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इजरायल और फिलिस्तीन के बीच हुआ ओस्लो समझौता क्या है जिसने शांति का नोबेल दिलवा दिया था?

समझौते से इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच शांति का रास्ता खुला था, हालांकि आगे चलकर ये कामयाब नहीं हुआ.

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व्हाइट हाउस के लॉन में यित्ज़ाक राबिन और यासिर अराफ़ात. (फोटो- ट्विटर)

इज़रायल-हमास के बीच संघर्ष (Israel Hamas Airstrike Gaza Strip ) जारी है. 7 अक्टूबर को रॉकेट हमलों से शुरू हुए संघर्ष में अब तक इज़रायल में 800 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. वहीं 490 से ज्यादा लोगों की मौत फिलिस्तीन में हुई है. इस बीच इज़रायल-फिलिस्तीन के बीच हुए ‘ओस्लो समझौते’ (Oslo Accords) की बात भी की जा रही है. लेकिन अचानक इस समझौते को क्यों याद किया जा रहा है. ये समझौता क्या था और किस चीज से जुड़ा था, जानिए.

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ओस्लो समझौता क्या है?

30 साल पहले. साल 1993. तारीख 13 सितंबर. यासिर अराफ़ात ने इज़रायल से बातचीत की कोशिश की. उन्होंने फिलिस्तीन और इज़रायल के बीच सुलह का रास्ता अपनाने पर जोर दिया. PLO और इज़रायल के बीच कई दौर की मुलाकात हुई. इसमें इज़रायल-फिलिस्तीन के बीच के रिश्ते को सुधारने पर सहमति बनी.

10 सितंबर, 1993 को PLO ने इज़रायल को मान्यता दे दी. बदले में इज़रायल ने भी बड़ा फैसला लिया. उसने PLO को फिलिस्तीन का आधिकारिक प्रतिनिधि माना. समझौते पर आधिकारिक तौर पर दस्तखत 13 सितंबर, 1993 को व्हाइट हाउस के लॉन में हुए. उस वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति रहे बिल क्लिंटन भी वहीं पर मौजूद थे.

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समझौता दुनिया के सबसे सम्मानित अवॉर्ड की तरफ एक कदम भी था. अवॉर्ड नोबेल पीस प्राइज़ का. यासिर अराफ़ात के साथ-साथ इज़रायल के प्रधानमंत्री यित्हाक राबिन और विदेश मंत्री शिमोन पेरेज को 1994 के नोबेल पीस प्राइज के लिए चुना गया. 10 दिसंबर, 1994 की तारीख को तीनों का नाम ‘नोबेल विजेताओं’ की लिस्ट में शामिल हो चुका था.

ओस्लो समझौता 13 सितंबर को व्हाइट हाउस के लॉन में हुआ.

सितंबर 1995 में एक और समझौता हुआ. नाम ओस्लो 2. इस समझौते में और विस्तार से शांति प्रक्रिया के तहत बनाई जाने वाली बॉडीज़ पर चर्चा हुई. ओस्लो समझौते का परिणाम ये हुआ कि एक अस्थाई अथॉरिटी बनी. नाम दिया गया Palestine Authority (PA). साथ ही समझौते के तहत वेस्ट बैंक के इलाके को तीन कैटेगरी में बांटा गया. एरिया A, B और C. इस समझौते के पांच साल बाद एक फाइनल समझौता भी होना था, लेकिन वो न हो सका.

समझौते का असर क्या हुआ?

दक्षिणपंथी इज़रायलियों को ओस्लो समझौता रास न आया. वो फिलिस्तीनियों को कोई भी रियायत देने के पक्ष में नहीं थे, ना ही PLO के साथ कोई समझौता करना चाहते थे. ये लोग  PLO को आतंकवादी संगठन मानते थे. वहीं इज़रायली निवासियों को भी यही डर था. उन्हें डर था कि समझौते की वजह से कब्जे वाले क्षेत्रों की अवैध बस्तियों से उन्हें बेदखल कर दिया जाएगा.

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धुर दक्षिणपंथी इज़रायली समझौते के इतने विरोधी थे कि उन पर हस्ताक्षर करने के कारण 1995 में प्रधानमंत्री यित्हाक राबिन की ही हत्या कर दी गई. जिन लोगों ने राबिन को उनकी मौत से पहले धमकी दी थी उनमें इतामार बेन गविर भी शामिल थे, जो अब इज़रायल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री हैं.

उधर, हमास और इस्लामिक जिहाद जैसे फिलिस्तीनी संगठन भी ओस्लो समझौते के विरोध में थे. उन्होंने चेतावनी दी कि टू-स्टेट सॉल्यूशन की वजह से फिलिस्तीनी शरणार्थी उस ऐतिहासिक भूमि पर लौटने का अधिकार खो देंगे, जिस पर 1948 में इज़रायल ने कब्जा कर लिया था.

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