पिक्चर देखने जाते हैं? बिलकुल जाते होंगे. क्यूं नहीं जाते होंगे? क्या मजा आती है पिक्चर देखने में. पाइरेटेड फ़िल्में देखना तो बेवकूफों का काम है. हॉल में जब तक सलमान भाई की एंट्री पर सीटी नहीं बजाई तब तक क्या मजा? हमारा दैत्य तो वूल्वरीन की एंट्री पर जोर से चीख दिया था, "बड़े पापा आ गए...!!!" खैर, किसको क्या चिल्लाना है, सब अपने हिसाब से तय कर लें. लेकिन ये मालूम है कि अगर पहले ही फ़िल्म का टिकस बुक कर रहे हो तो पीवीआर में एक झोल सा होता है. उस झोल में होता ये है कि कुछ तय सीटें आप बुक नहीं कर सकते. देखिये. 13 अक्टूबर को एमएस धोनी फिल्म का शो अगर हम एमजीएफ़ गुड़गांव में बुक करवाना चाहें तो तीसरी रो खाली मिलती है. इसे बुक नहीं किया जा सकता.

इसके बाद तूतक तूतक तूतिया का टिकट इसी थियेटर में 13 अक्टूबर की तारीख में बुक करवाने की कोशिश की. फिर से तीसरी रो में सीट अवेलेबल नहीं मिली.

थियेटर बदलते हैं. अब आते हैं पीवीआर लॉजिक्स, नोएडा पर. यहां भी एमएस धोनी फिल्म का टिकस बुक करने चले तो मिला कि पीछे से तीसरी सीट नहीं मिल सकती.
1. ऐसा इसलिए है क्यूंकि पीवीआर ने अपने कस्टमर्स का खास ख्याल रखते हुए उनके लिए कुछ रिज़र्व सीटें रखी हुई हैं. ऐसी हालत में जब किसी कस्टमर को उसकी सीट पर बैठने में कोई दिक्कत आ रही हो तो उसे उस तीसरी रो में बिठाया जाता है.
2. इसके साथ ही अगर कोई प्रेग्नेंट महिला, सीनियर सिटिज़न, विकलांग व्यक्ति जो विंडो से टिकट लेता है और जल्दी में है, उसे इस रो में सीटें मिलती हैं.
3. कोई भी वीआईपी, सरकारी अफ़सर अगर बिना बताये फिल्म देखने चला आये तो वो इसी रो में विराजमान होता है.