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हिजाब पर क्या कहता है मुस्लिम धर्म?

कर्नाटक के हिजाब मामले में हाई कोर्ट में क्या तय हुआ?

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कर्नाटक में हिजाब विवाद इस साल की शुरुआत में शुरू हुआ था. (फोटो: इंडिया टुडे)
'भला है, बुरा है, जैसा भी है मेरा पति मेरा देवता है.'  'नसीब अपना अपना' फिल्म का ये गाना आपने सुना होगा. साल 1986 में ये फिल्म आई थी. और उस दौर में गीतकार, हीरोइन के लिए गाना लिख देता है कि मेरा पति मेरा देवता है. शायद आज ना लिख ना पाएं.  क्योंकि इस गाने के 34 साल बाद आज इसी देश के कोर्ट में और मीडिया में मेराइटल रेप यानी वैवाहिक यौन शोषण पर बहस चल रही है. हम चेतना के उस स्तर तक आ गए हैं कि आज देश की महिलाएं अपने पति के भी जबरन संबंध बनाने पर उसे रेप की कैटेगरी में शामिल करने की मांग कर रही हैं. कहने का मतलब वक्त के साथ हमारे विचार भी बदलते हैं. पुरुषों के प्रभुत्व वाले समाज में महिलाएं अपने हक़ूक के लिए लगातार लड़ रही हैं. और इस लड़ाई से बराबरी और आज़ादी का अपना दायरा बढ़ा भी रही हैं. और बात सिर्फ महिलाओं की नहीं है. समलैंगिकता, जातिवाद, पहनावा इन सब पर हमारे विचार बदलते हैं. बेहतरी वाले बदलाव के लिए हमारे देश में बहसो-मुबाहिसा होती हैं. लेकिन दिक़्क़त तब शुरू हो जाती है, जब बदलावों और समुदायों की लड़ाई सड़क पर आ जाती है. जैसा कि हिजाब के मामले में हमें कर्नाटक में दिख रहा है. हिजाब के समर्थन वाले और विरोध वाले सड़कों पर भिड़ रहे हैं. जय श्री राम और अल्लाहू अकबर के नारों का टकराव देखने को मिल रहा है. एक तरफ हिंदू दक्षिणपंथ और दूसरी तरफ मुस्लिम दक्षिणपंथ है. दोनों के ही समर्थन में सोशल मीडिया के क्रांतिवीर खूब लिख रहे हैं. लेकिन असल में सही कौन है. ये कोर्ट और कानून से तय होने वाली चीज़ है. तो तर्कों और कानून की नज़र से ही आज फिर हम इस मामले को समझने की कोशिश करेंगे. अब तक क्या हुआ? कर्नाटक के उडुपी इंटर कॉलेज से मामला शुरू. दिसंबर के आखिरी हफ्ते में. 8 लड़कियों ने आरोप लगाया कि उन्हें क्लास में हिजाब पहनकर नहीं बैठने दिया जा रहा है. लड़कियों ने दिसंबर में ही क्लास में हिजाब पहनकर बैठना शुरू किया था. कॉलेज प्रशासन ने बताया कि लड़कियां कैंपस में हिजाब पहन सकती हैं, लेकिन क्लासरूम में नहीं पहन सकती और ये पहले से नियम है. क्योंकि कॉलेज के ड्रेस कोड में हिजाब नहीं हैं. इसके खिलाफ लड़कियों का विरोध शुरू हुआ. फिर कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, जो पीएफआई से जुड़ा माना जाता है, उस संगठन ने लड़कियों के हिजाब पहनने की तरफदारी शुरू की. फिर स्थानीय बीजेपी विधायक और बजंरग दल जैसे हिंदू संगठन इसमें शामिल हुए. हिंदुओं छात्र-छात्राओं ने भगवा स्कार्फ पहनकर इंटर कॉलेज में दाखिल होने की कोशिश की. उडुपी से मामला कर्नाटक के और भी इलाकों में फैल गया. टकराव इतना ज्यादा बढ़ गया कि मंगलवार को सरकार ने स्कूल औऱ इंटर कॉलेजों को 3 दिन के लिए बंद कर दिया. उधर मुस्लिम छात्राओं ने कोर्ट से हिजाब पहनने की मांग की. कल कोर्ट में जस्टिस कृष्ण दीक्षित की सिंगल बेंच इस मामले की सुनवाई की. कोर्ट के सामने दो बड़े सवाल थे. पहला ये कि क्या हिजाब मुस्लिम की ज़रूरी प्रैक्टिस का हिस्सा है? और दूसरा सवाल कि क्या क्लासेज़ में हिजाब पहनने से रोकना लड़कियों को उनके बुनियादी अधिकार से वंचित करना है. कल जस्टिस दीक्षित ने कोर्ट रूम में कुरान की कॉपी मंगवाई थी. लेकिन शाम तक कुछ तय नहीं हो पाया तो आज फिर सुनवाई