणे जिला प्रमुख बना दिया.

Advertisement

साहिल जोशी के मुताबिक, साल 2005 में जब नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ी तो शिंदे का कद और बड़ा होता चला गया. 2006 में राज ठाकरे भी पार्टी से अलग हो गए थे. शिवसेना में उद्धव ठाकरे जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, उसी तरह एकनाथ शिंदे भी उनके सेनापति के रूप में मजबूत हो रहे थे. बाल ठाकरे की मौत के बाद पार्टी में सीनियर नेताओं को किनारे किया गया. शिंदे को उद्धव ठाकरे की वजह से प्रमुखता मिल रही थी.

सीएम बनते-बनते रह गए शिंदे

2014 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना ने एकनाथ शिंदे को विपक्ष का नेता भी बनाया. हालांकि कुछ दिन बाद ही शिवसेना सरकार में शामिल हो गई थी. एकनाथ शिंदे की कोशिश ही थी कि बीजेपी और शिवसेना साथ मिलकर सरकार बनाए. सरकार बनने के बाद शिंदे को इसका फायदा भी मिला. उन्हें सरकार में PWD मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली.

साहिल जोशी बताते हैं, 

"2019 में भी एकनाथ शिंदे को ही विधायक दल का नेता चुना गया था. शिंदे बीजेपी के साथ सरकार बनाने के भी पक्षधर थे. हालांकि महा विकास अघाडी का प्रयोग हुआ तो माना जा रहा था कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहेंगे. लेकिन एनसीपी और कांग्रेस का कहना था कि उद्धव ठाकरे ही सीएम बनें क्योंकि उनके नेतृत्व में ही सरकार बन सकती है. बाद में उन्हें (शिंदे को) शहरी विकास विभाग दिया गया. लेकिन उनकी हमेशा शिकायत रही कि उन्हें अहमियत नहीं दी जा रही है."

58 साल के एकनाथ शिंदे 11वीं पास हैं. 2019 विधानसभा चुनाव के दौरान शिंदे के खिलाफ 18 आपराधिक मामले दर्ज थे. उनके पास 11 करोड़ 50 लाख से भी अधिक की संपत्ति है. ये जानकारी उन्होंने खुद चुनाव आयोग को दाखिल हलफनामे में दी थी. एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे कल्याण से लोकसभा सांसद हैं. उनके भाई प्रकाश शिंदे पार्षद हैं. 

कहा जा रहा है कि एकनाथ शिंदे लंबे समय शिवसेना से नाराज चल रहे हैं. ठाणे नगर निगम चुनाव में भी उनकी राय को दरकिनार किया गया. शिंदे ने पार्टी को अकेले चुनाव लड़ने की सलाह दी थी. लेकिन शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ लड़ने का फैसला किया. बताया जाता है कि शिंदे को एनसीपी और कांग्रेस का साथ शुरू से पसंद नहीं है. सोमवार 20 जून को एमएलसी चुनाव में शिवसेना के कुछ विधायकों पर क्रॉस वोटिंग का आरोप लगा. इसके बाद देर रात से ही शिंदे ‘नॉट रीचेबल’ हो गए.

Advertisement