आज दुनिया के कई 'इस्लामिक' देश गृहयुद्ध से जूझ रहे हैं. अमेरिका पर उनके मामलों में दखल देने का आरोप लगता है. वो ये बोलकर अपने लोगों को डराता है कि उत्तर कोरिया और ईरान न्यूक्लियर बम बना लेंगे तो दिक्कत हो जाएगी. लेकिन उसने न तो खुद परमाणु अप्रसार को लेकर कुछ किया, बल्कि उस देश को सबसे ज्यादा सपोर्ट किया जो वो इस्लामी मुल्क था जिसने सबसे पहले एटम बम बनाया. पाकिस्तान. और तो और इस काम में अमेरिका की गोपनीय सहमति थी. जबकि पूरा यूरोप पाक के खिलाफ था. ये खुलासा अमेरिका की ही सबसे खूंखार गुप्तचर एजेंसी CIA के एजेंट रिक बार्लो ने किया था. उन पर दुनिया भर के केस चलते हैं आज. इन सारी बातों पर रिसर्च कर एड्रियन लेवी और स्कॉट क्लार्क ने एक किताब Deception: Pakistan, the United States and the Global Nuclear Weapons Conspiracyदिसंबर 1975 में एक बिल्कुल दुबला-पतला आदमी कराची एयरपोर्ट पर उतरा. उसके पास तीन बड़े-बड़े सूटकेस थे जिनमें सिर्फ पेपर और फोटो भरे पड़े थे. लेकिन इस 'मामूली' आदमी को लेने पाकिस्तानी आर्मी के टॉप कमांडर आए हुए थे. इस आदमी का नाम था अब्दुल कादिर खान जो डच लैब में काम करता था ट्रांसलेटर के तौर पर. इसी कारण उस लैब के हर दस्तावेज तक उसकी पहुंच थी. वहीं से खान परमाणु बम बनाने का फॉर्मूला चुरा कर लाया था. एक साल पहले उसने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार भुट्टो से बम बनाने का वादा किया था. जिसे दुनिया ने 'इस्लामिक बम' के नाम से जाना.
लिखी थी. उसी में इस पूरी कहानी का जिक्र है.
पहले पाकिस्तान बम बनाता था, पर बन जाता था पटाखा
1974 में इंडिया ने अपना एटम बम टेस्ट कर लिया था. हालांकि ये बम जापान पर गिराए बम का आधा भी नहीं था. लेकिन इंडिया को अमेरिका से बैन की तकलीफें झेलनी पड़ीं. इसके साथ ही तभी से पाकिस्तान बौखलाया हुआ था. लेकिन पाकिस्तान के वैज्ञानिक पटाखे से आगे नहीं बढ़ पा रहे थे. इसी में अब्दुल कादिर खान ने 7 साल में एटम बम बनाने का वादा कर दिया! इस वादे के बाद तो पाकिस्तान कुछ भी कर सकता था.
इंदिरा गांधी पोखरण में, जहां बम फोड़ा गया था
1975 में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के कहूटा में बहुत ही बड़ा बजट लगाकर लैब बनाई गई. दुनिया के वैसे तमाम मुल्क सक्रिय हो गए जो पाकिस्तान का बम बनवाना चाहते थे लेकिन UN के कानूनों के कारण नहीं बनवा पा रहे थे. सारे कानूनों की ऐसी-तैसी कर पाकिस्तान में सारे सामान पहुंचाए जाने लगे. फिर जो कुछ घटता तुरंत चीन से आ जाता. 10 साल तक अब्दुल कादिर खान ने दुनिया का वो प्रोग्राम चलाया जिसने दुनिया के हर कानून को तोड़ा था.

अब्दुल कादिर खान
इंदिरा ने प्लान बनाया पाक लैब उड़ा दो, इजराइल बना दोस्त
इंडिया में उस समय उथल-पुथल मची हुई थी. इमरजेंसी के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमन्त्री बने थे. उनका मानना था कि अगर पाकिस्तान एटम बम बना भी ले तो इंडियन आर्मी को दो मिनट लगेगा पाक को निपटाने में. पर कैबिनेट का दिमाग कुछ और था. सबने एक नोट बनाया कि पाकिस्तान की इस हरकत के बाद इंडिया को भी अपना प्रोग्राम शुरू कर देना चाहिए. पर मोरारजी देसाई और अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे रोक दिया. एटॉमिक एनर्जी कमीशन को निर्देश दिया कि किसी मंत्री की बात नहीं सुननी है.1980 में इंदिरा गांधी फिर सत्ता में वापस आ गईं. पर पिछली बार के अमेरिका के नाटक के बाद वो भी डरी हुई थीं. बम बनाने का साहस नहीं था. तो इस बार उन्होंने प्लान बनाया कि बम बनाने से अच्छा है कि पाकिस्तान के कहूटा वाले लैब को ही उड़ा दिया जाये. इसके लिए तय हुआ कि इजराइल की मदद ली जाएगी.
इजराइल को 'इस्लामिक बम' से डर था. और वो लोग पहले इराक के न्यूक्लियर रिएक्टर को उड़ा चुके थे.
पाकिस्तान में वही काम करने के लिए इजराइल से अच्छा दोस्त नहीं मिल सकता था. प्लान हुआ कि पाकिस्तानी एयरफोर्स को इंडिया के वेस्ट बॉर्डर पर उलझाया जाएगा और इस बीच इजराइल की एजेंसी मोसाद कहूटा वाली लैब को उड़ा देगी.

मोसाद: Symbolic Image
अमेरिका की 'मुजाहिद्दीन ट्रेनिंग' ने लगा दी लंगड़ी
लेकिन अमेरिका की खुफिया एजेंसी को इस बात की भनक पड़ गई. उस वक़्त अफगानिस्तान में रूस से लड़ने के लिए अमेरिका पाकिस्तान में 'मुजाहिदीन' ट्रेनिंग चला रहा था. पाकिस्तान का कर्जा चुकाने के लिए अमेरिका के पास इससे सुनहरा मौका नहीं मिलता. तुरंत पाकिस्तान को बता दिया गया. यही नहीं, पाकिस्तान को बम बनाने में किसी तरह की दिक्कत न हो, इसका भी जुगाड़ किया गया. तय हुआ कि अमेरिका उस समय कुछ नहीं बोलेगा. वही हुआ भी, अमेरिका ने पाकिस्तान के एटम बम वाले कार्यक्रम पर सीधा 1998 में बोला.पाकिस्तान ने इंडिया को बता दिया कि ऐसा कुछ भी हुआ तो वो इंडिया के ट्रॉम्बे वाले न्यूक्लियर प्लांट को उड़ा देगा. इंडिया मुस्कुरा के रह गया. 1984 में इजराइल ने अपनी तरफ से पेशकश की कि हम खुद ही F-16 मिसाइल दाग के पाकिस्तान के लैब को उड़ा देते हैं. इस बार किसी को खबर नहीं लगेगी. लेेकिन अमेरिका को खबर लग गई. उन्होंने साफ़ कह दिया कि अब हम सीधा-सीधा पाकिस्तान के समर्थन में आ जाएंगे. इजराइल ने भी इरादा बदल दिया.

मुजाहिद्दीन