हुई. अब आगे की बात शुरू करते हैं. आज ढाई बजे हाई कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. लेकिन सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस दीक्षित ने कह दिया कि उन्हें लगता है कि इस केस पर बड़ी बेंच को विचार करना चाहिए. माने एक से ज्यादा जजों की बेंच. जज साहब ने सभी पक्षों के वकीलों की इस बात पर सहमति मांगी. इस पर, सीनियर एडवोकेट संतोष हेगड़े ने कहा कि बड़ी बेंच को केस ट्रांसफर करना तो कोर्ट तय करे. लेकिन उन छात्राओं को राहत मिलनी चाहिए जिनके पास अब सिर्फ दो महीने ही बचे हैं. इस साल की परीक्षाओं में. किसी भी लड़की को शिक्षा से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए. इस बातचीत में कर्नाटक सरकार के वकील यानी एडवोकेट जनरल ने कहा कि हम मामले का जल्दी निपटारा चाहते हैं, फैसला चाहे जो भी हो. क्योंकि ये बड़ा मामला बन चुका है. एडवोकेट जनरल ने ये भी कहा कि कई जजमेंट हैं जब हिजाब को धर्म के जरूरी हिस्से में नहीं माना गया. जबकि दूसरे वकील बच्चों को अतंरिम राहत देने की मांग कर रहे थे. सबकी बात सुनकर जस्टिस दीक्षित ने कहा कि चीफ जस्टिस जब बड़ी बेंच बनाएंगे, तो उसके बाद अंतरिम राहत वाली याचिकाओं पर विचार किया जा सकता है. तो कुल मिलाकर इस मामले पर अब कर्नाटक हाई कोर्ट की बड़ी बेंच सुनवाई करेगी. अब यहां कई बातें समझने की हैं. पहला तो ये कि कॉलेज में ड्रेस कोड लागू करना, या हिजाब पहनने पर पाबंदी छात्राओं के बुनियादी अधिकारों का सीधा सीधा हनन नहीं है. अगर ऐसा होता तो कोर्ट की तरफ से तुरंत इस मामले में छात्राओं के हक में फैसला दे दिया जाता है. दूसरी बात, कोर्ट की सिंगल बेंच ये तय नहीं कर पाई की हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य प्रैक्टिस का हिस्सा है. अगर कोर्ट ऐसा मान लेता तो ये मामला अनुच्छेद 25 के तहत बुनियादी अधिकारों में आ जाता. और लड़कियों को हिजाब पहनने की अनुमति मिल जाती. लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ. एक बात यहां समझने की और है. जिस तरह से छात्राओं को संविधान से बुनियादी अधिकार मिले हैं वैसे ही उस संस्थान को, यानी इंटर कॉलेज को भी अधिकार मिले हैं. कर्नाटक राज्य का कानून  भी इंटर कॉलेज को स्वायतत्ता देता है. इस कानून का नाम है - Karnataka Education Act, 1983. इसके तहत संस्थानों को ड्रेस कोड तय करने का अधिकार है. और इसी अख्तियार से इंटर कॉलेज ने छात्राओं के लिए एक ड्रेस कोड बनाया, जिसके तहत कक्षाओं में हिजाब पहनने पर पाबंदी रखी. और इसके लिए कॉलेज ने छात्राओं से लिखित में सहमति भी ली थी. माने यहां तक इंटर कॉलेज की हिजाब पर पांबदी सही है. लेकिन अगर कोर्ट ये तय कर देता है कि हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है,  तो फिर अनुच्छेद 25 के तहत कॉलेज का हिजाब पाबंदी वाला नियम गलत हो जाएगा. बुनियादी अधिकारों के खिलाफ हो जाएगा. लेकिन अभी कोर्ट ने भी तो नहीं कहा कि हिजाब इस्लाम की अनिवार्य प्रैक्टिस है. इस पेचीदगी को और समझने के लिए हमने हैदराबाद स्थित NALSAR University of Law के वायस चांसलर फैज़ान मुस्तफा से बात की. उन्होंने कहा
किसी भी शैक्षणिक संस्थान को यह अधिकार है कि वह अपने हिसाब से ड्रेस कोड रख सकता है. लेकिन यह अधिकार है ऐसा नहीं है कि कोई ऐसा रूल बना दिया जाए जो किसी के मौलिक अधिकार का हनन करे. संविधान के अनुच्छेद 25 में आप लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता को वॉइलेट कर सकते हैं. तब जब ये समाज की नैतिकता, या किसी और मौलिक अधिकार से टकराए.
अब कई लोगों का ये सवाल हो सकता है कि सिखों को तो पगड़ी पहनने की छूट होती है. उनको क्यों नहीं रोका जाता. क्योंकि सिख धर्म में पगड़ी पहनना धर्म की अनिवार्य प्रैक्टिस का हिस्सा है. हिजाब के मामले में अभी ये साबित नहीं हुआ. और कई धर्मों में बहुत सारी चीज़ें हैं जिनमें अभी कोर्ट को ये तय करना है कि क्या आवश्यक प्रैक्टिस है और क्या नहीं है. इसलिए सबरीमाला केस पर फैसला देते हुए तब के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई ने 7 जजों की संवैधानिक बेंच बनाई थी. ये बेंच सबरीमाला केस के अलावा धार्मिक मामलों की कई सारी याचिकाओं पर विचार करेगी. ये तय करेगी कि कौनसी प्रैक्टिस आवश्यक है और कौनसी नहीं. तो बहुत मुमकिन है कि कर्नाटक हाई कोर्ट की लार्जर बेंच का जो फैसला आए, उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में चला जाए. और फिर सुप्रीम कोर्ट तय करे कि हिजाब इस्लाम में अनिवार्य है या नहीं. ये तो हुई आईन और कानून की बात. अब दीन के मसले पर आते हैं. क्या इस्लाम के जानकार हिजाब को अनिवार्य मानते हैं. ये समझने के लिए हमने दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे जुनैद हैरिस का रुख किया. जामिया के इस्लामिक स्टडीज़ सेंटर में फेकल्टी हैं जुनैद साहब. उन्होंने हमें बताया
हिजाब का ज़िक्र क़ुरान और हदीस दोनों में है.मोहम्मद साहब के वक़्त भी औरतें हिजाब किया करती थीं. मतभेद इस बात को लेकर है कि औरतें उस वक़्त चेहरा खोलकर हिजाब करती थी या उनका चेहरा भी ढका रहता था. यह दोनों तरीक़े से प्रेक्टिस किया जाता है.
 प्रोफेसर साहब के बताने से बात ये समझ आई कि कुरान में कई आयत हैं जिनमें परदे का ज़िक्र है. महिला को देखकर मर्द की नियत ना बिगड़ जाए इसलिए पर्दा है. यानी मर्दों से महिलाओं से बचाने के लिए पर्दा. लेकिन क्या मर्दों की नियत के हिसाब से महिलाओं को पर्दा करना चाहिए. इस पर कई महिलाएं अलग विचार रखती हैं. हमने बात की महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली शबनम हाशमी से. उन्होंने हमें बताया
हिजाब या घूँघट पहनने से औरत की सुरक्षा हो जाएगी यह एक बकवास तर्क है. सुरक्षा का कपड़ों से कोई लेना देना नहीं है. महिलाओं को अगर सुरक्षित रखना है तो इस सामाजिक ढांचे में महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी पड़ेगी.
यानी कई महिलाएं पर्दे को बंधन की तरह देखती हैं. हमने कई मुस्लिम बहुल देशों में हिजाब के खिलाफ महिलाओं के प्रदर्शन देखे. ये भी देखा कि ईरान और अफगानिस्तान में इस्लामिक सरकारें आने से पहले हिजाब या बुर्के को लेकर ज्यादा सख्तियां नहीं थीं. सरकारों के हिसाब से ये पाबंदियां बढ़ जाती हैं. हालांकि कई महिलाएं ये भी मानती हैं कि महिलाओं को अपनी इच्छा से कुछ भी पहनने का हक होना चाहिए, वो हक नहीं छीना जा सकता है.  इस बारे में हमने अक्सा शेख से बात की. ये हमदर्द इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एसोसिएट प्रोफेसर हैं. और ट्रांसजेडर राइट्स एक्टिविस्ट भी हैं. उन्होंने हमें बताया
इस्लाम में जब हमें जो हिजाब की बात करते हैं तो हमें इसका कोई साफ़ साफ़ रूल नहीं मिलता है. कई लोग इसमें कहेंगे कि आप को सर ढँकना लाज़मी है, कई लोगों का कहना है कि चेहरा भी ढकना ज़रूरी है. ये एक इंडिविजुअल पे डिपेंड करता है कि वो हिजाब को किस तरीक़े से समझती हैं.
कर्नाटक में हिजाब के लिए मुस्लिम कट्टरपंथ को उभरता देखकर उन महिलाओं को भी निराशा है, जिन्होंने महिलाओं के हकों के लिए, उनकी आज़ादी के लिए, उलेमाओं के कट्टरपंथ के खिलाफ लंबा संघर्ष किया. इनमें एक नाम है शीबा असलम फ़हमी का. उन्होंने हमें बताया
औरतों के हिजाब और सुरक्षा का जो सवाल आज है वह राजनैतिक ज़्यादा है. और इसका फ़ायदा उठाने वाले दोनों तरफ़ के लोग हैं.
अब सारे विद्वानों को देखकर, और तथ्यों को देखकर हमें ये समझ आ रहा है कि हिंदू दक्षिणपंथ के खिलाफ एक मुस्लिम दक्षिणपंथ तैयार हो रहा है. भगवा गमछे वाले, और सड़क पर बुर्के वाली लड़की के खिलाफ नारेबाज़ी करने वाले लोग बिल्कुल भी सही नहीं है. लेकिन सही तो बुर्के की मांग वाली भी नहीं हैं. उसके पीछे भी एक खास किस्म की राजनीति है. जो किसी के हित में नहीं हैं. किसी को इस्लामोफोबिक या संघी या हिंदुत्ववादी कह देना समस्या का हल नहीं है. उम्मीद है आप जज्बात से इतर, एक साइंटिफिक टेम्परामेंट के साथ सारी बात समझेंगे.